2012-07-30 20:48:51

वर्ष ‘ब’ का अठारहवाँ रविवार - 5 अगस्त, 2012


निर्गमन-ग्रंथ 16, 2-4, 12-15
एफ़ेसियों के नाम 4,17-20-24
संत योहन 6, 24-35
जस्टिन तिर्की,ये.स.

जोन की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को एक व्यक्ति के बारे में बताता हूँ जिसका नाम था जोन। जोन 38 साल का था और उसकी शादी हो चुकी थी। उसके दो बच्चे थे। जोन एक बैंक में कार्यरत था। जोन को लोग एक ‘पियक्कड़’ रूप में जानते थे। जब भी वह अपने ऑफिस से लौटता तो या तो पीकर आता था या आने के बाद फिर पीने चला जाता था। पूरा परिवार उससे परेशान था। दीपु, राजू और जोसेफ उसके दोस्त थे जिनके साथ वह पीने का आनन्द उठाता था। काफी दिन बीत गये जीवन ऐसा ही चलता रहा। उस दिन दीपु, राजू और जोसेफ परेशान थे। उन्होंने जोन की पत्नी के पास जाकर उनसे पूछा कि जोन की तबीयत खराब है क्या? जोन की पत्नी ने कहा कि जोन तो बिल्कुल ठीक है और अपना काम भी ठीक से करता है। तब उन्होंने कहा कि वे आजकल जोन को नहीं देखते हैं इसीलिये उनका हाल-चाल पूछने आये हैं। ठीक इसी समय जोन घर आया। उन्होंने जोन से कहा कि आज तो उनकी पार्टी होनी चाहिये क्योंकि वे बहुत दिनों के बाद मिल रहे हैं। तब जोन ने कहा कि अब वह घर में रहना चाहता है। तब उसके दोस्तों ने उससे कहा कि तुम्हें क्या हो गया है जोन। क्यों तुम हमसे कटना चाहते हो। क्या हम अच्छे दोस्त नहीं हैं? जोन ने कहा तुम अच्छे दोस्त हो पर मुझे तुमसे भी अच्छा एक दोस्त मिल गया है। कहाँ मिला? गिरजाघर में। उसके दोस्तों ने मज़ाक के लहजे़ में कहा कौन है वह - येसु मसीह? जोन ने बस ‘हामी’ भरी तब उसके दोस्तों ने कहा कि तो क्या तुमने येसु से मुलाक़ात की। जोन ने कहा, "सिर्फ़ मुलाकात ही नहीं मैंने उससे बातें की और बातचीत के बाद उन्होंने मुझे खाने और पीने को भी दिया। और उस भोजन के बाद मेरा जीवन बदल गया है।" उसके दोस्तों ने कहा,"वह तो हम देख ही रहे हैं कि तुम बदल गये हो।" एक दोस्त ने कहा,"आखि़र क्या कहा उन्होंने तुमसे।" उन्होंने कहा कि " मैं जीवन की रोटी हूँ मुझे ग्रहण करने वाला कभी भूखा नहीं रहेगा। दोस्तो, और तब से मैं अपना काम ठीक से करता हूँ अपने बच्चों की देखभाल ठीक से करता हूँ और अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता हूँ। और इसी में मुझे आनन्द आता है औऱ जीवन की संतुष्टि मिलती है। अब मैं उस जीवन्त रोटी को कदापि नहीं छोड़ सकता।"

मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘ब’ के अठारहवें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहें हैं। प्रभु आज हमें अपने आपको दे रहे हैं ताकि इससे लोगों को जीवन प्राप्त हो सके। मित्रो, ईश्वर हमें अपने आपको अपने दिव्य वचनों के द्वारा देते हैं ईश्वर अपने आपको विभिन्न घटनाओं के द्वारा हमें देते हैं ईश्वर हमें अपने आपको यूखरिस्तीय बलिदान में देते हैं। ईश्वर हमें अपने आपको आज इस मनन-चिन्तन के द्वारा दे रहें हैं ।आइये आज हम प्रभु के दिव्य वचनों को सुनें जिसे संत योहन रचित सुसमाचार के 6 वें अध्याय के 41 से 53 पदों से लिया गया है।

