2012-06-20 11:47:37

वाटिकन सिटीः आगामी धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की कार्यप्रणाली प्रकाशित


वाटिकन सिटी, 20 जून सन् 2012 (सेदोक): वाटिकन ने, मंगलवार को, आगामी धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की कार्यप्रणाली सम्बन्धी दस्तावेज़ की प्रकाशना की। 13 वीँ धर्माध्यक्षीय धर्मसभा, आगामी अक्टूबर माह की 07 से 28 तारीख तक, वाटिकन में आयोजित की गई है।
धर्माध्यक्षों की धर्मसभा समिति के महासचिव महाधर्माध्यक्ष निकोला एत्तेरोविच तथा उपसचिव मान्यवर फोरतूनातो फ्रेत्सा ने पत्रकारों के समक्ष उक्त दस्तावेज़ प्रकाशित किया।
पत्रकार सम्मेलन में "इन्सत्रूमेनतुम लाबोरिस" अर्थात् धर्मसभा की कार्यप्रणाली की प्रस्तावना करते हुए महाधर्माध्यक्ष एत्तेरोविच ने कहा, "ईश्वर और धर्म के प्रति उदासीनता की पृष्ठभूमि में कलीसिया नये सिरे से अपरिवर्तनीय ख्रीस्तीय सुसमाचार की उदघोषणा को अपना दायित्व मानती है।"
दस्तावेज 2 फरवरी सन् 2011 को प्रस्तावित प्रश्नों के उत्तर हैं जो पूर्वी रीति की कलीसियाओं की 13 धर्मसभाओं, 114 धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों, परमधर्मपीठीय रोमी कार्यालय के 24 विभागों तथा धर्मसमाज प्रमुखों के संगठन द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं।
महाधर्माध्यक्ष एत्तोरोविच ने कहा कि प्राप्त उत्तरों से स्पष्ट है कि वर्तमान जगत की चुनौतियों का सामना करने के लिये कलीसिया समाधानों को ढूँढ़ रही है। उन्होंने कहा कि इसका उत्तर नये सिरे से सुसमाचार पर चिन्तन से मिल सकता है, इसलिये कि "नये सिरे से सुसमाचार की उदघोषणा ख्रीस्तीय धर्म की आन्तरिक गतिकता की अभिव्यक्ति है जो सभी शुभचिन्तकों के बीच, प्रभु ख्रीस्त में प्रकट, ईश्वर के रहस्य का उदघाटन करती तथा वर्तमान विश्व द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों का सामना करने में ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को सक्षम बनाती है।"
इस सन्दर्भ में, महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि कई क्षेत्रों के धर्माध्यक्षों ने सामाजिक संचार और सम्प्रेषण माध्यम और, विशेष रूप से, डिजिटल संस्कृति पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रस्ताव रखा है।
प्रस्तावित दस्तावेज़ चार अध्यायों में विभक्त हैः प्रथमः येसु ख्रीस्त मनुष्य के लिये ईश्वर का सुसमाचार, द्वितीय, नवीन सुसमाचार उदघोषणा का समय, तृतीय, विश्वास का प्रसार और चौथा प्रेरितिक गतिविधियों का नवीनीकरण। महाधर्माध्यक्ष एत्तेरोविच ने कहा कि यह कदापि न भुलाया जाये कि "सुसमाचर की उदघोषणा कलीसिया के लिये कोई विकल्प नहीं है बल्कि यह उसका परम दायित्व है। कलीसिया का अस्तित्व इसी पर निर्भर है।"








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