मुम्बई, 9 जुलाई, 2012 (एशियान्युज़) भारत की केन्द्रीय सरकार ने 5.4 अरब डॉलर की एक
योजना तैयार की है जिसके तहत लोगों को मुफ़्त में सामान्य दवाइयाँ उपलब्ध करायी जायेंगी।
सरकार के इस निर्णय का विदेशी दवाई कम्पनियों ने आलोचना की है। उनका मानना है
की सरकार ने वर्ष 2014 के आम चुनाव के मद्देनज़र इस प्रकार की घोषणा की है।
माना
जा रहा है कि यदि सरकार ने अपने निर्णय में कोई बदलाव न किये तो देश की स्वास्थ्य प्रणाली
से लाखों को व्यापक लाभ होगा।
सरकारी योजना के अनुसार यदि डॉक्टरों ने ब्रॉंड
दवाइयाँ खरीदने की सलाह दी तो उनपर जुर्माना किया जायेगा। हालाँकि सरकार ने यह भी
कहा है कि डॉक्टर प्रत्येक वर्ष अपने बजट का 5 फीसदी अर्थात् करीब 50 मिलियन डॉलर ब्रांड
दवाइयों पर खर्ज कर सकते हैं। जो लोग निजी अस्पतालों या क्लिकों में कार्यरत हैं उनपर
इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। सरकार ने दावा किया है कि अगले पाँच वर्षों में 1.2 अरब
लोगों को इससे लाभ होगा। सरकारी सूत्रों के अनुसार स्वास्थ्य विभाग के सहायक सचिव एल.सी.
गोयल को सामान्य दवाइयों के बारे में प्रचार-प्रसार की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। सरकार
की इस मेगा योजना से विश्व की फार्मसुटिकल कम्पनियाँ विशेष करके फिज़र ग्लाक्सोस्मिथ
किल्न और मर्क प्रभावित होंगे। विदित हो कि प्रत्येक वर्ष ये कम्पनियाँ शोध कार्यों
में बहुत अधिक खर्च करतीं है और दवाओं के ब्रांड नाम की प्रचार-प्रसार करतीं हैं। अमेरिकन
कम्पनी अब्बोत लवोराटोरीस और ग्लाक्सो स्मिथ क्लिन भारत में ब्रांड और आम या जेनेरिक
दवायों की पूर्ति करते हैं।