प्रेरक मोतीः सन्त मैक्सीमिलियान कोल्बे (सन् 1894-1941 ई.)
वाटिकन सिटी, 14 अगस्त सन् 2012:
मैक्सीमिलियान का जन्म, सन् 1894 ई. में, पोलैण्ड
में हुआ था। काथलिक स्कूलों में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने के बाद वे फ्राँसिसकन धर्मसमाजी
मठ में भर्ती हो गये थे। युवावस्था में ही मैक्सीमिलियान टी.बी. रोग से संक्रमित हो गये
थे। उपचार के बाद, यद्यपि, वे ठीक हो गये थे तथापि, शेष जीवन शारीरिक कमज़ोरियों से जूझते
रहे थे।
अपना अधिकाधिक समय, मैक्सीमिलियान, प्रार्थना में व्यतीत किया करते थे।
विशेष रूप से, माँ मरियम की भक्ति के लिये वे विख्यात थे। अपने पुरोहिताभिषेक से पहले
ही मैक्सीमिलियान ने पवित्र कुँवारी मरियम को समर्पित "निष्कलंक" अभियान की स्थापना की
थी। धर्मतत्वविज्ञान में डॉक्टरेड हासिल करने के बाद उन्होंने "निष्कलंक माँ के शूरवीर"
शीर्षक से एक पत्रिका आरम्भ कर उक्त अभियान का प्रचार प्रसार किया। इसके परिणामस्वरूप,
अनेक युवा, माँ मरियम की भक्ति के प्रति, आकर्षित हुए तथा कुछ ही समय में मैक्सीमिलियान
के अभियान से 800 समर्पित युवा जुड़ गये। उस समय विश्व का यह सबसे विशाल काथलिक समुदाय
था।
अपने इस अभियान के प्रचार-प्रसार हेतु मैक्सीमिलियान ने पहले जापान और फिर
भारत की भी यात्राएं की तथा वहाँ निष्कंलक माँ को समर्पित अभियान को प्रोत्साहित किया।
सन् 1936 ई. में बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण मैक्सीमिलियान अपनी प्रेरितिक यात्राओं से
वापस पोलैण्ड लौट आये। पोलैण्ड में, सन् 1939 ई. के नाज़ी आक्रमण के समय अनेकानेक पुरोहितों
के साथ मैक्सीमिलियान को भी गिरफ्तार कर बन्दीगृह में डाल दिया गया। कुछ समय बाद मैक्सीमिलियान
रिहा कर दिये गये किन्तु सन् 1941 ई. में नाज़ियों ने उन्हें पुनः गिरफ्तार कर आऊशविट्स
के नज़रबन्दी शिविर में भेज दिया।
31 जुलाई, सन् 1941 ई. को एक क़ैदी के भाग
निकलने से क्रुद्ध नाज़ी सैनिकों ने दस क़ैदियों को मृत्युदण्ड के लिये चुन लिया। एक
युवा पति एवं पिता की रक्षा करते हुए उसके बदले फादर मैक्सीमिलियान कोल्बे ने स्वतः
को अर्पित कर दिया। नाज़ी सैनिकों ने लगभग दो सप्ताहों तक उन्हें भूखा प्यासा रखा, कड़ी
यातनाएँ दीं जिससे 14 अगस्त, सन् 1941 ई. को उनकी मृत्यु हो गई। सन् 1982 ई. में सन्त
पापा जॉन पौल द्वितीय ने फादर मैक्सीमिलियान कोल्बे को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान
प्रदान किया था। उनका पर्व 14 अगस्त को मनाया जाता है।
चिन्तनः सतत्
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