रमादान के समापन और ईद अल-फित्र त्यौहार के उपलक्ष्य में अन्तरधार्मिक वार्ता सम्बन्धी
परमधर्मपीठीय परिषद का सन्देश
न्याय एवं शांति हेतु ख्रीस्तीय एवं मुसलमान युवाओं को शिक्षित करना वाटिकन सिटी प्रिय
मुसलमान मित्रो, रमादान के महीने को समाप्त करने वाले ईद अल-फित्र का समारोह, अन्तरधार्मिक
वार्ता सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद को, आपके प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करने
के आनन्द से भर देता है। इस विशिष्ट अवसर पर हम आपके साथ आनन्दित हैं जो आपको उपवास
एवं अन्य दया के कार्यों द्वारा ईश्वर के प्रति आज्ञाकारिता के महत्व को समझने का सुअवसर
देता है। ईश्वर के प्रति आज्ञाकारिता का महत्व हमारे लिये भी उतना ही प्रिय है जितना
आपके लिये। इसीलिये, इस वर्ष, अपने सामान्य चिन्तन को, सत्य एवं स्वतंत्रता के मूल्यों
से जुड़े, न्याय एवं शांति हेतु ख्रीस्तीय एवं मुसलमान युवाओं को, शिक्षित करने पर केन्द्रित
रखना हमें उपयुक्त जान पड़ा। जैसा कि आप जानते हैं कि यदि शिक्षा का कार्य सम्पूर्ण
समाज के सिपुर्द किया गया है तो सबसे पहले, और विशेष रूप से, यह कार्य माता पिता का है
और उनके साथ, परिवारों, स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों का है, और फिर उनका भी जो धार्मिक,
सांस्कृतिक, सामाजिक, एवं आर्थिक जीवन तथा सम्प्रेषण जगत के लिये ज़िम्मेदार हैं। यह
एक ऐसा उद्यम है जो सुन्दर होने के साथ साथ कठिन भी हैः बच्चों एवं युवाओं की मदद करना
ताकि वे सृष्टिकर्त्ता ईश्वर द्वारा उनके सिपुर्द किये गये संसाधनों की खोज कर सकें तथा
उनका विकास कर सकें तथा इस प्रकार ज़िम्मेदार मानवीय रिश्तों का निर्माण करने में सक्षम
बन सकें। शिक्षकों के दायित्व के सन्दर्भ में, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने हाल ही
में कहा था, "इसी कारण आज, पहले से कहीं अधिक, हमें यथार्थ साक्षियों की आवश्यकता है,
मात्र नियमों एवं तथ्यों का प्रस्ताव करनेवालों की नहीं....... साक्षी वह होता है जो
अन्यों के समक्ष कुछ प्रस्तुत करने से पूर्व, खुद अपने जीवन में, उसका वरण करता है" (विश्व
शांति दिवस सन् 2012 का सन्देश)। इसके अलावा, हम यह भी स्मरण रखें कि युवा व्यक्ति ख़ुद
भी अपनी शिक्षा तथा न्याय एवं शांति हेतु अपने प्रशिक्षण के लिये ज़िम्मेदार हैं। सबसे
पहले तो न्याय का निर्धारण, मानव व्यक्ति की अखण्डता में, उसकी पहचान से किया जाता है;
उसे उसके विनिमयात्मक एवं वितरणशील आयाम तक ही सीमित नहीं किया जा सकता। हमें यह नहीं
भुलाना चाहिये कि एकात्मता एवं भाईचारे के बिना जनकल्याण का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया
जा सकता। विश्वासियों के लिये, ईश्वर के संग मैत्री में जीवन यापन से प्राप्त यथार्थ
न्याय का अनुभव, समस्त अन्य रिश्तों को मज़बूत बना देता हैः अपने आपके साथ, अन्यों के
साथ तथा सम्पूर्ण सृष्टि के साथ। इसके अतिरिक्त, वे विश्वास करते हैं कि न्याय का उदगम
इस तथ्य में है कि सभी मनुष्य ईश्वर द्वारा सृजित हैं तथा एकता के सूत्र में बँधकर, एक
ही परिवार बनने के लिये बुलाये गये हैं। तर्कणा एवं लोकातीत के प्रति पूर्ण सम्मान से
भरी, इस प्रकार की दृष्टि, सभी शुभचिन्तक स्त्री पुरुषों से आग्रह करती है कि वे अपने
अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करें। हमारे सन्तापित विश्व में,
युवाओं को शांति का प्रशिक्षण देना अधिकाधिक आवश्यक होता जा रहा है। इस उद्यम में, उचित
रीति से स्वतः को, क्रियाशील बनाने के लिये, शांति की यथार्थ प्रकृति को समझना अनिवार्य
हैः कि यह मात्र युद्ध की अनुपस्थिति या फिर विरोधी बलों के बीच सन्तुलन स्थापित करने
तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह ईश्वर का वरदान होने के साथ साथ ऐसा मानवीय उद्यम है जिसे
अनवरत आगे बढ़ाया जाना चाहिये। यह न्याय का फल है तथा उदारता का प्रभाव है। यह महत्वपूर्ण
है कि विश्वासी, दया, एकात्मता, सहयोग एवं भ्रातृत्व का वरण कर अपने-अपने समुदायों में
सदैव सक्रिय रहें। वे प्रभावशाली ढंग से आज की चुनौतियों को सम्बोधित करने में योगदान
दे सकते हैं। इन चुनौतियों में कुछ हैं: सुसंगत विकास, अखण्ड विकास, संघर्षों का निवारण
एवं समाधान आदि। अन्त में हम, इस सन्देश को पढ़नेवाले मुसलमान एवं ख्रीस्तीय युवाओं
को, सत्य एवं स्वतंत्रता के संवर्धन के लिये प्रोत्साहित करना चाहते हैं ताकि वे न्याय
एवं शांति के यथार्थ सन्देशवाहक बनकर प्रत्येक नागरिक के अधिकारों एवं प्रतिष्ठा का सम्मान
करनेवाली संस्कृति के निर्माता बन सकें। हम उन्हें आमंत्रित करते हैं कि वे इन आदर्शों
की प्राप्ति के लिये धैर्य एवं दृढ़ संकल्प रखें, सन्देहात्मक समझौतों, छलिया छोटे रास्तों
अथवा साधनों का सहारा कदापि न लें जो मानव व्यक्ति के प्रति सम्मान को नज़र अन्दाज़ करते
हैं। केवल वे पुरुष और वे स्त्रियाँ जो सचमुच में इन अत्यावश्यकताओं में विश्वास रखते
हैं वे ही ऐसे समाजों के निर्माण में सफल हो सकेंगे जहाँ न्याय एवं शांति वास्तविकताएँ
बन जायेंगी। प्रभु ईश्वर "शांति के अस्त्र" बनने की इच्छा को पोषित करने वाले परिवारों
एवं समुदायों के हृदयों को प्रशांति एंव आशा से परिपूर्ण कर दें। आप सबको त्यौहार
मुबारक! वाटिकन से, 3 अगस्त 2012 जाँ लूई कार्डिनल तौराँ, अध्यक्ष
महाधर्माध्यक्ष पियर लूईजी चेलाता
उपाध्यक्ष