विधि-विवरण ग्रंथ 4, 1-2,6-8 याकूब का पत्र 1, 17-18.21-22, 27-29 संत मारकुस 7,
1-8, 14-15, 21-23 जस्टिन तिर्की,ये.स.
एक मुसलमान की कहानी आप लोगों को
एक कहानी बताता हूँ जो एक मुसलमान के बारे में है। इस कहानी को बार्कले नामक एक विद्वान
अपने प्रवचन में लोगों को बताया करते थे। एक समय की बात है दो मुसलमान एक साथ रहा करते
थे। एक दिन पहला मुसलमान अपने एक मित्र इस इतना नाराज हुआ कि वह उसे मारना चाहा। दूसरा
मुसलमान भागने लगा। तब पहला अपने घोड़े पर सवार होकर उसका पीछा करने लगा। उसके हाथ में
एक तलवार थी। उसने निश्चय कर लिया था कि वह उस व्यक्ति अब ज़िन्दा नहीं छोड़ेगा। वह मुसलमान
अपना घोड़ा दौड़ाता रहा और वह व्यक्ति भी भागता रहा। कुछ घटों तक पीछा करने के बाद एक
घटना घटी। उस मुसलमान ने मस्जिद से आ रही आज़ान को सुना। मुल्ला की आवाज़ सुनकर वह घोड़े
से उतर गया और नमाज़ पढ़ा। जब नमाज़ समाप्त हो गया था उसने घोड़े पर सवार होकर और भी
उत्साह से अपने उस साथी का पीछा करने लगा। वह तबतक उसके पीछे अपना घोड़ा दौड़ाता रहा
जब तक उसने उसे न पा लिया। अपने उस मित्र के पास पहुँचने के बाद उसने उसे मार डाला और
तब ही वह वापस लौटा।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिंतन कार्यक्रम के अंतर्गत
पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘ब’ के 22वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार हम मनन-चिन्तन
कर रहें हैं। मानव जीवन की एक विशेषता रही है कि कई बार वह अपने कामों इसलिये करता है
क्योंकि किसी ने उसे बता दिया है। कई बार मानव किसी कार्य को इसी लिये करता है क्योंकि
उसके घर वाले करते रहें हैं। और कई बार मानव किसी काम को इसलिये पूरा करता है क्योंकि
यह एक रूटीन है। मित्रो, किसी भी कार्य को बिना समझे या बुझे करने से हम सच्चे मनुष्य
नहीं बन सकते हैं और इससे मानव का कल्याण कभी नहीं हो सकता है। उस मुसलमान ने नमाज पढ़ी
या हम कहें नमाज़ पढ़ने का रीति-रिवाज़ पूरा किया और बाद में अपने उस मित्र को क्षमा
देने के बदले उसने उसकी हत्या कर दी। मित्रो, आज आइये हम पवित्र बाईबल से एक पाठ को सुनें
जिसे संत मारकुस के 7वें अध्याय के 1 से 23 पदों से लिया गया है। इन शब्दों में येसु
यही बताने का प्रयास कर रहे हैं कि हम अपना जीवन का दिखावा न करें हम सिर्फ़ मुख से ईश्वर
और पड़ोसियों को प्यार न करें पर दिल से अपना कार्य करें क्योंकि यही जीवन देता है।
सुसमाचार
पाठ संत मारकुस 7, 1-23 फरीसी और येरुसालेम से आये हुए कई शास्त्री येसु के पास इकट्ठे
हो गये । वे यह देख रहे थे कि उनके शिष्य अशुद्ध याने बिना धोये हुए हाथ से रोटी खा रहें
हैं। पुरखों की परंपरा के अनुसार फ़रीसी और सभी यहूदी बिना हाथ धोये भोजन नहीं करते।
बाज़ार से लौट कर वे अपने ऊपर पानी छिड़के बिना भोजन नहीं करते और वे बहुत-से अन्य परंपरागत
रिवाज़ों का पालन करते हैं- जैसे प्यालों, सुराहियों और काँसे के बर्त्तनों का शुद्धीकरण।
इसलिये फ़रीसियों और शास्त्रियों ने येसु से पूछा, " आपके शिष्य पुरखों की परंपरा के
अऩुसार क्यों नहीं चलते ? वे क्यों अशुद्ध हाथों से रोटी खाते हैं ? येसु ने उत्तर दिया,