सुसमाचार संत योहन 6,41-53
जब लोगों ने देखा कि वहाँ न तो येसु हैं और न तो उसके शिष्य ही, तो वे नावों पर चढ़ कर येसु की खोज में कफ़रनाहूम चले गये। उन्होंने समुद्र पार किया और येसु को वहाँ पा कर उनसे कहा, गुरुवर, आप यहां कब आये।" येसु ने उत्तर दिया, "मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ तुम चमत्कार देखने के कारण मुझे नहीं खोजते, बल्कि इसलिये कि तुम रोटियाँ खा कर तृप्त हो गये हो। नश्वर भोजन के लिये नहीं, बल्कि उस भोजन के लिये परिश्रम करो जो अनन्त जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव पुत्र तु्म्हें देगा, क्योंकि पिता ईश्वर ने मानव पुत्र को यह अधिकार दिया है।" लोगों ने उनसे कहा, "ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिये हमें क्या करना चाहिये। येसु ने उत्तर दिया, "ईश्वर की इच्छा यह है - उसने जिसे भेजा है, उस में विश्वास करो।" लोगों ने उनसे कहा, "आप हमें कौन-सा चमत्कार दिखा सकते हैं, जिसे देख कर हम आप में विश्वास करें। आप क्या कर सकते हैं । हमारे पुरखों ने मरुभूमि में मन्ना खाया था, जैसा कि लिखा है उसने खाने के लिये उन्हें स्वर्ग से रोटी दी।" येसु ने उत्तर दिया, मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - मूसा ने तुम्हें जो दिया था, वह स्वर्ग की रोटी नहीं थी। मेरा पिता तुम्हें स्वर्ग की सच्ची रोटी देता है। ईश्वर की रोटी तो वह है जो स्वर्ग से उतर कर संसार को जीवन प्रदान करती है।" लोगों ने येसु से कहा "प्रभु आप हमें सदा वहीं रोटी दिया करें।" उन्होंने उत्तर दिया, "जीवन की रोटी मैं हूँ। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।"
लम्बी आयु की चाह
मित्रो, अभी अभी आपने प्रभु के दिव्य वचनों को गौर से सुना है। मेरा पूरा विश्वास है कि प्रभु के दिव्य वचनों ने आपके और आपके परिवार को ईश्वरीय कृपा से लाभान्वित किया है। मित्रो, आज के सुसमाचार के उन शव्दों ने मुझे बहुत प्रभावित किया है जिसमें प्रभु हमसे कह रहे हैं कि नश्वर भोजन के लिये नहीं पर उस भोजन के लिये परिश्रम करो जो अनन्त जीवन तक के लिये बना रहता है। मित्रो, हम किसी भी व्यक्ति से बातें करें या उन्हें पूछें कि वह आखिर काम क्यों करता है तो उसका जवाब होगा कि वह चाहता है कि उसे जीना है, और जीने के लिये उसे कुछ खाना है। यदि वह नहीं खायेगा तो वह जी नहीं सकता है। मित्रो, हर व्यक्ति में एक चाहत है कि वह जीये औऱ लम्बी आयु तक जीये। और यह बात भी सत्य है कि अगर व्यक्ति चाहता है कि वह अधिक वर्षों तक जीवित रहे तो उसे अच्छा खाना ज़रूरी है। उसे पौष्टिक आहार लेना ज़रूरी है।

जैसा खाते वैसा बनते
मित्रो, आपने इस बात का भी अपने जीवन में अऩुभव किया होगा कि जैसा हम खाते हैं वैसा ही बन जाते हैं। अच्छा और पौष्टिक आहार लेने वाला व्यक्ति मजबूत और तंदुरुस्त बन जाता है। अगर हम अपने जीवन पर गौ़र करेंगे तो हम पायेंगे कि भोजन हमारे जीवन के लिये परम ज़रूरी है। न केवल आज पर आदि काल से लोग भोजन के लिये तरसते रहे हैं। येसु के जीवन काल में भी उन्होंने इस बात को इंगित किया कि कई लोग येसु के पास आते थे क्योंकि वे चमत्कार किया करते थे जिससे लोगों को मुफ़्त में खाने को मिल जाता था।

