2012-09-21 11:34:20

वर्ष ‘ब’ का चौबीसवाँ रविवार - 16 सितंबर, 2012


नबी इसायस 50,5-9
याकूब का पत्र 2,14-18
संत मारकुस 8, 27-35
जस्टिन तिर्की, ये.स.
मेरी की कहानी
आप लोगों को आज मैं एक कहानी बताता हूँ जो सात साल की एक बच्ची के बारे में है। उसका नाम था मेरी। मेरी के पिताजी बैंक में काम किया करते थे। मेरी परिवार में सबसे बडी़ थी। सब लोग उसे बहुत प्यार करते थे। मेरी बहुत ही बातूनी थी। जब मेरी स्कूल जाने लगी तो उसे बहुत-सी बातों के बारे में जानकारी प्राप्त होने लगी। जब वह घर से बाहर निकलती तो उसके मन में सवाल-ही-सवाल होते। वह सब चीजों के बारे में जानना चाहती थी। जब वह अपने पिताजी के साथ स्कूल जाती तो रास्ते में वह हर प्रकार के सवाल करती। यह क्या है वह क्या है। गाड़ी क्यों चलती है, क्यों धीरे चलती है, क्यों तेजी से चलती है, क्यों इससे आवाज़ निकलती है, और क्यों लोगों को लेकर चलती है। पिताजी कई बार मेरी का जवाब देते-देते थक जाते थे और कहा करते थे अब बन्द करो सवाल करना अपनी पढ़ाई के बारे में सोचो। एक दिन की बात है जब मेरी स्कूल से घर आयी तो उसने अपनी माँ को बतलाया कि शिक्षक ने उसे गणित पढाया है और उसने जोड़-घटाव या हम कहें ‘माईनस और पल्स’ के बारे में बताया है। मेरी बहुत खुश थी। उसने अपने छोटे भाई को भी इस ‘माइनस चिह्न और प्लस चिह्न’ के बारे में बताया और कहा कि कैसे एक और एक को जोड़ने से दो और दो और दो जोड़ने से चार हो जाता है। माता-पिता भी प्रसन्न थे कि मेरी ने जोड़ना सीख लिया। उस दिन के बाद से मेरी जहाँ भी जोड़ या प्लस का चिह्न देखती तो वह स्कूल के गणित के बारे में बताने लगती। जहाँ भी वह घटाव या माइनस का चिह्न देखती तब भी वह गणित के बारे में बताने लगती। एक रविवार को मेरी के माता-पिता उसे रविवार के मिस्सा-पूजा में भाग लेने के लिये पास के गिरजाघर चले गये। जब मेरी गिरजाघर में गयी तो देखा एक वेदी है जहाँ एक पुरोहित मिस्सा-पूजा सम्पन्न कर रहे हैं। वेदी के ऊपर कुछ किताबें हैं वेदी के दोनों ओर फूल रखे हुए हैं और बीच में एक क्रूस रखा हुआ है। मेरी से रहा नहीं गया उसने अपने पिताजी से पूछा। पिताजी यहाँ विन्ती प्रार्थना करना है या गणित का क्लास करना है। पिताजी ने कहा कि यहाँ तो प्रार्थना करना है। तब मेरी ने कहा पर उस जोड़ चिह्न की क्या ज़रूरत है वेदी में। पिताजी ने मुस्कराते हुए मेरी की आँखों में देखकर कहा। बेटी यह क्रूस है और इसी क्रूस पर येसु ने अपने प्राण दिये ताकि पूरी दुनिया को इसका लाभ मिले। यह सही में जोड़ चिह्न है जो सबको जोड़ता है। यह सच में ‘प्लस’ या ‘जोड़’ चिह्न है यह सबको भला अच्छा और सच्चा बनने की प्रेरणा देता है। और इसका प्रभाव सकारात्मक या पोजिटिव ही है।

मित्रो, आज हम रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन-विधि पंचाग के वर्ष ‘ब’ के 24वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार हम मनन- चिन्तन कर रहे हैं। आज प्रभु हमें आमंत्रित करते हुए कह रहे हैं कि जो भी मेरा अनुसरण करना चाहे वह अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे चले। ऐसा करने से ही मानव अपने जीवन का उत्तम पुरस्कार प्राप्त करेगा। आइये अभी हम संत मारकुस रचित सुसमाचार के 7 अध्याय के 27 से 35 पदों पर चिन्तन करें।


