नई दिल्लीः अदालत ने धर्मान्तरण विरोधी कानून के कुछ अंशों को बताया असंवैधानिक
नई दिल्ली, 04 सितम्बर सन् 2012 (ज़ेनित): हिमाचल प्रदेश के धर्मान्तरण विरोधी कानून
के कुछ अंश असंवैधानिक घोषित कर दिये गये हैं। भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन
की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश की उच्च अदालत ने घोषित कियाः "व्यक्ति को केवल
अन्तःकरण की स्वतंत्रता, धार्मिक विश्वास की अभिव्यक्ति और धर्म परिवर्तन का ही अधिकार
नहीं है अपितु अपने धार्मिक विश्वास को गुप्त रखने का भी अधिकार है।" धर्माध्यक्षीय
सम्मेलन की रिपोर्ट ने अदालत के निर्णय को "एक ऐतिहासिक फ़ैसला" निरूपित किया। सन् 2011
में ख्रीस्तीय संगठनों द्वारा दायर एक अपील की सुनवाई करते हुए उच्च अदालत ने यह फैसला
दिया। अदालत के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में सन् 2006 में पारित तथा सन् 2007 से लागू
धर्मान्तरण विरोधी कानून की धारा 4 का नियम 3 एवं नियम 5 संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन
करते हैं। इन नियमों के तहत एक धर्म से दूसरे धर्म में स्वैच्छिक धर्मपरिवर्तन अवैध है
तथा जाँचड़ताल एवं मैजिस्ट्रोट की अनुमति सहित, एक लम्बी प्रक्रिया के बाद ही यह सम्भव
हो सकता है। धारा 4 के तहत हिन्दु धर्म को छोड़कर सभी अन्य धर्मों में धर्मान्तरण
के इच्छुक व्यक्ति को तीस दिन के अन्दर अधिकारियों को सूचना देनी पड़ती है जबकि नियम
3 और नियम 5 के अनुसार राज्य को धर्मान्तरण के हर प्रकरण की जाँचपड़ताल करना अनिवार्य
है। ग्लोबल काऊन्सल ऑफ इन्डियन क्रिस्टियन्स के अध्यक्ष साजन के. जॉर्ज ने अदालत
के फैसले का स्वागत किया है। भारतीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रवक्ता फादर दोमनिक
डिएब्रियो ने वाटिकन की प्रेस संस्था फीदेस समाचार से कहा, "यह एक रचनात्मक कदम है जिससे
ख्रीस्तीय लाभान्वित होंगे।" उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश की अदालत का फ़ैसला भारत
के अन्य राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून के विरुद्ध अपीलों को प्रोत्साहित कर सकता
है। उड़ीसा, मध्यप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात तथा छत्तीसगढ़ राज्यों में धर्मान्तरण
विरोधी कानून लागू हैं। भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष मुम्बई के
कार्डिनल ऑस्वल्ड ग्रेशियस ने भी हिमाचल प्रदेश की उच्च अदालत के फैसले का स्वागत कर
कहा है कि फैसला संविधान की रक्षा करता तथा इस बात को मान्यता देता है कि प्रत्येक को
अपने धार्मिक विश्वास के चयन का अधिकार है।