फ्राँसिस बोरजिया का जन्म, 28 अक्टूबर सन्
1510 ई. को, स्पेन के एक कुलीन घराने में हुआ था। वे स्पेन के राजा के दरबार में
सेवारत थे तथा 33 वर्ष की आयु में उन्हें ड्यूक ऑफ गान्दिया पद पर नियुक्त कर दिया गया
था। एलेन्योरा फ्राँसिस की पत्नी थीं जिनकी आठ सन्तानें थीं। स्पेन के राज दरबार में
कार्यरत रहने के बावजूद, फ्राँसिस एक धर्मपरायण काथलिक धर्मानुयायी थे तथा अपनी पल्ली
के सभी कार्यकलापों में हिस्सा लिया करते थे। प्रतिदिन वे ख्रीस्तयाग में शामिल होते
तथा परमप्रसाद ग्रहण किया करते थे। माँ मरियम की भक्ति के लिये भी वे जाने जाते थे।
स्पेन के राजदरबार में इतने ऊँचे पद पर रहने के बावजूद, फ्राँसिस ने अपनी पदवी
से त्यागपत्र दे दिया तथा अपनी जगह अपने पुत्र चार्ल्स को ड्यूक ऑफ गान्दिया का पद प्रदान
कर दिया। तदोपरान्त, सांसारिक सुख वैभव का परित्याग कर वे येसु धर्मसमाज में भर्ती हो
गये। गहन मनन- चिन्तन, प्रार्थना और वर्षों के अध्ययन के बाद, 41 वर्ष का आयु में, वे
पुरोहित अभिषिक्त किये गये।
उन्होंने धर्मसमाज के सभी नियमों का निष्ठापूर्वक
पालन किया तथा धर्मसमाज के छोटे बड़े सभी कामों में हाथ बँटाया। ग़लती होने पर वे विनम्रतापूर्वक
अपने साथी पुरोहितों से माफ मांग लिया करते थे। अपनी सभी राजसी उपाधियों का उन्होंने
परित्याग कर दिया था तथा दीनता और सादगी का जीवन यापन करने लगे थे।
उन्होंने
स्पेन तथा पुर्तगाल में येसु धर्मसमाज का प्रसार किया तथा अपने कार्यकाल में इन देशों
में कई प्रशिक्षण केन्द्रों एवं मठों की स्थापना की। जब फ्राँसिस को येसु धर्मसमाज का
प्रमुख नियुक्त किया गया तब उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में अपने मिशनरी प्रेषित किये। उनके
मार्गदर्शन में येसु धर्मसमाजी पुरोहितों ने विश्व के विभिन्न महाद्वीपों में सुसमाचार
का प्रचार किया तथा कलीसिया के जनकल्याण कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 30 सितम्बर,
सन् 1572 ई. को, रोम में, फ्राँसिस बोरजिया का निधन हो गया था। 20 जून, सन् 1670 ई. को,
उन्हें सन्त घोषित किया गया था। सन्त फ्राँसिस बोरजिया का पर्व 10 अक्टूबर को मनाया जाता
है।
चिन्तनः धन्य हैं मन के दीन स्वर्ग राज्य उन्हीं का है।