2012-09-07 08:37:39

प्रेरक मोतीः सन्त क्लोदोआल्द अथवा क्लाऊद (522-560 ई.)


वाटिकन सिटी, 07 सितम्बर सन् 2012:

सन् 511 ई. में फ्रेंकों के राजा के निधन के बाद राजपाठ, राजा के तीन बेटों के लिये छोड़ दिया गया था। इन्हीं में थे क्लोदोआल्द या क्लाऊद। क्लाऊद का लालन पालन उनकी नानी सन्त क्लोटिलडे ने किया था। क्लाऊद के चाचा क्लोटेयर प्रथम ने तीनों बेटों को मार कर राजपाठ अपने अधीन करने का कुचक्र चलाया जिसमें क्लाऊद के दो भाई जब दस एवं नौ वर्ष की आयु के थे तब ही मार डाले गये। नानी केलोटिलडे की मदद से क्लाऊद भागने में सफल हुए तथा प्रोवेन्स में जाकर उन्होंने शरण ली। प्रोवेन्स में ही उनकी शिक्षा दीक्षा पूरी हुई। बाल्यकाल से नानी क्लोटिलडे ने क्लाऊद को सदाचार की शिक्षा दी तथा उनमें नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को आरोपित किया था।

वयस्क आयु पार कर लेने पर भी क्लाऊद ने अपने पिता का राजपाठ एवं सम्पत्ति वापस लेने का कोई प्रयास नहीं किया तथा प्रभु के नाम पर सांसारिक सुख वैभव का परित्याग कर दिया। अपना सर्वस्व त्याग कर वे भिक्षु जीवन जीने लगे तथा घण्टों चिन्तन एवं प्रार्थना में व्यतीत करने लगे। उनके वैरागी जीवन से आकर्षित होकर कई युवाओं ने उनका अनुसरण किया तथा दूर दूर से उनके पास लोग चंगाई प्रार्थना के लिये आने लगे।

यह देखकर कि समाज एवं लोगों से दूर रहकर जीना सम्भव नहीं था वे पुनः पेरिस लौट आये जहाँ लोगों ने हर्षोल्लास के साथ उनका स्वागत किया। लोगों के निवेदन पर उन्हें पुरोहित तथा सन् 551 ई. में धर्माध्यक्ष अभिषिक्त किया गया। यहीं पर रहकर उन्होंने कलीसिया एवं लोगों की सेवा की। नोगेन्ट-सुर-साईने में उन्होंने एक मठ की स्थापना की जो आज सन्त क्लाऊद मठ और गिरजाघर के नाम से विख्यात है। इसी गिरजाघर में सन्त क्लाऊद के पवित्र अवशेष भी सुरक्षित हैं। सन् 560 ई. में क्लाऊद का निधन हो गया था। सन्त क्लाऊद का पर्व 07 सितम्बर को मनाया जाता है।

चिन्तनः सत्य एवं ईश्वर की खोज ही हमारे जीवन के समस्त कार्यों का लक्ष्य बने।








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