लेबनान के वरिष्ठ सराकारी अधिकारियों, कूटनीतिज्ञों तथा कला और संस्कृति जगत के विद्वानों
के लिए संत पापा के सम्बोधन के अंश
बेरूत लेबनान 15 सितम्बर 2012 (सेदोक) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने बाबदा स्थित राष्ट्रपति
भवन में शनिवार 15 सितम्बर को, लेबनान के वरिष्ठ सराकारी अधिकारियों, कूटनीतिज्ञों तथा
कला और संस्कृति जगत के विद्वानों को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा " मैं अपनी शांति तुम्हें
देता हूँ " येसु ख्रीस्त के इन शब्दों से मैं आप सबका अभिवादन करता हूँ और आपकी उपस्थिति
तथा स्वागत सत्कार के लिए धन्यवाद देता हूं। राष्ट्रपति महोदय आपके स्वागत संबोधन और
इस बैठक के आयोजन के लिए मैं कृतज्ञ हूँ। आपके साथ कुछ समय पहले मैंने देवदार का पौधा
रोपा जो इस सुंदर देश का प्रतीक है। इस पौधे को देखते हुए तथा इसे जो सेवा चाहिए ताकि
यह बढे और अपनी शाखाओं को फैलाये मैं इस देश और इसके भविष्य, लेबनान की जनता और उसकी
आशा तथा इस सम्रूर्ण क्षेत्र के लोगों के बारे सोचता हूँ।
संत पापा ने कहा कि
उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की है कि लेबनान तथा इस भूमि में रहनेवाले सबलोगो को वे
आशीष दें जहाँ महान धर्मों और कुलीन संस्कृतियों का उदय हुआ। ईश्वर ने क्यों इस भूमि
को चुना यहाँ जीवन में क्यों इतनी अधिक उतार चढाव है मैं सोचता हूँ कि ईश्वर ने इन प्रदेशों
को चुना कि वे उदाहरण बनें, दुनिया के सामने साक्षी दें कि हर नर नारी के लिए संभावना
है कि शांति और मेलमिलाप के लिए उसकी इच्छा को ठोस रूप से साकार करें। यह आकांक्षा ईश्वर
की अनन्त योजना का भाग है तथा यह आकांक्षा हर मानव के दिल में अंकित है।
संत
पापा ने कहा कि किसी भी देश की सम्पदा प्राथमिक रूप से वहाँ कि निवासियों में है। देश
का भविष्य उनकी व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से शांति के लिए काम करने पर निर्भर करती है।
शांति के लिए समर्पण केवल संगठित समाज में ही संभव हो सकता है। सामाजिक संयोजन के लिए
चाहिए- हर मानव की प्रतिष्ठा का सम्मान करना, अपनी अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार
जिम्मेदारी पूर्ण सहभागिता देना तथा सार्वजनिक हित के लिए योगदान करना। हमारी मानवीय
प्रतिष्ठा को जीवन की पवित्रता से अलग नहीं किया जा सकता है। ईश्वर की योजना में हर व्यक्ति
अद्वितीय और अहस्तांतरणीय है। एक व्यक्ति इस दुनिया में सबसे पहले परिवार में आता है
जो मानवता का पहली ईकाई है तथा शांति की प्रथम पाठशाला है। शांति की रचना करने के लिए
हमें परिवार को देखने की जरूरत है, इसे समर्थन देने तथा इसके काम को सुगम बनाने की जरूरत
है और इस तरह जीवन की संस्कृति का प्रसार किया जाता है। शांति के लिए हमारे समर्पण की
प्रभावशीलता मानव जीवन के प्रति हमारी समझदारी पर निर्भर करती है। यदि हम शांति चाहते
हैं तो जीवन की रक्षा करें। यह अभिगम हमें युद्ध और आतंकवाद को खारिज करने की और ले चलता
है। जहाँ भी मानव प्रकृति के सत्य का हनन किया या इंकार किया जाता है वहाँ यह असंभव हो
