2012-09-21 11:32:31

वर्ष ‘ब’ तेईसवाँ रविवार – 9 सितंबर, 2012


नबी इसायस का ग्रंथ 35, 4-7
संत याकूब 2, 1-5
संत मारकुस 7, 31-37
जस्टिन तिर्की, ये.स.
मठवासी की कहानी
मित्रो, आज मैं आपलोगों को एक कहानी बताता हूँ जो पाँचवी सदी की है जिसे सन 1984 ईस्वी में अमेरिका के राष्टपति रोनाल्ड रीगन ने बताया था। उस कहानी में उन्होंने एक मठवासी की चर्चा की थी। पाँचवी शताब्दी में तुर्की का एक मठवासी रोम आया। उस मठवासी का नाम था तेलेमाकुस। जब वह वहाँ आया तो वह रोम शहर में अवस्थित कोलोसियम के पास पहुँचा। वहाँ उसने देखा की लोग कुछ तमाशा देख रहे हैं। जब वह करीब पहुँचा तो उसने पाया कि दो व्यक्ति आपस में लड़ रहे हैं । ये दोनों व्यक्ति गुलाम थे और दोनों के बीच लड़ाई चल रही थी और लोग इस लड़ाई का आनन्द ले रहे थे। उस समय की परंपरा थी कि लोग आज के युग के मुर्गा लड़ाई के समान गुलामों की लड़ाई का आनन्द लेते थे।और इस प्रकार की लड़ाई में किसी एक को अपने जान से हाथ धोना पड़ता था। दो मनुष्यों के बीच लड़ाई का मज़ा लेना तेलेमाकुस से सहा न गया। उन्होंने अपने दिल की आवाज़ सुनी और वह भीड़ को चीरता हुआ सामने गया। और उन दोनों लड़ने वालों के बीच जाकर खड़ा हो गया और कहा ईसा मसीह के नाम पर मैं कहता हूँ लडाई बन्द करो। तेलेमाकुस चिल्लाता रहा पर किसी ने उसकी बात न सुनी। ठीक इसके विपरीत लोग तेलेमाकुस के उपर यह कहते हुए टूट पड़े कि उसने उनके कार्यक्रम में बाधा डाली है और उसे मारना-पीटना शुरु किया। थोड़ी ही देर में तेलेमाकुस गिर पड़ा और उसका शरीर खून से लथपथ हो गया। उसे फड़फड़ता देख लोग वहाँ से भागने लगे। तेलेमाकुस के सिर से इतना खून बह गया था कि कुछ घंटों के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। जब रोम के सम्राट को इस घटना की ख़बर मिली तब उन्होंने एक फ़रमान निकाला कि गुलामों की लड़ाई का खेल अब बन्द किया जाता है। गुलामों की लड़ाई का खेल तो बन्द हो गया पर उसके लिये एक मठवासी को जीवन देना पड़ा। कई बार अच्छे और सच्चे कार्य करने वाले अपने जान की परवाह नहीं करते हैं । वे एक बार अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन लेते हैं तो वे उस पर अडिग रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उनके कार्यों का पुरुष्कार दुनियावी सम्मान से कई गुना बड़ा है।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘ब’ के 23वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। आइये आज हम संत मारकुस रचित सुसमाचार के 7वें अध्याय के 31 से 37 पदों को सुनें जहाँ येसु एक बहरे को चंगा करता है ताकि वह लोगों को सुन सके ताकि वह ईश्वरीय वाणी को सुन सके और अपने जीवन को ईश्वर के योग्य बना सके।
सुसमाचार पाठ –संत मारकुस 7, 31-37
येसु तीरुस प्रांत से चले गेय। वह सिदोन होकर और देकापोलिस का प्रांत पार कर कलीलिया के समुद्र् के पास पहुँचे । लोग एक बहरे-गूँगे को उनके पास ले आये और उन्होंने यह प्रार्थना की कि आप उस पर हाथ रख दीजिए। येसु ने उसे भीड़ से अलग एकांत में ले जा कर उसेक कानों में अपनी उँगलियाँ डाल दीं औऱ उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया। फिर आकाश की ओर आँखे उठा कर उन्होंने आह भरी और उससे कहा, " एफ़ेता" अर्थात् "खुल जा"। उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बंधन छूट गया, जिससे वह अच्छी तरह बोलने लगा। येसु ने लोगों को आदेश दिया कि वे यह बात कसी से नहीं कहें, परन्तु वह जितना ही मना करते थे, लोग उतनी ही इसाक प्रचार करते थे। लोगों के आश्चर्य की सीमा न थी, वे कहते रहते थे, वह जो कुछ करते हैं, अच्छी ही करते हैं। वह बहरों को कान और गूँगों को वाणी देते हैं"।
आवाज़ सुने, आवाज़ बनें
