2012-09-26 13:37:14

संत पापा धर्मशिक्षा, 26 सितंबर, 2012


वाटिकन सिटी, 26 सितंबर, 2012(सेदोक, वी.आर) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।

उन्होंने इतालवी भाषा में कहा - मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, हाल के महीनों में हमने ईशवचन के प्रकाश में चलने का प्रयास किया है और प्रार्थना के बारे जानकारी प्राप्त की है।

प्रार्थना के बारे में हमने पुराने व्यवस्थान, स्तोत्र, संत पौल के पत्रों और प्रकाशना ग्रंथों द्वारा जानने का प्रयास किया। इसके साथ येसु के अपने ईश्वरीय पिता के साथ विशेष और मूलभूत संबंध के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। सच बात तो यह है कि व्यक्ति सिर्फ़ येसु मसीह के द्वारा ही पिता ईश्वर तक पहुँच सकता है और उनके साथ उसकी घनिष्ठता और आत्मीयता बढ़ सकती है। अतः हमें चाहिये कि हम प्रेरितों के समान ही हरदम कहें, "प्रभु हमें प्रार्थना करना सिखलाइये"।(संत लूकस, 11.1)
इन बातों के अलावा इन दिनों में हमने इस बात को भी सीखा कि कैसे हम पवित्र तृत्व ईश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध बना सकते हैं और पवित्र आत्मा को ग्रहण कर सकते हैं जो पुनर्जीवित येसु का दुनिया के लोगों के लिये प्रथम वरदान था। पवित्र आत्मा हमें इस बात के लिये मदद करती है कि हम कैसे आसानी से प्रार्थना कर सकें।
काथलिक कलीसिया आज प्रत्येक जन से यह अपील करती है कि वह बाइबल का अध्ययन करे और तब पवित्र आत्मा हमें अवश्य ही प्रार्थना करना सिखलाएगा।
इसके साथ एक दूसरे तरीके से भी हम प्रार्थना करना सीख सकेंगे वह है पवित्र पूजन धर्मविधि द्वारा। पूजन धर्मविधि में सम्मिलित होकर हम ईश्वर के वचन सुन सकते हैं। पूजन विधि में ईश्वर हमारा इन्तज़ार करते हैं और हमसे प्रत्युत्तर की आशा करते हैं।

पवित्र धर्मविधि में हमेशा प्रभु की वाणी सुनायी जाती है जो पवित्र आत्मा की शक्ति से सक्रिय और जीवित होती है। प्रभु की वाणी में पिता ईश्वर का अनन्त प्रेम प्रवाहित होता है जो मनुष्य के जीवन को शक्ति प्रदान करता है। सच पूछा जाये तो ईशवचन ही पूजन धर्मविधि की नींव है और यह हमारे जीवन को अनुप्राणित करता है।
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प्रिय भाइयों एवं बहनों, हम यह भी जानना चाहेंगे कि आखिर ‘लिटरजी’ या ‘पूजन पद्धति’ क्या है? अगर हम काथलिक धर्मशिक्षा को पढ़ें तो हम पायेंगे कि यह हमारे जीवन के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है विशेष करके ऐसे समय में जब हम विश्वास का वर्ष आरंभ करने जान रहे हैं। ‘लिटर्जी’ एक ग्रीक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘मानव द्वारा मानव की सेवा’।

अगर हम इसे ख्रीस्तीय तरीके से समझें तो हम कह सकते हैं कि येसु के क्रूस में मारे जाने से जो एक नये समुदाय का जन्म हुआ वह ईश्वर से एक होकर दुनिया के लोगों के लिये कार्यरत है। यह एक ऐसा जनसमुदाय है जो जिसका जन्म येसु के पास्का रहस्य द्वारा हुआ है और वह अकेला नहीं है न ही उसका संबंध दूसरे व्यक्ति के साथ रक्त का है।

काथलिक धर्मशिक्षा इस बात को भी बतलाती है कि ईसाई परंपरा में ‘लिटर्जी’ शब्द इस बात की ओर इंगित करती है कि ईशप्रजा या विश्वासी ईश्वर के कार्य में सहभागी होते हैं।

यह हमें इस बात की भी याद दिलाती है कि पचास वर्ष पहले द्वितीय वाटिकन महासभा ने पवित्र पूजन विधि पर एक दस्तावेज़ तैयार किया और उस 4 दिसंबर, सन् 1963 में उत्साह से उसे मंजूरी दी। द्वितीय वाटिकन महासभा का यही एक ऐसा दस्तावेज़ था जिसे बिना किसी विवाद के पारित किया गया।

