देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश
कास्तेल गोंदोल्फो 24 सितम्बर 2012 (सेदोक, एशिया न्यूज) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें
ने रविवार 23 सितम्बर को कास्तेल गोंदोल्फो स्थित ग्रीष्मकालीन प्रेरितिक प्रासाद के
प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों को देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ
करने से पूर्व विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने इताली भाषा में सम्बोधित करते
हुए कहा- अतिप्रिय भाईयो और बहनो, संत मारकुस रचित सुसमाचार
के द्वारा हमारी यात्रा में हम इस रविवार को सुसमाचार के दूसरे भाग में प्रवेश करते हैं,
येसु के मिशन के शिखर तथा येरूसालेम की ओर अंतिम यात्रा। शिष्यों की तरफ से पेत्रुस द्वारा
उन्में विश्वास की घोषणा करने के बाद कि वे मसीह हैं येसु खुलकर कहने लगे कि अंत में
क्या होनेवाला है। सुसमाचार लेखक ईसा की मृत्यु और पुनरूत्थान के बारे में अध्याय
8, 9 और 10 में तीन भावी बातों का पूर्वाभास दिखाते हैं। येसु, जो कुछ उनकी प्रतीक्षा
कर रहा है उसके बारे में तथा अपनी आंतरिक जरूरतों के बारे में पहले से कहीं अधिक स्पष्ट
रूप से घोषित करने लगते हैं। इस रविवार का पाठ इस घोषणा का दूसरा भाग है- एक अभिव्यक्ति
जिसमें ईसा स्वयं के बारे में कहते हैं- मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जायेगा।
वे उसे मार डालेंगे और मार डाले जाने के बाद वह तीसरे दिन जी उठेगा। शिष्य यह बात नहीं
समझ सके और ईसा से प्रश्न करने में उन्हें संकोच होता था। वस्तुतः संत मारकुस रचित
इस वृत्तांत को पढ़ने के बाद यह बात स्पष्ट है कि येसु और उनके शिष्यों के बीच गहन आंतरिक
दूरी है। कह सकते हैं कि वे दो भिन्न आवृत्तियों में हैं जिससे गुरु की बात शिष्य समझ
नहीं सकते हैं या केवल सतही तौर पर समझते हैं। प्रेरित पेत्रुस येसु में विश्वास प्रदर्शित
करने के बाद उन्हें डाँटते हैं क्योंकि उन बातों का पूर्वानुमान करते हैं कि उन्हें स्वीकारा
नहीं जायेगा और मार डाला जायेगा। दुःखभोग की दूसरी उदघोषणा करने के बाद शिष्यों के
मध्य वाद-विवाद होने लगता है कि उनके बीच सबसे बड़ा कौन है और तीसरी घोषणा के बाद याकूब
और योहन ने येसु से कहा कि वे जब महिमा में आयेंगे तो दोनों को अपने साथ बैठने दें- एक
को अपने दायें और एक को अपने बायें। अनेक अन्य चिह्न हैं जो इस दूरी को दिखाते हैं। उदाहरण
के लिए - शिष्य मिरगी से पीडित एक लड़के को चंगा नहीं कर सके तब येसु उसे प्रार्थना की
शक्ति से चंगा करते हैं या जब बच्चे येसु के पास आते हैं तो शिष्य उन्हें डाँटते हैं
जबकि येसु इससे बहुत अप्रसन्न हुए। वे बच्चों का स्वागत करते हैं और कहते हैं बच्चों
को मेरे पास आने दो, उन्हें मत रोको क्योंकि ईश्वर का राज्य उन जैसे लोगों का है। यह
सब क्या बताता है ? यह हमें स्मरण कराता है कि ईश्वर के सोच-विचार मनुष्य के सोच- विचार
से हमेशा अलग होते हैं जैसा कि ईश्वर ने नबी इसायस के द्वारा प्रकट किया है- तुम लोगों
के विचार मेरे विचार नहीं हैं और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग नहीं हैं। ईश्वर का
अनुसरण करने के लिए हमें गहन मनपरिवर्तन चाहिए, सोच विचार करने और जीवन शैली में परिवर्तन।
हम दिल को खोलें और आलोकित होकर आंतरिक रूप से पूरी तरह बदल जायें। एक प्रमुख बिन्दु
जिसमें ईश्वर और मनुष्य भिन्न है वह है- घमंड। ईश्वर में घमंड नहीं है क्योंकि वे पूरी
तरह पूर्ण हैं और हम मनुष्यों को प्रेम और जीवन देते हैं जिसमें घमंड गहरे रूप से जड़
जमाये है और इसलिए हमें निरंतर सतर्कता और शुद्धता की जरूरत होती है। हम जो छोटे हैं
महान दिखाई देने की, पहला बनने की इच्छा करते हैं जबकि ईश्वर जो वास्तव में महान हैं
वे विनम्र बनने और सबसे पिछला होने से नहीं डरते हैं। कुँवारी माता मरिया पूरी तरह से
ईश्वर के साथ संयुक्त है। हम विश्वासपूर्वक उनकी मध्यस्थता की याचना करें ताकि वे हमें
प्रेम और विनम्रता के पथ पर येसु का निष्ठापूर्वक अनुसरण करने के लिए सिखायें। इतना
कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक
आशीर्वाद प्रदान किया।