सुसमाचार पाठ –मारकुस 7, 27-35

येसु अपने शिष्यों के साथ कैसिरिया फ़िलिप्पी के गाँवों की ओर चले गये। रास्ते में उन्होंने शिष्यों से पूछा, मैं कौन हूँ, इसके विषय में लोग क्या कहते हैं। उन्होंने उत्तर दिया, "योहन बपतिस्ता, कुछ लोग कहते हैं - एलियस, और कुछ लोग कहते हैं –नबियों में कोई"। इस पर येसु ने पूछा, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हू?" पेत्रुस ने उत्तर दिया, "आप मसीह हैं" । इस पर उन्होंने अपने शिष्यों को कडी़ चेतावनी दी कि तुम लोग मेरे विषय में किसी को भी नहीं बताना। उस समय से येसु अपने शिष्यों को स्पष्ट शब्दों में यह समझाने लगे कि मानव पुत्र को बुहत दुःख उठान होगा, नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाना, मार जाला जान और तीन दिन के बाद जी उठना होगा। पेत्रुस येसु को अलग ले जा कर समझाने लगा, किन्तु येसु ने मुड़ कर अपने शिष्यों की ओर देखा और पेत्रुस को डाँटते हुए कहा, "हट जाओ शैतान। तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।" येसु ने अपने शिष्यों के अतिरिक्त लोगों को भी अपने पास बुला कर कहा, "यदि कोई मेरा अनुसरण करना चाहे, तो वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले। क्योकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा तथा जो मेरे तथा मेरे सुसमाचार के कारण अपना जीवन को देता है, वही उसे सुरक्षित रखेगा।"

मित्रो, मेरा विश्वास है कि आप लोगों ने आज के प्रभु के दिव्य वचनों को अवश्य ही ध्यान से सुना है। मेरा यह भी विश्वास है कि प्रभु के वचनों को सुनने से प्रभु ने आपके परिवार तथा आपके दोस्तों एवं मित्रों को अपनी आशिष प्रदान की है। मित्रो, आज के प्रभु के वचनों पर मनन करते समय तीन बातों ने मुझे प्रभावित किया। पहली बात तो है कि प्रभु जानना चाहते हैं कि लोग और उसके चेले उसके बारे में क्या कहते हैं।

व्यक्तिगत जवाब
मित्रो, चेलों के लिये यह बताना आसान था कि लोग उसके बारे में क्या कहते हैं उन्होंने तुरन्त बतलाया कि कुछ उन्हें नबी तो कुछ उन्हें एक महान व्यक्ति समझते हैं कुछ उसे महान गुऱु समझते हैं। यह तो आसान था बतलाना मित्रो क्योंकि यह व्यक्तिगत सवाल नहीं था। पर येसु को तो व्यक्तिगत जबाव का इंतज़ार था। उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा कि वे क्या कहते हैं कि येसु कौन हैं। आपने ग़ौर किया होगा कि उनके शिष्यों के लिये यह बताना उतना आसान नहीं था। पर पेत्रुस ने चेलों की ओर से कहा कि वे मसीहा हैं।

मित्रो, जिस प्रभु के बारे में हमने सुना है, जिस ईश्वर के बारे में हमने सुना है जिस मुक्तिदाता के बारे में हमने दूसरों से सुना है, उसके बारे में - हम क्या सोचते हैं। क्या कभी आपने इस सवाल का जवाब खोजा है। क्या हमने अपने अंतःकरण से इस विषय में पूछा कि ईश्वर मेरे लिये कौन है कि येसु मेरे लिये कौन हैं? मित्रो, क्या कभी हम अपने आपसे यह सवाल करते हैं कि मेरे माता पिता कौन हैं मेरे लिये? क्या हम यह भी सवाल करते हैं कि जिनके साथ हम रहते हैं वे कौन हैं हमारे लिये? मित्रो, आज हम यह अपने आप से जरूर पूछें कि मैं कौन हूँ और मुझे बनाने वाला कौन है और मुझे उसके लिये क्या करने की ज़रूरत है। अगर हमने यह ज़वाब पा लिया कि प्रभु हमारे लिये कौन हैं तब प्रभु हमें यह अवश्य बतलायेंगे कि हमें क्या करना है ताकि हमारा जीवन सफल हो सके।