" इसायस ने तुम ढोंगियों के विषय में ठीक ही भविष्यवाणी की है। जैसा कि लिखा है- ये लोग
मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका ह्रदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी पूजा
करते हैं और जो शिक्षा ये देते हैं, वह है मनुष्य के बनाये हुए नियम मात्र। तुम लोग
मनुष्य की चलायी हुई परंपरा बनाये रखने के लिये ईश्वर की आज्ञा टाल देते हो। " येसु ने
बाद में लोगों को फिर अपने पास बुलाया और कहा, " तुम लोग सब के सब, मेरी बात सुनो और
समझो। ऐसा कुछ भी नहीं है जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके. बल्कि
जो मनुष्य में से निकलता है वही उसे अशुद्ध कर देता है। क्योंक् बुरे विचार भीतर से ही,
अर्थात् मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या परगमन, लोभ, विद्वेष, छल-कपट,
लम्पटता, ईर्ष्या, झूठी निन्दा, अहंकार और मूर्खता-ये सब बुराईयाँ भीतर से निकलती हैं
औऱ मनुष्य को अशुद्ध कर देती हैं।"
रीति-रिवाज़ मित्रो, मेरा विश्वास है आपने
प्रभु के वचन को ध्यान से सुना है। प्रभु आज हमें बताना चाहते हैं कि समाज में प्रचलित
रीति-रिवाज़ कई बार अर्थहीन हो जाते हैं। प्रभु आज हमसे कहना चाहते हैं कि यदि हम उन
बातों को नहीं समझते हैं जिन्हें हम करते हैं तो इससे समाज का कल्याण नहीं होगा। प्रभु
हमसे यह भी कहना चाहते हैं कि यदि हम किसी भी भले कार्य को इसलिये करते हैं क्योंकि यह
एक दिनचर्या या रूटीन है तो इससे भी मानव का कल्याण नहीं होगा। श्रोताओ प्रभु हमसे यह
भी बताना चाहते हैं कि यदि हम अपने को बाहर से सजाते हैं पर हमारे दिल को अपने गुणों
से या अच्छे मनोभावों से नहीं सिंगारते हैं तो यह सच्चा जीवन नहीं है। इससे हम दूसरों
को तो दुःख देते ही हैं खुद अपने जीवन में भी इससे कोई संतुष्टि नहीं मिलती है।
दिखावा मित्रो,
येसु मसीह ने अपने जीवन काल में इस बात को ध्यान से देखा था कि कैसे समाज का एक तबका
जिसे लोग फरीसी और सदूकियों के रूप में जानते थे नियमों और परंपराओं का पालन इसलिये करते
थे क्योंकि वे समाज को यह दिखाना चाहते थे कि धर्मी हैं वे भले हैं उनकी धार्मिकता औरों
से महान है। मित्रो, आज आपने प्रभु के दिव्य वचनों को सुना उसमें ढोंगी जीवन पर कुठाराघात
करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग सिर्फ़ मुँह से मेरा आदर करते हैं पर ह्रदय से नहीं। मित्रो,
प्रभु की वाणी आज के लोगों के लिये भी खरा उतरती है। जो लोग सोचते हैं कि सिर्फ़ मुँह
से मीठी-मीठी बात करने से ही दुनिया बदल जायेगी ऐसे लोग न केवल दूसरों को धोखा दे रहे
हैं वरन् खुद भी अपनी शांति गँवा रहे हैं। जो लोग सिर्फ़ अच्छी बातें करते हैं पर उसके
अनुसार न कार्य करते हैं औऱ दूसरों को भला कार्य करने देते हैं ऐसे लोगों के जीवन से
समाज का कभी कल्याण नहीं होता है। श्रोताओ, प्रभु आज हमें बताना चाहते हैं कि वही योग्य
इंसान है जो उन्हीं सच्ची बातों को कहता है जिसे वह अपने अच्छे मन से सोचता है और उसी
कार्य को करता है जिसे वह अच्छे मुख से बोलता है।
सत्य की चुनौती मित्रो,
आज के समाज की चुनौती है कि व्यक्ति हर तरह से वह सत्य के बारे में विचार करे सत्य वचन
वोले और उसे समझे और उसी के समान आचरण भी करें। लोग आज आसानी से सत्य से भटक जाते हैं.
