2012-08-10 10:56:04

प्रेरक मोतीः शहीद सन्त लॉरेन्स (सन् 225-258 ई.)


वाटिकन सिटी, 10 अगस्त सन् 2012:

लॉरेन्स का जन्म सन् 225 ई. में, स्पेन के ऑस्का या हुएस्का में हुआ था। वे प्राचीन रोम के सात याजकों में से एक थे तथा सन्त पापा सिक्सटुस द्वितीय के परमाध्यक्षीय काल में, उनके अधीन, सेवारत थे। लॉरेन्स सहित सातों याजकों को वालेरियाई दमन काल में उनके विश्वास के ख़ातिर उत्पीड़ित कर मार डाला गया था।

सन्त पापा सिक्सटुस के आदेश पर लॉरेन्स, तथा उनके सहयोगी याजक, निर्धनों एवं ज़रूरतमन्दों का सहायता किया करते थे। वालेरियाई उत्पीड़न काल में सन्त पापा सिक्सटुस को प्राण दण्ड दे दिया गया। जब उन्हें मारा जा रहा था तब लॉरेन्स विलाप करते हुए उनके पीछे पीछे चलते रहे और उन्होंने सन्त पापा से कहा, "पिताजी, अपने याजक को छोड़कर आप कहाँ जा रहे हैं?" सन्त पापा ने उत्तर दिया, "मेरे बेटे, मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा रहा, बस तीन ही दिन में तुम मेरे साथ चलोगे।" लॉरेन्स खुशी से भर उठे तथा जो कुछ उनके पास शेष बचा था उसे उन्होंने ग़रीबों में बाँट दिया।

उस समय का रोमी प्रशासक एक लालची ग़ैरविश्वासी था। उसका मानना था कि कलीसिया के पास अत्यधिक धन वैभव है तथा उसका कोष भरा पड़ा है। उसने लॉरेन्स को आदेश दिया कि वह कलीसिया का सारा खज़ाना उसके पास ले आये। लॉरेन्स ने तीन दिन का समय मांगा और कहा कि वह कलीसिया का सारा खज़ाना उसके सिपुर्द कर देगा। तदोपरान्त,क लॉरेन्स रोम शहर की बस्तियों में गये तथा वहाँ से सभी निर्धनों, रोगियों एवं ज़रूरतमन्दों को एकत्र कर ले आये। प्रशासक के सामने उपस्थित होकर उन्होंने उससे कहा "ये है कलीसिया का खज़ाना।" प्रशासक क्रोध से भर उठा और उसने लॉरेन्स को धीमी और क्रूर मौत की सज़ा सुना दी। आग जलाई गई तथा लोहे की सलाखों पर लॉरेन्स को चढ़ा दिया गया। धीरे-धीरे उनके शरीर को भुना जा रहा था किन्तु लॉरेन्स ईश्वर के प्रेम की अग्नि से प्रज्वलित थे। जलते-जलते ईश्वर ने उन्हें अनोखी शक्ति प्रदान की जिससे इस क्रूरता के आगे भी अपने आततायियों से वे कहते रहे, "इस तरफ मैं भुन चुका हूँ अब मुझे दूसरी तरफ उलट दो।" मरते क्षण उन्होंने कहा अब मैं अच्छी तरह से पक चुका हूँ।" इसके बाद उन्होंने प्रार्थना की कि रोम शहर का मनपरिवर्तन हो और वह प्रभु येसु मसीह को स्वीकार करे तथा काथलिक विश्वास विश्व के कोने कोने तक फैल जाये।

10 अगस्त, सन् 258 ई. को सन्त लॉरेन्स काथलिक विश्वास के लिये शहीद हो गये। वे रसोइयों, भूननेवालों एवं खनिकों के संरक्षक सन्त माने जाते हैं। काथलिक कलीसिया के अलावा पूर्वी रीति की कलीसियाओं, एंगलिकन कलीसिया तथा लूथरन प्रॉटेस्टेण्ट कलीसिया में भी सन्त लॉरेन्स की भक्ति की जाती है। शहीद सन्त लॉरेन्स का पर्व 10 अगस्त को मनाया जाता है।



चिन्तनः पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों के लिये कलीसिया द्वारा निर्धारित दैनिक प्रार्थना पुस्तक में सन्त लॉरेन्स के पर्व के दिन इस प्रार्थना का प्रस्ताव किया गया हैः

"हे ईश्वर, धन्य लॉरेन्स ने, अपनी सेवा तथा अपनी शहादत द्वारा, ईश प्रेम की अग्नि का हमें दर्शन कराया। ऐसा कर कि हम उन चीज़ों से प्रेम करें जो उन्हें प्रिय थीं तथा उन कार्यों में लगें जिन्हें उन्होंने सिखाया है, हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के द्वारा जो आपके और पवित्रआत्मा के साथ युगानुयुग जीते रहते और राज्य करते हैं, आमेन।









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