2012-08-27 17:45:58

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश


कास्तेल गोंदोल्फो रोम 27 अगस्त 2012 (सेदोक, एशिया न्यूज) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रविवार 26 अगस्त को कास्तेल गांदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। इससे पूर्व उन्होंने इताली भाषा में सम्बोधित करते हुए कहा-
अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
पिछले कुछ रविवारों को हमने जीवन की रोटी पर दिये गये प्रवचन पर मनन चिंतन किया जिसे प्रभु येसु ने हजारों लोगों को पाँच रोटियों और दो मछलियों से भोजन कराने के बाद कफरनाहूम के सभागृह में दिया था। आज सुसमाचार उस प्रवचन के बारे में,स्वयं ख्रीस्त के बारे में शिष्यों की प्रतिक्रिया को प्रस्तुत करता है।
सबसे पहले, सुसमाचार लेखक संत योहन, जो अन्य शिष्यों के साथ स्वयं उपस्थित थे बताते हैं कि इसके बाद बहुत से शिष्य अलग हो गये और उन्होंने येसु का साथ छोड़ दिया। क्यों ? क्योंकि उन्होंने येसु के शब्दों पर विश्वास नहीं किया जब वे कहते हैं- स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खायेगा तो वह सदा जीवित रहेगा। जो मेरा माँस खाता और मेरा रक्त पीता है उसे अनन्त जीवन प्राप्त है।
येसु के इन शब्दों को स्वीकार करना और समझना कठिन था। यह प्रकाशना जैसा कि मैंने कहा वे समझ नहीं सके क्योंकि उनका आशय सिर्फ पदार्थ या भौतिक अर्थ तक सीमित था जबकि उन शब्दों में येसु ने अपने पास्काई रहस्य की घोषणा की, संसार की मुक्ति के लिए वे स्वयं को दे देंगे, पवित्र यूखरिस्त में नवीन उपस्थिति।

यह देखते हुए कि अनेक शिष्य अलग हो गये और उनका साथ छोड़ रहे हैं येसु ने बारह प्रेरितों से कहा- क्या तुमलोग भी चले जाना चाहते हो? जैसा कि अन्य मामलों में यहाँ भी बारहों की ओर से पेत्रुस ने उत्तर दिया- प्रभु हम किसके पास जायें। हम भी इस पर चिंतन कर सकते हैं- हम किसके पास जायें? आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। हम विश्वास करते और जानते हैं कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरूष हैं।

इन पंक्तियों पर संत अगुस्टीन की सुंदर टिप्पणी है जो संत योहन के सुसमाचार के छटवें अध्याय पर कहते हैं- देखो कैसे पेत्रुस ने ईश्वर की कृपा और पवित्र आत्मा की प्रेरणा से उन्हें समझा। दूसरों की अपेक्षा उन्होंने विश्वास किया कि येसु के पास अनन्त जीवन के शब्द हैं। अपने शरीर और रक्त के द्वारा हमें अनन्त जीवन देते हैं, हम विश्वास करते हैं और जानते हैं। वे ऐसा नहीं कहते हैं कि हम जानते और विश्वास करते हैं लेकिन हम विश्वास करते हैं और जानते हैं। वस्तुतः यदि हम भी विश्वास करने से पूर्व जानना चाहते तो हम न तो जान सकते और न ही विश्वास कर पाते। हम जो विश्वास करते और जानते हैं वह यह कि आप मसीह हैं, ईश्वर के पुत्र, आप अनन्त जीवन हैं और अपने शरीर और रक्त में आप हमें वही देते हैं जो आप हैं।

अंततः येसु जानते थे कि उनके बारह शिष्यों में से एक उन पर विश्वास नहीं करता है- यूदस। यूदस भी येसु को छोड़कर जा सकता था जैसा कि अनेक शिष्यों ने किया। वस्तुतः वह भी छोड़ कर जाता यदि वह ईमानदार होता। लेकिन वह येसु के साथ रहा विश्वास या प्रेम के कारण नहीं लेकिन अपने प्रभु से बदला लेने की गुप्त मंशा के कारण उनके साथ रहा। यूदस ने ऐसा महसूस किया कि येसु ने विश्वासघात किया गया है इसलिए बदले में वह भी येसु के साथ विश्वासघात करेगा। यूदस एक राष्ट्रवादी कटटरपंथी था। वह चाहता था कि मसीह विजयी हों तथा रोमी शासन के खिलाफ विद्रोह का निर्देश करें। लेकिन येसु ने उन उम्मीदों को पूरा नहीं कर उसे निराश कर दिया। समस्या है कि यूदस गया नहीं लेकिन सबसे गंभीर त्रुटि है वह झूठ जो शैतान का विशिष्ट चिह्न है। इसलिए येसु ने बारहों से कहा- क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुना? तब भी तुम में से एक शैतान है।

हम कुँवारी माता मरिया से प्रार्थना करें कि वे येसु पर विश्वास करने के लिए हमारी सहायता करें जैसा कि संत पेत्रुस ने किया। हम उनके साथ और सब लोगों के साथ हमेशा ईमानदार रहें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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