जाता है कि मानव दिल में अंकित प्राकृतिक विधान के प्रति आदर दिखायें। हम अपने प्रयासों
को मानव के बारे में मजबूत विजन, मानव प्राणी की एकता और समग्रता के प्रति सम्मान का
विकास करने के लिए संयुक्त करें। इसके बिना यथार्थ शांति की रचना करना असंभव है।
संत
पापा ने कहा कि उन देशों में जहाँ सशस्त्र संघर्ष हो रहे हैं ये युद्ध, निरर्थकता और
भयावहता से भरे हैं। ये सब निजी स्तर पर व्यक्तियों के जीवन और समग्रता पर हमले हैं।
बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, कई प्रकार की लत, शोषण, विभिन्न प्रकार की तस्करी और आतंकवाद
न केवल अस्वीकार्य पीडा उत्पन्न करते हैं लेकिन मानव क्षमता को ही बहुत क्षति पहुँचाते
हैं। मानवजाति एक बड़ा परिवार है जिसके लिए हम सब उत्तरदायी है। कुछ विचारधाराओं द्वारा
हर प्राणी और परिवार के बारे में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किया जानेवाला सवाल
समाज की बुनियाद को कम आंकता है। सौहार्दपूर्ण सहअस्तित्व की रचना करने के हमारे प्रयासों
के खिलाफ इन हमलों के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। केवल सहृदयता की भावना और इसे बढावा
देनेवाली नीतियाँ ही मदद कर सकती हैं। सहयोग और यथार्थ संवाद के उदाहरण नये प्रकार के
सहअस्तित्व के फल उत्पन्न कर रहे हैं। बेहतर जीवन और समग्र विकास संभव है जब एक दूसरे
की अस्मिता के प्रति सम्मान की भावना में धन और दक्षता की शेयरिंग की जाती है। इसके लिए
एक दूसरे पर भरोसा करना बहुत महत्वपूर्ण है। हमारी सांस्कृतिक सामाजिक और धार्मिक भिन्नताएं
हमें एक नये प्रकार के भाईचारे की ओर ले चले जो जहाँ हमें हर व्यक्ति की महानता की भावना
में संयुक्त करे। यही शांति का पथ है। यह वह अभिगम है जि हर स्तर पर तथा वैश्विवक स्तर
पर राजनैतिक और आर्थिक निर्णयों को मार्गदर्शन प्रदान करे।
संत पापा ने कहा
कि भावी पीढियों के लिए शांतिमय भविष्य की रचना करने के लिए हमारा पहला काम शांति के
लिए शिक्षित करना है ताकि शांति की संस्कृति की रचना हो सके। शिक्षा जो परिवार या विद्यालयों
में हो प्राथमिक रूप से आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा हो जो हर संस्कृति की परम्पराओं
और विवेक को अंतिम अर्थ और शक्ति प्रदान करता है। शिक्षा का लक्ष्य सही निर्णय लेने
की स्वतंत्रता का विकास करने के लिए समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करना है। शाब्दिक या
शारीरिक हिंसा को खारिज करना है क्योंकि ये हमलावर या हमले का शिकार होनेवाला, दोनों
की मानवीय प्रतिष्ठा पर आक्रमण है। शांति के विचार, शब्द और कृत्य आदर ईमानदारी और सौहार्द
से भरे माहौल की रचना करते हैं जहाँ त्रुटियों और कमियों को मेलमिलाप के पथ पर अग्रसर
होने के साधन रूप में यथार्थ रूप से स्वीकारा जाता है। इस पर राजनैतिक और धार्मिक नेता
चिंतन करें।
संत पापा ने कहा कि हम बुराई के बारे में भी सचेत हों कि यह दुनिया
में नामरहित, अव्यक्तिगत और निर्धारक शक्ति नहीं है। बुराई या शैतान, मानव की स्वतंत्रता