आध्यात्मिक भोजन
मित्रो, येसु आज हम लोगों को बताना चाहते हैं कि हमें शरीर के लिये तो चिन्ता करनी ही चाहिये पर उससे बढ़कर हमें उस भोजन की चिन्ता करनी चाहिये जिसको ग्रहण करने से हम सदा जीवित रहेंगे। मित्रो, आज मैं संत अगुस्टीन की बात को याद करना चाहूँगा जिन्होंने इस बात को बताया है कि हर मानव के दिल में एक सूनापन है, एक खालीपन है, एक आध्यात्मिक भूख है जिसे वह भरना चाहता है। वह इसे दुनियावी चीज़ो से भरने का प्रयास करता है या कई बार वह अन्य बहुमूल्य वस्तुओं के द्वारा इसे संतुष्ट करने का प्रयास करता है पर वह भूखा ही रहता है। मित्रो, येसु आज स्पष्ट शब्दों में हमें यह बताना चाहते हैं कि यह लालसा आध्यात्मिक है और इसे आध्यात्मिक भोजन से ही भरा जा सकता है। मित्रो,आपने इस बात को भी अवश्य ही सुना है कि विद्वानों ने कहा है कि पैसे से हम मकान खरीद सकते हैं पर हम घर नहीं बसा सकते हैं पैसे से हम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं पर हम ज्ञान हासिल नहीं कर सकते हैं। ज्ञानियों ने यह भी कहा कि हम बिस्तर खरीद सकते हैं पर नींद नहीं खरीदी जा सकती है हमने यह भी कहते सुना है कि हम पैसे से ताकत खरीद सकते हैं पर सम्मान नहीं खरीद सकते। इसी प्रकार पैसे से हम दवा खरीद सकते हैं पर स्वास्थ्य नहीं, प्यार नहीं शांति नहीं। मित्रो, इन्हीं बातों पर बल देते हुए येसु हमसे आज चाहते हैं कि हम शारीरिक भूख मिटाने का तो प्रयास करें ही पर इस बात को कदापि न भूलें कि आध्यात्मिक भूख मिटाना ही हमारे जीवन को पूर्ण करेगा हमें पूर्ण शांति प्रदान करेगा।



जीवन्त रोटी - प्रभु
मित्रो, प्रभु हमारा ध्यान खींचने का प्रयास कर रहें हैं वह है कि हम आध्यात्मिक जीवन मजबूत होने से ही हम जीवन की सच्ची शांति पा सकते हैं। दूसरी बात, जिसे प्रभु हम सबों को बताना चाहते हैं वह है कि प्रभु ही जीवन की रोटी हैं जो प्रभु को ग्रहण करता है वही आध्यात्मिक शांति को पायेगा। मित्रो, क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि प्रभु को ग्रहण करने का क्या अर्थ है। जब हम प्रभु को ग्रहण करते हैं तो हम प्रभु के वचन को सुनते हैं हम प्रभु के मूल्यों को अपने जीवन में उतारते है। हम प्रभु के समान अच्छे भले और नेक कार्यों के लिये दुःख उठाते हैं और पूरी आशा और आस्था के साथ अपना जीवन जीते हैं। और हम उसी के समान बन जाते हैं। किसी ने ठीक ही कहा कि जैसा हम खाते हैं या जो हम जिन बातों सोचों, कर्मों और मनोभावों से अपना दिल भरते हैं वैसा ही हम बनते जाते हैं। श्रोताओ ख्रीस्तीयों को प्रभु इस बात को भी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वे यूखरिस्तीय बलिदान में शामिल हों और रोटी को रूप में विराजमान येसु को भक्तिपूर्वक ग्रहण करें और अपने आध्यात्मिक जीवन को मजबूत करें।






भोजन वितरण
तीसरी बात, जिसे आज प्रभु हमें बताना चाहते हैं वह कि हम जब हम आध्यात्मिक भोजन से तृप्त हो जाते हों तो हम इसे दूसरों को भी बाँटें। यही है ख्रीस्तीय जीवन का सार। यदि प्रभु के प्रेम को हमने अपने जीवन में अनुभव किया है तो हम इसे अपने पास न रखें पर दूसरों को भी दें। यदि हमने प्रभु की शांति दया क्षमा और दयालुता का गहरा अऩुभव पाया है और इससे हमारे दिल की प्यास बुझ पायी है तो हम इसे दूसरों को भी बाँटें ताकि ईश्वरीय रोटी से सारा जग तृप्त हो सके। मित्रो, यही है मानव जीवन का असल मकसद कि हम आध्यात्मिक भोजन से हम संतुष्ट हों और जग सुन्दर और शांतिपूर्ण बने। प्रभु का आमंत्रण है हम इस बात को ठीक से समझ जायें कि हमारे दिल में एक आध्यात्मिक भूख है जिसे प्रभु ही संतुष्ट कर सकते हैं और इसी की तृप्ति के लिये जोन के समान प्रयत्नशील रहने से हमारा जीवन सफल शांतिमय और सार्थक हो पायेगा।








All the contents on this site are copyrighted ©.