जस्टिन तिर्की, ये.स. सोनु और दीपु की कहानी आज आप लोगों को दो व्यक्तियों
के बारे में बताता हूँ। एक का नाम था सोनू और दूसरे का नाम था दीपु। दोनों का कार्य एक
था - पेड़ काटना। जब कभी भी उन्हें कोई पेड़ काटने बुलाता तो वे दोनों जाते और पेड़ काटते
थे। उन्हें जो मजदूरी मिलती उसी से उनका गुजर-बसर चल रहा था। एक दिन की बात है लकड़ी
के एक ठीकेदार ने उन्हें बुलाया और उनसे कहा कि वे जितनी अधिक लकड़ी काटेंगे उसी के हिसाब
से उन्हें पैसा दिया जायेगा। जब सोनु और दीपु लकड़ी काटने गये तो सोनु अपने उत्साह की
चरमसीमा पर था। वह सोच रहा था कि वह दीपु से ज़्यादा लकड़ी काटेगा और अधिक कमाई करेगा।
दोनों ने लकड़ी काटने का कार्य आरंभ किया। सोनु ने समय बरबाद नहीं की और दिन भर लकड़ी
काटने के कार्य में लगा रहा। उधर दीपु ने दिन में तीन बार आराम किया - दिन के साढ़े दस
बजे, डेढ़ बजे और साढ़े तीन बजे। जब शाम हुई तो पैसा लेने का समय आया। उस ठीकेदार ने
दीपु को ज़्यादा पैसे दिये। ठीकेदार ने कहा कि दीपु ने अधिक लकड़ी काटे हैं। तब सोनु
को विश्वास न हुआ और वह कहने लगा कि ऐसा हो ही नहीं सकता है। जब काटी हुई लकड़ी को जमा
किया गया तो सच में दीपु ने अधिक काम किये थे। सोनु ने हैरानी के साथ दीपु को पूछा कि
तुमने तो तीन बार आराम किये फिर भी तुमने अधिक लकड़ी कैसे काटी। मैं तो सिर्फ बारह बजे
के खाने के समय ही अपना काम रोका फिर भी मैं ज्यादा लकड़ी नहीं जमा कर सका। तब दीपु ने
कहा कि एक राज है। सोनु क्या तुमने नहीं देखा कि जब मैं आराम के लिये रुका था उस समय
मैने अपना समय बरबाद नहीं किया। मैं उस समय अपनी कुल्ङाड़ी की धार तेज कर रहा था। साथ
ही मैने अपने शरीर को आराम दिया ताकि फिर पूरे उत्साह से कार्य करुँ। और मैने ऐसा ही
किया और तुम देख सकते हो कि इसका फल कितना मीठा है। सोनु का यह सोचना कि दिनभर व्यस्त
रहना है दिनभर काम करते रहना है गलत सिद्ध हुआ। दीपु का यह सोचना कि काम के साथ उचित
आराम भी करना है फलदायी प्रमाणित हुआ।मित्रो, काम के साथ आराम ज़रूरी है ताकि हम ईश्वर
को अपना श्रेष्ठ उपहार दे सकें। सुसमाचार पाठ संत मारकुस 6, 30-34 मित्रो, रविवारीय
आराधना विधि चिंतन कार्यक्रम के अंतर्गत हम पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘ब’ के सोलहवें
रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहें है जिसे संत मारकुस
रचित सुसमाचार के अध्याय 6 के 30 से 34 पदों से लिया गया है। येसु हमें आराम करने या
समय निकाल कर चिन्तन करने के लिये हमें आमंत्रित करते हैं।
प्रेरितों ने येसु
के पास लौट कर उन्हें बताया कि हम लोगों ने क्या-क्या किया और क्या-क्या सिखलाया है।
तब येसु ने उन से कहा, "तुम लोग अकेले ही मेरे साथ किसी निर्जन स्थान चले आओ और थोड़ा
विश्राम कर लो," क्योकि इतने लोग आया-जाया करते थे कि उन्हें भोजन कने की भी फुरसत नहीं
रहती थी। इसलिये वे नाव पर चढ़ कर अकेले ही निर्जन स्थान की ओर चल दिये। उन्हें जाते
देख कर बहुत-से लोग समझ गये कि वह कहाँ जा रहे हैं। वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उधर
