वेरोनिका जुलियानी, आध्यात्मिक वरदानों से सम्पन्न,
कैपुचिन धर्मसमाज की धर्मबहन थीं जिनका जन्म इटली के मिलान शहर के निकटवर्ती बीनास्को
में सन् 1660 ई. में हुआ था। बाल्यकाल से ही वेरोनिका की रुचि धर्म और आध्यात्म में रही
थी। 1677 ई. में वेरोनिका ने उम्ब्रिया प्रान्त के चित्ता दी कास्तेल्लो स्थित कैपुचिन
धर्मसमाज की अकिंचन क्लेयर की धर्मबहनों के मठ में प्रवेश पा लिया था। अपना सम्पूर्ण
जीवन वेरोनिका ने इसी मठ व्यतीत किया तथा 34 वर्षों तक इसकी मठाध्यक्षा रहीं।
अपना
अधिकांश समय ईश्वर पर ध्यान एवं मनन में लगानेवाली वेरोनिका ने कई बार दैवीय दर्शन प्राप्त
किये थे। सन् 1694 ई. में, वेरोनिका के सिर पर प्रभु येसु के काँटों का मुकुट देखा गया
था। उनके सिर पर इसके घाव स्पष्ट देखे जा सकते थे। सन् 1697 ई. में पुण्य शुक्रवार के
दिन उनके हाथ, पैर एवं बगल में उन्होंने प्रभु येसु ख्रीस्त घावों को पाया। धर्माध्यक्ष
के आदेश पर इन घावों का उपचार कराया गया किन्तु वेरोनिका को राहत नहीं मिली तथा घाव ज्यों
के त्यों बने रहे। इतने अधिक भावप्रवण एवं गहन आध्यात्मिक अनुभवों के बावजूद वेरोनिका
एक अत्यन्त व्यावहारिक महिला थीं जिनसे मठवासी धर्मबहनें अत्यधिक प्रभावित थीं। सन् 1776
ई. में वेरोनिका को मठाध्यक्षा नियुक्त किया गया था तथा इस पद पर वे आजीवन बनी रहीं।
09 जुलाई, सन् 1727 ई. को, चित्ता दी कास्तेल्लो में, रहस्यवादी धर्मबहन वेरोनिका
जुलियानी का निधन हो गया। बताया जाता है कि वेरोनिका की मृत्यु के बाद उनके वक्ष पर क्रूस
का चिन्ह उभर आया था तथा बहुत समय बाद तक भी उनका पार्थिव शव भ्रष्ट नहीं हुआ था। 17
जून, सन् 1804 ई. को वेरोनिका जुलियानी धन्य तथा 26 मई, 1839 ई. को सन्त घोषित की गई
थीं। सन्त वेरोनिका जुलियानी का पर्व 09 जुलाई को मनाया जाता है।
चिन्तनः
अपनी पीड़ाओं एवं कठिनाईयों को अन्यों के कल्याण हेतु अर्पित करने तथा प्रभु में ध्यान
लगाने हेतु सन्त वेरोनिका जुलियानी हमारी प्रेरणा स्रोत बनें।