पूजन पद्घति या उपासना पद्धति के बारे में चर्चा करते हुए अब यह बात स्पष्ट हो गया कि ईश्वर का स्थान सर्वोच्च है। ईश्वर हमें इस बात को बतलाते हैं कि हर पूजन पद्धति का आरंभ ईश्वर से ही होना चाहिये ताकि हम उनसे शक्ति ग्रहण करके उनके कार्यों का विस्तार कर सकें।

ऐसे समय में हम यह भी प्रश्न कर सकते हैं कि हम ईश्वर के किन कार्यों का विस्तार करें? इसका उत्तर है ईश्वर के उन ऐतिहासिक कार्यों का विस्तार करें जो मानव को उस मुक्ति को प्रदान करता है जिसे हमारे प्रभु येसु मसीह ने अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा हमें उपहार स्वरूप दिया है।

प्रभु येसु की यह मुक्ति यूखरिस्त संस्कार, पापस्वीकार संस्कार और अन्य संस्कारों द्वारा हमारे लिये उपलब्ध है। सच पूछा जाये तो पास्का रहस्य अर्थात् येसु का दुःखभोग और पुनरुत्थान ही पूजन पद्धतीय थियोलॉजी का केन्द्र है।

आइये हम एक कदम आगे बढ़े और पास्का रहस्य पर चिन्तन करें। धन्य जोन पौल द्वितीय ने 25 वर्ष पहले पास्का रहस्य को समझने के लिये एक दस्तावेज़ लिखा जिसे कोस्टिट्यूशन साकरोसान्कतुम कोन्सिलियुम के नाम से जाना गया।

इसमें उन्होंने पूजन पद्धति के बारे में कहा है कि यह एक ऐसा वरदानों से भरा समय है जब हम उस ईश्वर के दर्शन करते हैं जिन्होंने हमारे लिये प्रभु येसु को दिया है।

काथलिक धर्मशिक्षा भी हमें बतलाती है कि संस्कारीय समारोह एक ऐसा समय है जब ईश्वर के पुत्र-पुत्रियाँ ईश्वर, प्रभु येसु ख्रीस्त औऱ पवित्र आत्मा से मिलते हैं और उनसे वचन और कर्म से बातें करते हैं।

इसलिये पूजन पद्धतीय समारोहों में प्रार्थना और ईश्वर से बातचीत होना अति महत्वूर्ण है। इसके लिये ज़रूरी है कि व्यक्ति ईश्वर की बातों को सुने और तब उसका उत्तर दे।

संत बेनेदिक्त ने स्तोत्र की प्रार्थना करने के जो नियम दिये हैं उसमें कहा है कि ‘मन, आवाज की सुनता है’।

पवित्र पूजन पद्धति हमें इस बात के लिये आमंत्रित करती है कि हमें अच्छे और सच्चे मन से पूजन पद्धति में हिस्सा लें अपने दिल की बात को सुने और दिव्य कृपा को ग्रहण करें और उसके साथ सहयोग करें।

इस संदर्भ में मैं इस बात को भी बतलाना चाहूँगा कि पवित्र पूजन पद्धति हमें इस बात के लिये मदद करती है कि हमें जो सुने, जो कहें और जो करें वे एक दूसरे से सकारात्मक रूप से जुड़े हुए हों।

मैं इस बात को भी बतलाना चाहूँगा कि जब हम पूजन पद्धति में भाग ले रहे हों तो हमारे मन इस तरह से खुले हों कि हम ईश्वर के वचन की आज्ञा मान सकें। हमारे ह्रदय प्रभु की ओर हों और हम उन्हें अपना प्रेम देने के लिये तत्पर रहें।

मेरे प्रिय भाइयो एवं बहनों जब हम संस्कारों की पूजन पद्धति में हिस्सा लें हमारा मनोभाव प्रार्थना का हो और हमारा मन-दिल पुनर्जीवित येसु के रहस्य के साथ सम्मिलित रहे। हम इस बात को जाने कि पूजन पद्धति ईश्वर और मानव दोनों ही सक्रिय हैं और पवित्र आत्मा की शक्ति से हम ईश्वर की ओर ऊपर उठा लिये जाते हैं।

इतना कह कर उन्होंने अपना संदेश समाप्त किया। उन्होंने इंगलैंड, स्कॉटलैंड, डेनमार्क, नोर्वे, स्वीडेन, ऑस्ट्रेलिया, भारत. इंडोनेशिया, जापान, फिलीपीन्स, श्री लंका, वियेतनाम, कनाडा और अमेरिका के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।









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