देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश
कास्तेल गोंदोल्फो रोम 3 सितम्बर 2012 (सेदोक, एशिया न्यूज) संत पापा बेनेडिक्ट 16
वें ने रविवार 2 सितम्बर को कास्तेल गांदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के प्रांगण में
देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का
पाठ किया। इससे पूर्व उन्होंने इताली भाषा में सम्बोधित करते हुए कहा- अतिप्रिय
भाईयो और बहनो, इस रविवार की पूजनधर्मविधि के पाठ में ईश्वर का विधान तथा उनकी
आज्ञाओं की विषयवस्तु उभरती है, यह अपरिहार्य तत्व है यहूदी धर्म और यहाँ तक कि ईसाईयत
के लिए भी, जहाँ यह प्रेम में अपनी परिपूर्णता प्राप्त करता है। ईश्वर का विधान और उनके
शब्द , मनुष्य को जीवन के पथ पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, उसे स्वार्थ की दासता से
मुक्त कर जीवन और सच्ची स्वतंत्रता की भूमि से परिचय कराते हैं। इसलिए बाइबिल में विधान
या संहिता एक बोझ, सीमित करनेवाले कारक के रूप में नहीं लेकिन ईश्वर का सबसे कीमती उपहार,
उनके पितातुल्य प्रेम का साक्ष्य, अपनी प्रजा के निकट होने की उनकी इच्छा, उनके मित्र
होने तथा उनके लिए प्रेम की गाथा लिखनेवाले के रूप में देखी जाती है। इस्राएली इस
तरह से प्रार्थना करते हैं- तेरी संहिता मुझे अपार आनन्द प्रदान करती है। मैं तेरी शिक्षा
कभी नहीं भूलाऊंगा। प्रभु, मुझे अपने विधान के मार्ग की शिक्षा प्रदान कर। मुझे अपनी
आज्ञाओं के मार्ग पर ले चल क्योंकि वे मुझे आनन्द प्रदान करती हैं। (स्तोत्र ग्रंथ 119,16-35)
पुराने व्यवस्थान में ईश्वर के नाम पर लोगों के लिए ईश्वर का विधान लानेवाले मूसा हैं।
मरूभूमि में लम्बी यात्रा के बाद, प्रतिज्ञात भूमि की दहलीज पर वे घोषणा करते हैं- इस्राएलियो,
मैं जिन नियमों तथा आदेशों की शिक्षा तुम लोगों को आज दे रहा हूँ, उन पर ध्यान दो और
उनका पालन करो, जिससे तुम जीवित रह सको और उस देश में प्रवेश कर उसे अपने अधिकार में
कर सको जिसे प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों का ईश्वर तुम लोगों को दे रहा है। (विधि विवरण
4,1)
और यहाँ समस्या है- जब लोग उस भूमि में बस गये और संहिता के न्यासी या अमानतदार
बन गये तो उनके सामने अपनी सुरक्षा और अपनी खुशी का आधार प्रभु के वचन पर नहीं लेकिन
किसी और पर रखने का प्रलोभन आया– भौतिक वस्तुओं, सत्ता, अन्य देवता पर जो वास्तव में
खाली हैं, मूर्ति हैं। निश्चय ही, प्रभु का विधान रहता है लेकिन यह सबसे महत्वपूर्ण वस्तु,
जीवन का विधान नहीं रह गया है यह मात्र दिखावा, आवरण बन जाता है और जीवन अन्य पथ, अन्य
नियम, बहुधा निजी और समूहों के स्वार्थपूर्ण हित की दिशा में चल पड़ती है। इसलिए धर्म
जो कि ईश्वर को सुनते हुए जीवन जीना है, उनकी इच्छा पूरी करना है अपना सच्चा अर्थ खो
देता है और यह कम होकर द्वितीय आदत बन जाती है, ईश्वर के सामने सही चीज किया है इस भावना
को अनुभव करनेवाली मानवीय जरूरत को संतुष्ट करना बन जाता है। हर धर्म में यह गंभीर ख़तरा
है, इसका साक्षात्कार येसु ने अपने समय में किया लेकिन दुर्भाग्य से ईसाईयत में भी यह
घटित हो सकता है। आज के सुसमाचार में शास्त्रियों और फरीसियों के खिलाफ कहे गये
येसु के शब्द हमें रोकें और विचार करायें। नबी इसायस के शब्दों को येसु अपना बनाते हैं-
ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं। परन्तु इनका ह्दय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी
पूजा करते हैं और ये जो शिक्षा देते हैं वे हैं मनुष्यों के बनाये हुए नियम मात्र। तुम
लोग मनुष्यों की चलायी हुई परम्परा बनाये रखने के लिए ईश्वर की आज्ञा टालते हो। ( संत
मारकुस 7, 6-7) प्रेरित संत याकूब भी अपने पत्र में झूठे धर्म के खतरों के खिलाफ चेतावनी
देते हैं। वे ईसाईयों को लिखते हैं- आप लोग अपने को धोखा नहीं दें। वचन के श्रोता ही
नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें। (संत याकूब का पत्र 1, 22) कुँवारी माता मरियम
अब हम जिनकी ओर प्रार्थना में मुखातिब होते हैं हमें सहायता करें कि हम खुले और ईमानदार
दिल से ईश वचन को सुनें ताकि यह जीवन में हमारी सोच, हमारे चुनावों और हमारे कृत्यों
को प्रति दिन मार्गदर्शन प्रदान करे। इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश
प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।