मित्रो, मेरा पक्का विश्वास है कि आपने प्रभु की वाणी को ध्यान से पढ़ा है। जब कभी हम प्रभु की वाणी को ध्यान से सुनते हैं हमें औऱ हमारे परिवारों के लिये वरदान सिद्ध होते हैं। मित्रो, अगर हम आज सुसमाचार में वर्णित घटना पर गौ़र करेंगे तो हम पायेगे कि येसु आज हमें इस बात के लिये निमंत्रण दे रहे हैं कि उन्हें सुने। हम उनके वचनों पर गौर करें और उनके वचनों से प्रेरणा प्राप्त कर हम उन प्रभु की आवाज़ बने ताकि इससे बहुतों को मुक्ति प्राप्त हो सके। मित्रो, मेरा विश्वास है कि आपने गूँगे-बहरे को सुनने की शक्ति प्रदान करने वाली इस घटना को बारीकी से सुना है। मुझे इस चमत्कार की घटना में तीन बातों ने प्रभावित किया है। पहली बात तो है कि उस गूँगे-बहरे व्यक्ति को लोगों ने येसु का पास लाया। लोगों की भूमिका का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। जब कभी हम बीमार होते हैं या किसी प्रकार की शारीरिक मानसिक या आध्यात्मिक रूप से कमजोर होते हैं। वे अपने से जीवन में बड़ा कार्य नहीं कर सकते हैं। भले ही दूसरों के लिये कार्य सहज लगे। भले ही उस व्यक्ति को यह मालूम हो जाये कि उसे क्या करना चाहिये। सच बात तो यह है कि कमजोर व्यक्ति को समाज के सहारे की आवश्यकता है। और अगर समाज जागरुक है और उसकी मदद करता है तो उस व्यकित का तो कल्याण होता ही है पूरे समाज को भी इसका लाभ मिलता है।
एक बीमारी से कई बीमारियाँ
आज के सुसमाचार में हम पाते हैं कि उस गूँगे-बहरे व्यक्ति को कुछ लोगों ने येसु के पास ले आया। यह व्यक्ति न केवल गूँगा है पर बहरा भी है। कई बार हमने यह सुना है कि लोग न केवल एक बीमारी के शिकार होते हैं पर जब उन्हें एक बीमारी पकड़ लेती है तो वे कई अन्य बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं कई अन्य बुरी लतों में भी फँस जाते हैं। जो नशे के शिकार होते हैं वे न केवल अपनी बरबादी करते पर घर-द्वार को ही बेचने लग जाते हैं। जो झूठ बोलते हैं वे सिर्फ़ एक झूठ नहीं बोलते हैं। जो घमंडी होते हैं वे सिर्फ़ घमंड नहीं करते पर वे दूसरों का अनादर करते हैं आदि, आदि। मित्रो, और हम यह भी न सोचें कि हममें कोई कमजोरियाँ नहीं हैं। आज ज़रूरत है ऐसे भले लोगों की जो हमें येसु के पास लायें ऐसे लोगों की जो हमें प्यार से येसु के चरणों में लायें जहाँ पर येसु हमारे ऊपर अपना हाथ रखें और हम उनकी आवाज़ को सुन सकें।
प्रभु के लिये व्यस्त
मित्रो, दूसरी बात जिसने मुझे प्रभावित किया है वह है येसु ने उस गूँगे-बहरे को भीड़ से अलग कर लिया।
मित्रो, यह हमारे जीवन के लिये अति महत्त्वपूर्ण है कि हम प्रभु के साथ कुछ अलग हो जायें। लोगों को हमने कई बार यह कहते हुए सुना है कि वे अति व्यस्त हैं। आज प्रभु चाहते हैं कि हम व्यस्त तो रहें पर इस पर भी गौर करें कि क्या हम थोड़ा-सा समय प्रभु के साथ निकाल पा रहें हैं। येसुमय जीवन के लिये यह आवश्यक है कि हम येसु के लिये थोड़ा समय देते हैं। कई लोगों के मुँह से हमने सुना है कि वे सोने जाने के पूर्व कुछ देर मौन रह कर बिताना चाहते हैं वे प्रभु के लिये कुछ समय देते हैं और प्रभु उन्हें दुआयें और आशीर्वाद देते हैं। कई लोग अपना काम करने के पूर्व अपना समय प्रभु के लिये देते हैं। कई लोग यात्रा करने के पूर्व अपने-आपको सौंप देते हैं। कई लोग जागते साथ ही अपना सबकुछ प्रभु के हाथों में सौप देते हैं और ऐसा करना उनका दिनचर्या बन जाता है और प्रभु भी ऐसे लोगों की आत्मा का मार्गदर्शन करते रहते हैं।
प्रभु पर भरोसा
मित्रो, इस प्रकार हमने पाया कि हमारे जीवन में हमारे मित्रों पड़ोसियों और आस पास रहने वालों का बहुत महत्व है साथ ही यह भी आवश्यक है कि हम प्रभु के लिये समय निकालें और तीसरी बात जिसने मुझे प्रभावित किया है वह है प्रभु पर भरोसा रखने से वे सबकुछ को नया कर देते हैं। प्रभु सब ही दरवाज़े खोल देते हैं। प्रभु के लिये कोई कार्य असंभव नहीं है।
प्रभु के लिये दुःख
मित्रो, कई बार ऐसा लगे कि प्रभु हमारी प्रार्थना नहीं सुन रहे हैं कई बार लगे कि प्रभु ही बहरे और अंधे हैं और प्रभु का ह्दय कठोर है पर प्रभु उचित समय में उत्तम फल पुरस्कार और भरपुर आशिष देते ही हैं वे जो करते हैं भला ही करते हैं। याद कीजिये तुर्की के उस मठवासी तेलेमाकुस को जिसने अपनी आत्मा की आवाज़ सुन कर गुलामों के लड़ने के खेल के अन्त का प्रयास किया, खुद मारा गया पर ईश्वर ने इस प्रथा का अंत करा दिया। ईश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के रास्ते में दुःख है पीड़ायें हैं पर इन सबसे ईश्वरीय पुरस्कार कई गुना बड़ा अच्छा और शांतिदायक है।









All the contents on this site are copyrighted ©.