दौड़ पडे और उन से पहले ही वहीँ पहुँच गये। येसु ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा।
उन्हें उन लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वह उन्हें
बहुत-से बातों की शिक्षा देने लगे।
आराम मित्रो, मेरा विश्वास है कि आपने प्रभु
के दिव्य वचनों को ध्यान से पढ़ा है। मेरा विश्वास है प्रभु के वचन का अध्ययन करने से
ईश्वर ने आपके और आपके पारिवारिक जीवन में कृपाओं की बरसा की है। मित्रो, आज प्रभु हमें
जिस बात के बारे में बताना चाहते हैं वह है आराम। क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया
है कि प्रभु हमसे चाहते हैं कि हम आराम करें। हम जरा विश्राम करें। हम अपने रोज़मर्रा
की ज़िदगी में दो पल आराम करने के लिये निकालें। मित्रो, इस बात पर हम शायद ही ज़्यादा
विचार करते हैं कि येसु हमसे चाहते हैं कि हम ज़रा रुकें और अपनी आप को मजबूत करें और
फ़िर आगे बढ़ें। जब मैंने आज के सुसमाचार को पढ़ा तो मैं भी ख़ुद ही चकित हुआ कि प्रभु
हमसे चाहते हैं कि हम विश्राम करें। मित्रो, आपने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि वे
वहुत व्यस्त हैं, उन्हें अपने लिये भी कोई फुर्सत नहीं है। आज के युग में यह कहना कि
वे व्यस्त हैं एक फैशन-सा बना गया है। सब लोग 'विजी' हैं। किसी के पास समय नहीं हैं।
सब यह बताने का प्रयास कर रहें हैं कि उनके पास समय नहीं हैं किसी को घर का काम पूरा
करना है, किसी को स्कूल का किसी को ऑफिस का। किसी को नौकरी-चाकरी की चिन्ता, तो किसी
को बीमार भाई-बहनों और माता-पिता के स्वास्थ्य की चिंता। मित्रो, ये सब कार्य या दायित्व
अपने आप में महान् है। उन्हें किये बगै़र हम शांति से अपना जीवन नहीं बिता सकते हैं।
प्रभु येसु भी उन सब ज़िम्मेदारियों को निभाने की तारीफ़ करते हैं पर वे वहीं पर रुक
नहीं जाते हैं।
क्या आपने आज के सुसमाचार पर ग़ौर किया? प्रभु येसु अपने शिष्यों
को स्वागत करते हैं जब वे प्रेरितिक कार्य करने के बाद लौटे। येसु ने उनके अनुभवों को
ध्यान से सुना और उनकी सराहना भी की। जब सब शिष्यों ने अपने मिशन के अनुभवों को बतला
दिया था तब उन्होंने अपने शिष्यों को आमंत्रित किया कि वे कुछ देर आराम करें। मित्रो,
प्रभु की जिस वाणी ने प्रभावित किया बह है - 'तुम अकेले ही मेरे साथ चले आओ और थोड़ा
विश्राम कर लो।'
मित्रो, अगर हम प्रभु की बातों पर ध्यान दें तो हम पायेंगे कि
यह प्रभु का एक आमंत्रण है जिसे वे हमें दे रहें हैं। वे यह नहीं कह रहे हैं कि हमें
विश्राम करना ही है। वे बस एक सुविचार हमें दे रहें हैं कि हम विश्राम करना चाहिये। वे
यह भी कह रहे हैं कि हमें अकेले विश्राम करना चाहिये। मित्रो, मुझे मालूम है कि हममें
से की लोग प्रभु की इस वाणी पर कभी विचार न भी कियें हों फिर भी विश्राम या ब्रेक को
जीवन में अवश्य ही स्थान दिया है। स्कूलों में ब्रेक का समय होता है। ऑफिसों में भी लोग
‘कॉफी ब्रेक’ कर लेते हैं। फैक्टिरियों में भी ‘लंच ब्रेक’ करके लोग कुछ देर सुस्ता लेते
