पोलैण्ड के लोड्ज़ गाँव में, 25 अगस्त, 1905
ई. को हेलन कोवाल्सका का जन्म हुआ था जो बाद में जाकर फीओस्तीना कोवाल्सका बनी। जब हेलन
20 वर्ष की थी तब उन्होंने वॉरसो नगर स्थित दया की रानी मरियम को समर्पित धर्मसंघ में
प्रवेश कर पा लिया था। इस धर्मसंघ की धर्मबहनों की प्रेरिताई संकटापन्न युवा महिलाओं
के प्रशिक्षण एवं उनकी देख रेख पर केन्द्रित थी। धर्मसंघ में शपथ ग्रहण के अवसर पर हेलन
को सि. मरिया फाओस्तीना नाम दे दिया गया था।
बताया जाता है कि पोलैण्ड की सि.
मरिया फाओस्तीना को कई बार दिव्य दर्शन प्राप्त हुए थे। सन् 1930 में, इस धर्मबहन को
पहली बार दिव्य दर्शन मिले जिसमें उन्हें आदेश दिया गया था कि वे प्रभु ईश्वर की करूणा
एवं उनकी असीम दया के बारे में लोगों को बतायें। इसके तुरन्त बाद, सि. फाओस्तीना ईश्वरीय
दया या दिव्य करूणा की भक्ति में लीन हो गई। सि. फाओस्तीना से कहा गया था कि वे ईश्वरीय
करूणा की सन्देशवाहक और प्रेरित बनें तथा दया के कार्यों द्वारा, विश्व के लिये ईश्वर
की करूणा योजना, के बारे में बतायें। इस दर्शन के बाद सि. फाओस्तीना का सम्पूर्ण जीवन
प्रभु येसु का अनुसरण बन गया, उनका जीवन अन्यों की सेवा में व्यतीत समय बन गया। उन्होंने
उदार कार्यों के अलावा ईश्वरीय करूणा पर कई कविताएँ एवं प्रार्थनाएँ लिखी। निष्कलंक माँ
मरियम एवं पवित्र यूखारिस्त की भक्ति से फाओस्तीना ने अपनी प्रेरिताई के लिये आन्तरिक
संबल प्राप्त किया तथा पाप के प्रलोभन में फँसी युवतियों की विशेष मदद की। मरणासन्न लोगों
को उनके अन्तिण क्षणों में पश्चाताप एवं पापस्वीकार करने हेतु सहायता प्रदान करना भी
सि. फाओस्तीना का विशेष मिशन बन गया था।
सन् 1938 ई. में, तपेदिक रोग से कुछ
समय तक ग्रस्त रहने के बाद, 05 अक्टूबर को, रहस्यवादी एवं दिव्यदर्शनद्रष्टा सि. फाओस्तीना
का निधन हो गया था। अपने जीवन काल में सि. फाओस्तीना ने ईश्वर के इस आदेश का पालन किया
थाः "दयावान बनो जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता दयावान है।" "ईश्वरीय करूणा मेरी अन्तरआत्मा
में" शीर्षक से लिखी गई सि. मरिया फाओस्तीना कोवाल्सका की डायरी ईश्वरीय करूणा की भक्ति
हेतु प्रार्थना की किताब बन गई है। हालांकि, सि. फाओस्तीना के निधन के दो दशक बाद तक
परमधर्मपीठ द्वारा ईश्वरीय करूणा की भक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिया था तथापि, सन् 1978
में इसे पुनः प्रतिष्ठापित किया गया तथा सन् 2000 के अप्रैल माह में, सि. फाओस्तीना कोवाल्सका
21 वीं शताब्दी की पहली सन्त घोषित की गई। सन्त फाओस्तीना कोवाल्सका का पर्व 05 अक्टूबर
को मनाया जाता है।
चिन्तनः प्रभु ईश्वर दयावान हैं उनकी कृपा प्रत्येक
भक्त पर बनी रहती है, हर पल हम उनके नाम का गुणगान करें तथा उन्हें धन्य मनायें।