मसीही जीवन का अर्थ

मित्रो, अगर आपने आज के सुसमाचार के अंतिम पदों पर गौ़र किया होगा तो आपने पाया होगा कि जैसे ही पेत्रुस यह कहते हैं कि येसु मसीह हैं तब येसु ने कहा कि मसीही जीवन का क्या अर्थ है। उन्होंने बतलाया कि मसीही जीवन का अर्थ है ईश्वर के लिये दुःख उठाना और मारा जाना। मित्रो, कई बार हम सोचते हैं कि मसीही जीवन का अर्थ है प्रेमपूर्ण शांतिमय जीवन। अगर हमने प्रभु के जीवन पर विचार किया होगा तो पाया होगा की मसीही जीवन या समर्पित जीवन या हम कहें सिद्धांतों के लिये जीवन जीना आध्यात्मिक पुरस्कारों से भरा है पर आसान नहीं है। मित्रो, येसु हमें आज बतलाना चाहते हैं कि यदि हम येसु का अनुसरण करना चाहें तो हमें क्या करना है।

प्रभु की तीन बातें
प्रभु हमें तीन बातें बताते हैं वे कहते हैं कि हमें आत्मत्याग करना है। दूसरा हमें अपना क्रूस उठाना है और तीसरा हमें प्रभु के पीछे चलना है। अगर हम प्रभु के आमंत्रण पर गौ़र करें तो हम पायेंगे कि प्रभु के संदेश को तीन शब्दों में प्रस्तुत कर सकते हैं आत्मत्याग, क्रूस और अनुसरण। मित्रो, जब हम आत्मत्याग की बातें करते हैं तो मेरे मन में दो बातें आती हैं। पहली कि प्रभु हमसे चाहते हैं कि हम प्रभु के प्यार के लिये उन बातों को करें जो अच्छी हैं यद्यपि इसे करना कठिन है और उन बातों का लतों का बुरी भावनाओं और संगति का त्याग करें जो हमें बरबाद करते हैं।

क्रूस उठाना
क्रूस के बारे में बातें करने हुए प्रभु हमें बताते हैं कि क्रूस उठाना अर्थात् ईश्वर की इच्छा पूरी करना है। विद्वानों ने कहा है कि जब हमारी इच्छाओं के उपर से ईश्वर की ईच्छा गुजरती है या आरपार होती है तब यह हमारे लिये क्रूस बन जाता है। और इसे ढोकर हम आगे बढ़ते हैं तो हम अवश्य ही ईश्वर के पास पहुँचने से हमें कोई नहीं रोक सकता है। और इस तरह मित्रो, येसु के पास जाने के लिये पहली बात है हम आत्म त्याग करें दूसरी बात कि हम अपना रोज दिन का क्रूस उठायें और अंतिम बात मित्रो, कि हम येसु का अनुसरण करें। येसु का अनुसरण करने के लिये हमें चाहिये कि हम येसु की बातों को जानें उसके मूल्यों के अनुसार जीवन बितायें।


येसु के मूल्य
मित्रो, येसु के मूल्य है प्रेम - प्रेम सिर्फ उन्हें नहीं करना जो हमें प्यार करते पर उन्हें भी जो हमें प्यार नहीं करते। येसु का मूल्य है -सबकी भलाई येसु के जीवन का मूल्य है भलाई, अच्छाई और सच्चाई के लिये दुःखों को गले लगाना। ऐसा करने से कई बार हमें लगेगा कि हम अपने जीवन को असुरक्षित कर रहे हैं पर मित्रो, प्रभु स्पष्ट रूप से हमें बता रहें हैं कि यही है क्रूस अर्थात् जोड़ का चिह्न जो सबको जोड़ता है इसी से सबका भला होता है और इसी क्रूस के अर्थ को ही अगर हम अपने जीवन में सही तरीके उतार पाते हैं और खुद दुःख उठाते हैं कि दूसरों का भला हो तो हमें जो जीवन मिलेगा वह उसका कभी अन्त नहीं होगा।








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