लोग आज आसानी से उन कार्यो करने और बोलने लगते हैं जिससे सिर्फ लोगों को लगता है कि वह
भला है पर वे वास्तव में भले नहीं होते हैं।वे ऐसा सिर्फ़ इसलिये करते हैं कि उन्हें
लाभ हो। प्रभु येसु सदा यही चाहते थे कि लोगों की बातों कार्यों रीति-रिवाज़ों से सबका
कल्याण हो। श्रोताओ आपने गौ़र किया होगा कि प्रभु येसु का आरंभ से यह मिशन रहा है कि
लोग ईमानदार बनें लोग दूसरों के हित के लिये कार्य करें और यह दुनिया सुन्दर बनें और
इससे सबका कल्याण हो। और आपने यह भी ध्यान दिया होगा कि जब-जब प्रभु येसु ऐसे लोगों से
मिलते हैं जो सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिये कार्य करते हैं जो दिखावा करते हैं जो नियमों
का पालन इसलिये करते हैं ताकि लोग उनकी तारीफ़ करें और सोचें कि वे भले हैं तो ऐसे लोग
समाज के लिये हितकारी नहीं होते हैं। इसीलिये येसु ऐसे लोगों को धिक्कारते हैं। प्रभु
ऐसे लोगों को डाँटते हैं और कहते हैं ऐसे लोग समाज के लिये हितकारी नहीं है ऐसे लोगों
से समाज का वातावरण गंदा होता है। ऐसे लोगों के व्यवहार से समाज कदापि सुन्दर नहीं बन
सकता है। श्रोताओ आज विचार करने योग्य बात यह है कि जब कभी हम ढोंगियों के बारे में सुनते
हैं जब कभी हम पाते हैं कि प्रभु फरीसियों और सदूकियों को डाँटते हैं तो हम सोचने लगते
हैं कि हम तो फरीसियों के समान नहीं है।
प्लास्टिक फूल न बनें मित्रो, आज
प्रभु हमसे इस बात को बताना चाहते हैं कि जब भी हम किसी काम को प्रभु के लिये नहीं करते
हैं तो हम ढोगियों के समान ही बर्ताव करते हैं। जब कभी हम ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं कि
हम अब से भला कार्य करेंगे और कर्म से ऐसा नहीं कर पाते हैं। जब कभी हम अच्छे कार्यों
को इसलिये करते हैं कि लोग हमें देखें कि हम कितने भले हैं। जब कभी हम किसी के सामने
मुस्कराते हैं पर उसके चले जाने के बाद उसकी भलाई की कामना नहीं करते हैं तो हम भी उस
पलास्टिक के फूल के समान हैं जिसमें कोई सुगन्धि नहीं। कई बार हम नियमों के पालन तो कर
लेते है पर उसमें छिपी अच्छी बातों को अपने जीवन में नहीं उतारते हैं ठीक उन फरीसियों
की तरह जो बारीकी हाथ धोते थे बारीकी से बर्तन को साफ करते थे पर उनके दिल में लोभ,
विद्वेष, छल-कपट, लम्पटता, ईर्ष्या, झूठी निन्दा, अहंकार भरा था जो मानव जीवन को दूषित
और कलंकित करता है। उस मुसलमान ने भी मुल्ले की आजान सुनकर नमाज तो पढ़ा पर आखिर अपने
दोस्त को मार डालने के लिये ढूँढ़ता रहा।
ईमानदार बनें मित्रो, प्रभु
की पुकार है हम ईमानदार बनें हम जो अच्छी बातें सुनें वही बोलें और जो अच्छी बातें बोलें
वैसा ही हमारा आचरण हो । मित्रो, जरा सोचिये, अगर हम ऐसा नहीं करते तो हम फरीसियों, ढोंगियों
और कहानी वाले मुसलिम से किस तरह से भिन्न हैं ?