2012-06-22 17:28:16

कोलम्बिया के धर्माध्यक्षों के लिए संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी 22 जून 2012 (सेदोक, एसआईआर) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात के लिए रोम आये कोलम्बिया के धर्माध्यक्षों के पहले समूह को शुक्रवार को सामूहिक रूप से सम्बोधित करते हुए उन्हें प्रोत्साहन दिया कि उन लोगों की देखरेख करें जो अवांछित हिंसा के कारण आजादी से वंचित हो रहे हैं तथा उन साधनों और योजनाओं की संख्या बढायें ताकि प्राकृतिक आपदाओं के शिकार हुए लोगों, निर्धनों, किसानों, मरीजों और वंचित तबके के लोगों की सहायता कर सकें जो बेरोजगारी के कारण पलायन करने या आतंक और अपराध की काली छाया के कारण अपने घरों और परिजनों को छोड़ने के लिए विवश होते हैं।
कोलम्बिया से आये धर्माध्यक्षों के पहले समूह का नेतृत्व कोलम्बियाई धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष तथा बोगोटा के महाधर्माध्यक्ष मान्यवर रूबेन सालाजार गोमेज ने किया। संत पापा ने कहा कि ईश्वर को विस्मृत करने के कारण होनेवाले परिणामों से कोलम्बिया अछूता नहीं है क्योंकि आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के संकट के कारण उत्पन्न होनेवाले प्रतिकूल प्रभाव देशवासियों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि बढ़ता बहुलवाद एक कारक है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। कोलम्बिया या लातिनी अमरीका के अन्य क्षेत्रों में विभिन्न पेंतेकोस्तल या इवांजेलिकल समुदायों की उपस्थिति से इंकार या उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। इस संदर्भ में ईशप्रजा का आह्वान किया जाता है कि वे स्वयं को शुद्ध करें तथा अपने विश्वास को पुर्नजीवित करें।
उन्होंने कहा कि बेहतर विश्वासी, अधिक उदार, धर्मी, स्वीकार्य बनना है ताकि हमारी पल्लियों और समुदायों में कोई भी स्वयं को दूर या परित्यक्त न महसूस करे। धर्मशिक्षा देने को बेहतर बनाये जाने की जरूरत है। युवाओं तथा वयस्कों पर विशेष ध्यान दिया जाये, सावधानीपूर्वक उपदेशों की तैयारी की जाये और काथलिक कलीसिया की शिक्षा और सिद्धान्तों को विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में प्रसार किये जाने की जरूरत है।
संत पापा ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि कलीसियाई परम्पराओं का संदर्भ दिया जाये, मरिया संबंधी आध्यात्मिकता का प्रसार करते हुए श्रद्धा और भक्तिसंबंधी समृद्ध विविधता का प्रसार किया जाये। अपनी अस्मिता या पहचान को खोये बिना ही दूसरे ईसाईयों के साथ शांत और खुले संवाद को बढ़ावा दिया जाये ताकि संबंध बेहतर हों और परस्पर अनास्था तथा व्यर्थ टकराव को दूर किया जा सके।








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