बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा की धर्मशिक्षा
कास्तेल गोंदोल्फो रोम 29 अगस्त 2012 (सेदोक, वीआर वर्ल्ड) संत पापा बेनेडिक्ट 16
वें ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर कास्तेल गोंदोल्फो ग्रीष्मकालीन प्रासाद के
परिसर में जमा हुए हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित
किया। उन्होंने इताली भाषा में सम्बोधित करते हुए कहा- प्रिय भाईयो और बहनो, अगस्त
महीना के अंतिम बुधवार को पूजन धर्मविधि में हम प्रभु येसु के अग्रदूत, संत योहन बपतिस्ता
की शहादत का स्मरण करते हैं। रोमी पंचांग में वे ही एकमात्र संत हैं जिनका जन्म उत्सव
24 जून को और शहादत के द्वारा उनके निधन का स्मरण किया जाता है। आज की स्मृति दिवस का
इतिहास है समारिया में सेबास्ते का समर्पण जो कि चौथी सदी के मध्यकाल में हुआ था, उनके
मस्तक की आराधना की जाती थी। यह प्रथा येरूसालेम में, पूर्वी तथा रोमी कलीसियाओं में
संत योहन बपतिस्ता का सिरच्छेदन शीर्षक के तहत फैल गयी। रोमी शहादतग्रंथ में इसका संदर्भ
दिया जाता है पवित्र रेलिक के दूसरी बार पाये जाने का जिसे रोम के संत सिल्वेस्तर इन
कामपो मारजियो चर्च के अवसर पर लाया गया था। ये लघु ऐतिहासिक संदर्भ हमें समझने में
सहायता करें कि प्राचीन और गहन भक्ति संत योहन बपतिस्ता के प्रति कैसी थी। सुसमाचारों
में येसु के बारे में उनकी भूमिका बहुत ही साफ व्यक्त है विशिष्ट रूप से संत लुकस उनके
जन्म, उजाड़ प्रदेश में उनका जीवन, उनके प्रवचन के बारे में बताते हैं और संत मारकुस
आज के सुसमचार में उनकी त्रासदीपूर्ण मृत्यु के बारे में बताते हैं। योहन बपतिस्ता ने
अपना पदेश देना सम्राट तिबेरियस के शासनकाल में सन 27 और 28 में किया था और उनके पास
आनेवाले लोगों के लिए सम्बोधित उनका स्पष्ट निमंत्रण था कि दिल के क्रांतिकारी परिवर्तन
द्वारा जीवन के टेढ़े मेढ़े रास्ते को सीधा कर दें। लेकिन बपतिस्ता स्वयं को केवल पश्चाताप
का उपदेश देने, मनपरिवर्तन तक सीमित नहीं करते हैं लेकिन येसु को ईश्वर का मेमना के रूप
में पहचानते हैं जो संसार के पाप हरने आते हैं। उनके पास गहन विनम्रता है कि येसु में
ईश्वर के सच्चे संदेशवाहक को प्रकट करते हैं। वे किनारे होते हैं ताकि ख्रीस्त बढ़, सकें,
उन्हें सुना जाये और अनुसरण किया जाये। अंत में योहन बपतिस्ता ईश्वर के आदेशों के
प्रति अपनी निष्ठा का साक्ष्य अपने रक्त से देता है, बिना किसी हिचक या पीछे मुड़े अंत
तक अपना मिशन पूरा करता है। अपने उपदेश में नवीं सदी के मठवासी संत बेडे लिखते हैं- उसने
ख्रीस्त के लिए अपना जीवन दे दिया, यद्यपि उसको आदेश नहीं मिला था कि वह ख्रीस्त से इंकार
करे, उसे आदेश नहीं मिला था कि सत्य को मौन करे फिर भी वह ख्रीस्त के लिए मरा। सत्य के
प्रति प्रेम की खातिर वह शक्तिशाली के साथ समझौता करने के लिए नहीं झुका और ईश्वर का
पथ खो चुके लोगों के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग करने में भी उसे डर नहीं था। ब हम
इस महान छवि को देखते हैं दुःख में भी यह शक्ति,शक्तिशालियों के खिलाफ खड़ा होने के लिए
इस प्रकार का संकल्प और संयोजन , आंतरिक बल. ईश्वर के लिए पूरी तरह से समर्पित होना तथा
येसु के लिए पथ तैयार करने की शक्ति कहाँ से आयी ? जवाब सरल है- ईश्वर के साथ उसके संबंध
से, प्रार्थना से, उसके अस्तित्व का यही मुख्य शीर्षक है। योहन बपतिस्ता दिव्य उपहार
है जिसे बारे में उनके अभिभावक ज़खारियस और एलीजाबेथ ने कहा था, एक महान उपहार, मानवीय
रूप से आशा से परे क्योंकि दोनों बुढे हो चले थे और एलिजाबेथ बाँझ थी। लेकिन ईश्वर के
लिए कुछ भी असंभव नहीं है। जन्म की घोषणा होती है ऐसी जगह में जो प्रार्थना का स्थल
