सन्त जॉन वियान्ने, फ्राँस के काथलिक पुरोहित
थे जो विश्वव्यापी स्तर पर "क्यूर दे आर्स" अर्थात आर्स की चंगाई नाम से विख्यात हैं।
धर्मपरायण एवं परोपकारी मैथ्यू वियान्ने तथा मरिया बैलूज़ के परिवार में, जॉन
बैपटिस्ट मरिये वियान्ने का जन्म, फ्राँस के दारदिल्ली नगर में, आठ मई, सन् 1786 ई. को
हुआ था। वियान्ने परिवार निर्धनों की सहायता तथा अजनबियों को शरण देने के लिये विख्यात
था। रोम की तीर्थयात्रा पर, दारदिल्ली से जाते हुए, सन्त बेनेडिक्ट जोसफ लाब्रे ने भी
मैथ्यू तथा मरिया वियान्ने के परिवार की मेज़बानी का अनुभव पाया था। परोपकारी कार्यों
में संलग्न परिवार की छः सन्तानों में जॉन वियान्ने चौथी सन्तान थे जिनमें बाल्यकाल से
ही धर्म, विश्वास एवं नैतिकता के मूल्य आरोपित किये गये थे।
सन् 1815 ई. में,
जॉन वियान्ने, पुरोहित अभिषिक्त किये गये थे। आर्स में उन्हें पल्ली पुरोहित नियुक्त
किया गया जहाँ उन्होंने दया के कार्यों एवं लोगों के आध्यात्मिक नवीनीकरण पर बल दिया।
त्याग, तपस्या तथा पुनर्मिलन संस्कार द्वारा हृदय को शुद्ध करने पर वे बल दिया करते थे
तथा पवित्र कुँवारी मरियम की भक्ति में लीन रहा करते थे। कहा जाता है कि रहस्यवादी फादर
जॉन वियान्ने प्रायः बिना खाये पिये घण्टों प्रार्थना में लीन रहा करते थे। कई बार शैतान
द्वारा घेर लिये जाने के बावजूद उनका धैर्य कभी विचलित नहीं होता था।
बाल्यसुलभ
सरलता से फादर जॉन वियान्ने ने अपने लोगों का दिल जीत रखा था जो अपनी सभी ज़रूरतों के
लिये उनके पास दौड़े चले आते थे। चंगाई प्रार्थना के लिये वे विख्यात थे जिन्होंने कई
बीमारों को चमत्कारी चंगाई प्रदान की। दिन में 16 घण्टे वे लोगों का पापस्वीकार सुना
करते थे। केवल फ्राँस से ही नहीं अपितु विश्व के कई क्षेत्रों से लोग फादर जॉन वियान्ने
के पास पापस्वीकार के लिये आते थे। जॉन वियान्ने का सम्पूर्ण जीवन दया एवं उदारता के
कार्यों से परिपूर्ण था। अभिलेखों से पता चलता है कि पापी से पापी व्यक्ति भी फादर जॉन
वियान्ने के शब्द मात्र सुन लेने के बाद मनपरिवर्तन के लिये प्रेरित हो जाता था। 04 अगस्त,
सन् 1859 ई. को फादर जॉन वियान्ने का निधन हो गया था तथा 31 मई सन् 1925 ई. को उन्हें
सन्त घोषित किया गया था। सन्त जॉन वियान्ने का पर्व 04 अगस्त को मनाया जाता है। वे पुरोहितों
के संरक्षक सन्त हैं।
चिन्तनः सन्त जॉन वियान्ने की मध्यस्थता से हम
अपने पापों पर पश्चाताप करना सीखें तथा पुनर्मिलन संस्कार द्वारा प्रभु की अनुकम्पा प्राप्त
करें।