में और उसकी स्वतंत्रता के उपयोग के द्वारा काम करता है। यह मित्र खोजता है। बुराई को
मनुष्य चाहिए ताकि वह क्रियाशील रहे। पहली आज्ञा ईश्वर के प्रेम को तोड़कर यह दूसरी आज्ञा
पड़ोसी के प्रति प्रेम को विकृत करने की ओर बढ़ती है। पड़ोसी के प्रति प्रेम लुप्त हो
जाता है और झूठ, ईर्ष्या, नफरत और मृत्यु रूपी फल मिलता है। यह संभव है कि हम अच्छाई
से बुराई पर विजय पायें। दिल के इस परिवर्तन के लिए हमें बुलाया जाता है। इसके बिना
मानव की स्वतंत्रता निराशा उत्पन्न करती है क्योंकि मानवीय संकीर्णता, रूखापन, असहिष्णुता,
पक्षपात तथा बदला लेने की भावना के कारण स्वतंत्रता में कमी आ जाती है। केवल क्षमा देने
और पाने के द्वारा ही मेलमिलाप और विश्वव्यापी शांति के लिए टिकाऊ बुनियाद रखी जा सकती
है। इसी के द्वारा संस्कृतियों और धर्मों के मध्य समझदारी और सौहार्द में वृद्धि होगी
तथा सबके अधिकारों के प्रति आदर और परस्पर सम्मान होगा।
संत पापा ने कहा कि
लेबनान में ईसाई और इस्लाम धर्म कई सदियों से साथ-साथ रह हैं। यह असामान्य नहीं है कि
एक ही परिवार में दो धर्मों को माननेवाले रह रहे हैं। यदि यह परिवार के स्तर पर संभव
है तो सम्पूर्ण समाज के स्तर पर कैसे संभव नहीं हो सकता है। मध्य पूर्व की विशिष्टता
कई सदियों के विभिन्न तत्वों के मिश्रण पर है। विविधतापूर्ण समाज का अस्तित्व परस्पर
सम्मान, एक दूसरे को जानने तथा सतत संवाद के आधार पर रह सकता है। इस प्रकार का संवाद
तभी संभव है जब विभिन्न पक्ष उन मूल्यों के अस्तित्व के प्रति सचेत हैं जो सब महान संस्कृतियों
में सामान्य हैं, क्योंकि वे मानव के स्वभाव में गहरे रूप से रोपे गये हैं। धार्मिक
स्वतंत्रता बुनियादी अधिकार है जिसपर अन्य अनेक अधिकार निर्भर करते हैं। जीवन या सम्पत्ति
को खतरे में डाले बिना धर्म का अभ्यास और उसका प्रसार करने की स्वतंत्रता सबके लिए होनी
चाहिए। इस अधिकार को खोना या कम करने से व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से समन्वित जीवन जीने
के पवित्र अधिकार से वंचित होता है। धार्मिक स्वतंत्रता का सामाजिक और राजनैतिक आयाम
भी है जो शांति के लिए अपरिहार्य है। विश्वास को जीया जाता है तो यह प्रेम की ओर ले
चलता है। यथार्थ विश्वास मृत्यु की ओर नहीं ले जाता । शांतिनिर्माता विनम्र और न्यायी
होते हैं। विश्वासियों के लिए अपरिहार्य भूमिका है कि वे ईश्वर से आनेवाली शांति के साक्षी
बनें। परिवार, समाज. राजनैतिक और आर्थिक जीवन में ईश्वर का उपहार है।
संत पापा
ने कहा कि शांति, समाज, व्यक्ति की मर्यादा, परिवार जीवन के मूल्य, संवाद और सह्दयता
पर ये चिंतन आदर्शों के सरल वक्तव्य मात्र नहीं रहें लेकिन इन्हें जीवन में जीया जाये।
हम लेबनान में हैं और यहाँ इन्हें दैनिक जीवन में जीया जाये। लेबनान का आह्वान किया जाता
है कि पहले से कहीं अधिक वह आदर्श, उदाहरण बने। मैं आप सबको, राजनीतिज्ञों, कूटनीतिज्ञों,
धार्मिक नेताओं, संस्कृति जगत के नर-नारियों को आमंत्रित करता हूँ कि साहसपूर्वक हर समय
इसका साक्ष्य दें। ईश्वर शांति चाहते हैं, वे हमें शांति सौंपते हैं। ईश्वर आपको आशीष
दें, धन्यवाद।