हैं। और कई बार तो हम कुछ लम्बा विश्राम करने लग जाते हैं जिसे हम छुट्टी या अवकाश कह
कर पुकारते हैं। मित्रो,जो भी हो मानव ने अपने जीवन में विश्राम को अवश्य ही महत्त्व
दिया है।
मित्रो, प्रभु आज जिस बात पर हमारा ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर
रहे हैं वह है कि हम अपने विश्राम के समय का सदूपयोग करें ताकि हमारा जीवन शांतिमय हो
सके और इस जीवन की वास्तविक खुशी पा सकें। प्रभु चाहते हैं कि हम अपने व्यस्त ज़िन्दगी
में कुछ क्षण निकालें और अपना संबंध ईश्वर से मजबूत करें। हम उन बातों को ध्यान दें कि
हमने अपना जीवन किस तरह से जीया है। हमें कुछ देर एकांत में जाने के लिये आमंत्रित करके
प्रभु हमें यह भी बताना चाहते हैं कि हम प्रभु की कृपा को पहचानना सीखें। हम जब अपना
कार्य रोक दें तो हमें इस बात को विचार करना चाहिये कि हमने किस तरह से अपना जीवन जीया
है और किस तरह से ईश्वर ने हमारे जीवन में अनेक भले कार्य कियें हैं।
अंतःकरण
की जाँच मित्रो, आपने शायद संत इग्नासियुस का नाम सुना है जिसके द्वारा दिखाये गये
पथपर चलने वालों को येसु समाजी या जेस्विटों क नाम से जाना जाता है। संत इग्नासियुस ने
अपने समाज के लोगों को इस बात को बताया है कि वे दिन में कम से कम एक बार अपने अंतःकरण
की जाँच करें और देखें कि किस तरह ईश्वर ने उनके जीवन में महान् कार्य किये हैं? उन्होंने
क्या-क्या वरदान दिये हैं? साथ वे उन्हें बताते हैं कि आने वाले समय में कैसे वे ईश्वर
मानव और प्रकति के साथ सौहार्दपूर्ण जीवन जीयेंगे कि उन्हें सच्ची शांति मिल सके। मित्रो,
संत इग्नासियुस का पक्का विश्वास था कि जो व्यक्ति जरा-सा रुक कर ईश्वर के साथ कुछ पल
के लिये एक हो जाता है तो उसका जीवन कभी नहीं भटकेगा। वह अपने जीवन में सही निर्णय ले
पायेगा और सही निर्णय लेने वाला ही सच्चा विजेता होता है।
विश्राम न केवल शरीर
के लिये सुखद होता है पर विश्राम करने से हम भगवान के साथ भी अपना रिश्ता मजबूत कर पाते
हैं। और मित्रो, जो व्यक्ति आराम करना सीख जाता है या हम कहें जो अपने जीवन में अर्थपूर्ण
आराम को महत्व देता है उसके जीवन में विभिन्न समस्याओं के बावजूद आंतरिक शांति बनी रहेगी।
विद्वानों
कहा करते हैं, ‘हमें चिन्ता के बदले चिन्तन करना चाहिये’। चिन्तन करने से एक ओर तो हम
अपनी आंतरिक शांति और शक्ति पा जाते हैं तो दूसरी ओर हमारे जीवन में आगे बढ़ने के लिये
नयी स्फूर्ति मिल जाती है।
चिन्तन, चिन्ता नहीं मित्रो, आज प्रभु की पुकार
है प्रभु का आमंत्रण है हमारे लिये कि हम चिंताओं को दरकिनार कर चिंतन करना सीखें। थोड़ा-सा
आराम कर लें, ईश्वर को याद कर लें, ईश्वर से नये निर्णय लेने के पहलें कृपा माँग लें
और फिर नये उत्साह से अपना दायित्व निभाते रहें फिर तो दीपु के समान हम अधिक अर्थपूर्ण
फल ला सकेंगे। संत- महात्माओं के जीवन की सफलता का यही राज है। हम थोड़ा-सा समय निकालें
और प्रभु से बाते करें और हमारे जीवन को सुख, शांति, संतोष और आध्यात्मिक खुशी से भर
जायेगा।