2012-08-13 16:20:29

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश


वाटिकन सिटी 13 अगस्त 2012 (सेदोक, एशिया न्यूज) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रविवार 12 अगस्त को कास्तेल गांदोल्फो स्थित ग्रीष्मकालीन प्रेरितिक प्रासाद के प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। इससे पूर्व उन्होंने इताली भाषा में सम्बोधित करते हुए कहा-
अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
संत योहन रचित सुसमाचार के 6 वें अध्याय का पाठ जो इस रविवार की पूजनधर्मविधि के लिए लिया गया है हमें रोटियों के गुणन पर चिंतन करने की ओर ले चलता है जिसे प्रभु ने खिलाया, पाँच रोटियाँ और दो मछली पाँच हजार की भीड़ को खिलाने के लिए काफी था और येसु उनको निमंत्रण देते हैं उस भोजन के लिए जो अनन्त जीवन प्रदान करता है। येसु उनको चमत्कार के गहन अर्थ की समझ पाने के लिए मदद करना चाहते हैं, चमत्कारिक रूप से लोगों की शारीरिक भूख को दूर करते हैं, लोगों को इस उदघोषणा का स्वागत करना है कि वे स्वर्ग से उतरी रोटी हैं जो अनन्त काल के लिए तृप्त करते हैं। इस्राएलियों ने मरूस्थल की लम्बी यात्रा के दौरान उस रोटी को अनुभव किया था जो स्वर्ग से आयी थी, मन्ना जिसने प्रतिज्ञात प्रदेश पहुँचने तक उन्हें जीवित रखा था। येसु अपने बारे में कहते हैं कि वे स्वर्ग से उतरी जीवन की रोटी हैं जो न केवल कुछ समय के लिए या हमारी यात्रा के कुछ भाग तक ही लेकिन हमेशा के लिए हमें जीवंत बनाये रखने में समर्थ है। वे वह भोजन हैं जो अनन्त जीवन देता है। वे ईश्वर के एकमात्र पुत्र हैं। वे आये ताकि मनुष्य को सम्पूर्ण जीवन दे सकें, मानव को ईश्वर के जीवन का परिचय करा सकें।
यहूदी विचार में यह स्पष्ट था कि स्वर्ग से मिली सच्ची रोटी जिससे इस्राएल जाति को पोषण मिलता था वह था संहिता, ईश्वर का वचन। यहूदियों ने स्पष्ट रूप से पहचाना कि तोराह, मूसा का बुनियादी और स्थायी उपहार था। ईश्वर की इच्छा को जानना और इसलिए जीवन का सही पथ चुनना इस्राएलियों के लिए मौलिक तत्व था जो उन्हें अन्य जातियों से विशिष्ट बनाता था। अब येसु स्वयं को स्वर्ग की रोटी के रूप में प्रकट करते हुए बताते है कि वे मानव रूप में ईश्वर के वचन हैं, देहधारी शब्द हैं जिसके द्वारा मनुष्य ईश्वर की इच्छा को अपना भोजन बना सकता है, जो हमें मार्गदर्शन देता और हमारे अस्तित्व को समर्थन देता है। इसलिए येसु की दिव्यता पर संदेह करना, जैसा कि आज के सुसमाचार पाठ में यहूदी करते हैं उसका अर्थ है- ईश्वर के काम का विरोध करना। वस्तुतः वे कहते हैं- क्या यह येसु नहीं है योसेफ का बेटा, क्या हम इसकी माता और पिता को नहीं जानते हैं ? वे उनकी पार्थिव उत्पत्ति से परे नहीं जाते हैं और इसलिए देह बने ईश्वर के वचन के रूप में येसु का स्वागत करने से इंकार करते हैं।
संत योहन के सुसमाचार पर संत अगुस्टीन अपने प्रवचन में टिप्पणी करते हुए कहते हैं- वे स्वर्ग की रोटी से बहुत दूर थे और यह नहीं जानते थे कि इसके लिए कैसे क्षुधा पीडित हों। उनके दिल कड़े थे। वस्तुतः इस रोटी के लिए भीतरी आदमी की भूख की जरूरत होती है। हमें भ स्वयं से कहना चाहिए कि क्या हम वास्तव में इस भूख को, ईशवचन के लिए तृष्णा को, जीवन के सच्चे अर्थ को जानने की भूख को महसूस करते हैं। केवल वे ही लोग जो पिता ईश्वर के द्वारा आकर्षित किये गये हैं, जो सुनते हैं और स्वयं को उनके द्वारा निर्देशित होने के लिए अनुमति प्रदान करते हैं वे ही येसु में विश्वास कर सकते हैं, उनका साक्षात्कार कर सकते हैं, उनके द्वारा स्वयं को पोषित कर सकते हैं और यह जीवन, न्याय, सत्य और प्यार का सच्चा पथ पाता है। संत अगुस्टीन आगे जोड़ते हैं- प्रभु कहते हैं- वे वह रोटी हैं जो स्वर्ग से उतर आयी है, हमें उनपर विश्वास करने के लिए कहती है। उनपर विश्वास करने का अर्थ है जीवन की रोटी को खाना। जो विश्वास करता है वह खाता है, वह अप्रत्यक्ष रूप से पोषित किया जाता है क्योंकि वह अप्रत्यक्ष रूप से फिर से जन्म लेता है। अंदर से एक नया शिशु, एक नया मनुष्य बन जाता है। जहाँ वह नया बनाया जाता है वहाँ वह भोजन से संतुष्ट हो जाता है।
पवित्रतम धन्य कुँवारी माता मरिया का आह्वान करें कि वे हमें मार्गदर्शन करें ताकि येसु का साक्षात्कार कर सकें और उनके साथ हमारी मित्रता सदैव बहुत घनिष्ठ रहे। हम उनसे याचना करें कि अपने पुत्र के प्रेम में गहन सामुदायिकता का परिचय करायें, जो स्वर्ग से उतरी जीवित रोटी हैं ताकि हम अपने अंतरतम में उनके द्वारा नवीकृत हो जायें।
इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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