सन्त ग्रेगोरी का जन्म, रोम में, लगभग 540
ई. में हुआ था। वे एक समृद्ध सिनेटर के बेटे थे जिन्होंने सांसारिक सुख वैभव का परित्याग
कर दिया था तथा रोम के सात याजकों में से एक बन गये थे। सन् 574 ई. में, 34 वर्ष की आयु
में ग्रेगोरी ने अपनी पढ़ाई पूरी की तथा कम उम्र के बावजूद सम्राट जस्टीन ने उन्हें रोम
का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया था। कुछ समय ग्रेगोरी वकालात से जुड़े रहे किन्तु
अधिकांश प्रकरण निर्धनों को न्याय दिलवाने के लिये हुआ करते थे।
अपने पिता के
निधन के बाद ग्रेगोरी ने समर्पित जीवन यापन का प्रण किया तथा सिसली द्वीप में छः मठों
की स्थापना की। रोम में, उन्होंने, सातवें मठ की आधारशिला रखी जो बाद में जाकर सन्त एन्ड्र्यू
को समर्पित विख्यात मठ सिद्ध हुआ। 35 वर्ष की आयु में ग्रेगोरी ने इसी मठ में मठवासी
जीवन यापन हेतु सुसमाचारी शपथें ग्रहण की तथा मठवासी परिधान धारण किया।
अपधर्मी
सम्राट पेलाजियुस की मृत्यु के बाद, पुरोहितों एवं भक्त समुदाय की सर्वसम्मति से, ग्रेगोरी
को कलीसिया का परमाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। ग्रेगोरी के सन्त पापा नियुक्त होने के
बाद ही वे सब महत्वपूर्ण काम सम्पन्न हुए जिनसे वे ग्रेगोरी महान कहलाये। अपने धर्मोत्साह
के लिये वे सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हो गये, धर्मसमाजी और मठवासी भिक्षुओं के जीवन
में उन्होंने कई सुधार लाये, ख्रीस्तीय धर्म की सभी कलीसियाओं के साथ वे सम्पर्क में
रहे तथा अपनी शारीरिक दुर्बलताओं के बावजूद उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। ग्रेगोरी द्वारा
रचित पवित्र ख्रीस्तयाग की धर्मविधि तथा प्रातः व सान्ध्य वन्दनाएँ उनके द्वारा काथलिक
कलीसिया को दिया अनुपम योगदान हैं। सन्त एम्ब्रोज़, सन्त जेरोम तथा सन्त अगस्टीन जैसे
पश्चिमी काथलिक कलीसिया के महान आचार्यों में ग्रेगोरी महान का नाम गिना जाता है।
12
मार्च, सन् 604 ई., को काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष और कलीसिया के आचार्य सन्त ग्रेगोरी
महान का निधन हो गया था। वे शिक्षकों के संरक्षक सन्त हैं। सन्त ग्रेगोरी महान का पर्व
03 सितम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः सतत् प्रार्थना, ध्यान, मनन
चिन्तन एवं बाईबिल पाठ द्वारा हम प्रभु ईश्वर की खोज में लगे रहें।