2012-08-03 17:06:09

मुसलमान और ईसाई न्याय और शांति के यथार्थ संदेशवाहक बनें


वाटिकन सिटी 3 अगस्त 2012 (सेदोक) अंतरधार्मिक वार्ता संबंधी परमधर्मपीठीय समिति ने मुसलमानों के पाक रमजान माह के अंत में मनाये जानेवाले पर्व ईद उल फित्र को देखते हुए जारी एक संदेश में कहा है कि मुसलमान और ईसाई न्याय और शांति के यथार्थ संदेशवाहक और ऐसी संस्कृति के निर्माता बनें जो हर नागरिक के अधिकार और प्रतिष्ठा का सम्मान करती है। रमज़ान का महीना 19 अगस्त को समाप्त होगा। समिति के अध्यक्ष कार्डिनल ज्यां लुई तोरान तथा सचिव महाधर्माध्यक्ष पियेर लुईजी चेलाता द्वारा हस्ताक्षरित संदेश में कहा गया है कि हमारे युग के प्रताडित करनेवाले समय में युवाओं को न्याय और शांति के लिए प्रशिक्षित करने की अनिवार्यता बढ़ती जा रही है।

शिक्षा देने का दायित्व सम्पूर्ण समाज को सौंपा गया है। प्राथमिक रूप से यह अभिभावकों, परिवारों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों का काम है तथा धार्मिक सांस्कृतिक सामाजिक और आर्थिक जगत के लिए जिम्मेदार लोगों का भी है। यह बहुत सुंदर और कठिन उद्यम हैं कि बच्चों और युवाओं को अपनी क्षमताओं और दक्षताओं की खोज करने के लिए सहायता करें जिन्हें सृष्टिकर्त्ता ने दिया है ताकि वे जिम्मेदारपूर्ण मानव संबंधों की रचना कर सकें। इस कारण से पहले से कहीं अधिक यथार्थ साक्ष्य देने की जरूरत है। इसके साथ ही अपने शिक्षण तथा न्याय और शांति के लिए प्रशिक्षण हेतु युवा स्वयं जिम्मेदार हैं।

संदेश में कहा गया है कि सार्वजनिक हित के लक्ष्य को सह्दयता और भाईचारे के बिना नहीं पाया जा सकता है। विश्वासियों के लिए यथार्थ न्याय, जो ईश्वर के साथ मैत्री भाव में जीया जाता है सब अन्य संबंधों अर्थात अपने,दूसरों और प्रकृति के साथ संबंध को गहन बनाता है। न्याय की उत्पत्ति इस तथ्य में है कि सब लोग ईश्वर के द्वारा बनाये गये हैं और एक मानव परिवार का निर्माण करने कि लिए बुलाये गये हैं। पारलौकिकता के प्रति खुलापन और सम्मान सब लोगों से आग्रह करता है कि वे अपने अधिकार और कर्तव्य में समन्वय बनायें।

संदेश में कहा गया है कि शांति की सच्ची प्रकृति को समझा जाये कि यह युद्ध की अनुपस्थिति तक सीमित नहीं है या विरोधी ताकतों के मध्य संतुलन लेकिन ईश्वर का उपहार है तथा इसके लिए सतत मानव प्रयास किया जाना है। यह न्याय का फल तथा उदारता का प्रभाव है। विश्वासी जन अपने समुदायों में सहानुभूति ,सह्दयता, सहयोग और बंधुत्व का अभ्यास करें तथा वर्तमान समय की महान चुनौतियों जैसे- संतुलित विकास, समग्र विकास, संघर्षों का समाधान इत्यादि का जवाब देने के लिए प्रभावी रूप से योगदान दें।

युवा मुसलमानों और ईसाई नेताओं को प्रोत्साहन देते हैं कि वे सत्य और स्वतंत्रता का प्रसार करें ताकि न्याय और शांति के सच्चे संदेशवाहक बनें, भ्रामक समझौतों और अल्पकालीन उपायों को नहीं अपनायें लेकिन ऐसी संस्कृति के निर्माता बनें जो हर नागरिक की प्रतिष्ठा और अधिकार का सम्मान करती है।








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