नई दिल्ली, 21 जुलाई, 2012 (कैथन्यूज़) दिल्ली महाधर्मप्रांत ने महिलान संघ के नेताओं
से अपील की है कि वे देश में बाल-उत्पीड़न पर निगरानी रखें।
धर्मप्रांत के न्याय
और शांति के लिये बने आयोग की संयोजिका ने सिस्टर अन्न मोयालन ने कहा, "हमने इस बात की
ज़रूरत महसूस की है कि महिला नेत्रियों में इस बात की जागरुकता फैलायी जाये कि वे बाल-उत्पीड़न
घटनाओं की जानकारी हमें दें ताकि इसकी रोकथाम के लिये उचित कदम उठाये जा सके।"
न्याय
और शांति के लिये बनी महाधर्मप्रांतीय आयोग ने ‘कौंसिल ऑफ कैथोलिक वीमेन’ के साथ मिलकर
एक कार्यशाला का आयोजन वृहस्पतिवार 19 जुलाई को किया।
सभा को संबोधित करते हुए
नाजरेथ धर्मबहन ने कहा कि महाधर्मप्रांत चाहती है कि वह महिलाओं को प्रशिक्षित करे ताकि
वे बाल-उत्पीड़न की समस्या को समाप्त करने करने और शिशुओं के अधिकारों के लिये कार्य
कर सकें।
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में बच्चे को पेशाब पिलाने की घटना, हरियाणा
में बाल यौन उत्पीड़न और कर्नाटक में ग़रीब बच्चों के बाल काट देना ताकि वे आसानी से
पहचाने जायें जैसी घटनाओं को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत रिपोर्ट किया जाना
चाहिये।
युनिसेफ के अगुस्टीन वेलियथ ने महिलाओं से अपील की है कि वे अपने पल्लियों
में बाल-उत्पीड़न की घटना की सूचना तुरन्त पल्ली पुरोहित और पुलिस को दें।
उन्होंने
कहा कि दिल्ली सरकार ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिये ‘चाइल्ड हेल्प लाईन’ बनाया
है जिसकी मदद फोन पर 1098 नम्बर डायल कर पाया सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के वकील
अब्राहम पतियानी ने बाल-उत्पीड़न के विभिन्न तथ्यों की जानकारी देते हुए कहा कि बच्चों
के लिंग की जानकारी प्राप्त कर उन्हें स्वीकारने या नकारने का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण
और काथलिक कलीसिया की शिक्षा के ख़िलाफ है।
उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों की
परवरिश घरेलु कामगार महिलाओं और दादा-दादियों के हाथों छोड़ देना ‘स्वकेन्द्रित और स्वार्थी
मानसिकता’ का परिचायक है।