है, येरूसालेम का मंदिर, वस्तुतः यह होता है जब प्रभु के मंदिर में प्रवेश कर धूप जलाने
की बारी ज़खारियस की थी। योहन बपतिस्ता के जन्म के समय प्रार्थना का भाव है- खुशी, प्रशंसा
और धन्यवाद का गीत जिसे ज़खारियस प्रभु को चढ़ाता है और यह प्रार्थना द बेनेडिक्टुस इसका
पठन हम प्रतिदिन सुबह की प्रार्थना के समय करते हैं, इतिहास में ईश्वर के काम को आगे
बढाता है और उनके बेटे योहन के मिशन को नबूवती रूप से इंगित करता है, जो मानव देह धारण
करनेवाले ईशपुत्र के लिए रास्ता तैयार करने के लिए अग्रदूत बनता है। येसु के अग्रदूत
के सम्पूर्ण अस्तित्व को बल मिलता है ईश्वर के साथ उसके संबंध से, मुख्य रूप से उजाड़
प्रदेश में बिताये गये समय से, मरूस्थल प्रलोभन की जगह है लेकिन साथ ही यह स्थान है जहाँ
मानव अपनी गरीबी महसूस करता है क्योंकि वह भौतिक समर्थन और सुरक्षा से वंचित है और वह
समझता है कि एकमात्र दृढ़ संदर्भ बिन्दु स्वयं ईश्वर हैं। योहन बपतिस्ता न केवल प्रार्थना
करनेवाले व्यक्ति, ईश्वर के साथ संतत सम्पर्क में हैं लेकिन ईश्वर के साथ हमारे संबंध
के लिए गाइड भी हैं। सुसमाचार लेखक संत लुकस रेखांकित करते हैं कि येसु ने अपने शिष्यों
को हे पिता हमारे प्रार्थना सिखाया। इसका परिचय देते हुए इन शब्दों से आग्रह किया गया-
प्रभु हमें प्रार्थना करना सिखाइये जैसा कि योहन ने अपने अनुयायियों को सिखाया। प्रिय
भाईयो और बहनो, संत योहन बपतिस्ता की शहादत हमें, हमारे युग के ईसाईयों को स्मरण कराती
है कि हम ईश्वर के प्रेम, उनके शब्द और सत्य के साथ समझौता करने के लिए झुक नहीं सकते
हैं। सत्य सत्य है और इसमें समझौता नहीं है। मसीही जीवन के लिए चाहिए सुसमाचार के प्रति
निष्ठा का दैनिक शहादत, अर्थात हम में ख्रीस्त को बढ़ने, हमारी सोच और हमारे कार्यों
को निर्देशित करने के लिए उन्हें अनुमति देने का साहस। लेकिन यह हमारे जीवन में केवल
तभी हो सकता है जब ईश्वर के साथ मजबूत, ठोस संबंध है। प्रार्थना समय की बरबादी नहीं है,
यह हमारी गतिविधियों से, हमारी प्रेरितिक गतिविधियों से कुछ ज्यादा स्थान नहीं लेता है
लेकिन इसके ठीक विपरीत करता है। जब हम निष्ठावान, सतत, विश्वास से भरे प्रार्थनामय जीवन
होने के लिए तत्पर हैं तब ईश्वर स्वयं ही हमें ताकत और क्षमता प्रदान करेंगे कि खुशी
और शांतिमय तरीके से जीवन जीयें, कठिनाईयों पर विजय पायें और साहसपूर्वक साक्षी दें।
संत योहन बपतिस्ता हमारे लिए मध्यस्थता करें ताकि हम अपने जीवन में हमेशा ईश्वर की प्राथमिकता
को बनाये रखें। इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया। उन्होंने तीर्थयात्रोयों
को अन्य विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में सम्बोधित करते
हुए कहा- मैं सब अंग्रेजी भाषी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों विशेष रूप से इंगलैंड,
इंडोनेशिया, जापान और माल्टा से आये लोगों का सहर्ष स्वागत करता हूँ। आज कलीसिया संत
योहन बपतिस्ता की शहादत का स्मरण करती है। योहन जिसके जन्म का पर्व हम 24 जून को मनाते
हैं उन्होंने अपने आपको पूरी तरह ख्रीस्त के लिए दे दिया। पश्चाताप करने के लिए प्रवचन
देने के द्वारा उन्होंने ख्रीस्त के लिए पथ तैयार किया, जब वे पहुँचे तो लोगों को उनकी
ओर उन्मुख किया तथा सर्वोच्च बलिदान दिया। प्रिय मित्रो, हम भी हमारे जीवन के हर भाग
में ख्रीस्त को प्रवेश करने दें और इस तरह योहन का अनुसरण करें ताकि हम भी साहसपूर्वक
संसार के लिए ख्रीस्त की घोषणा कर सकें। ईश्वर आप सबको आशीष दें। बुधवारीय आमदर्शन
समारोह के अंत में संत पापा ने सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।