वाटिकन सिटीः देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश
वाटिकन सिटी, 18 जून सन् 2012 (सेदोक): श्रोताओ, रविवार, 17 जून को, सन्त पेत्रुस महागिरजाघर
के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व, सन्त
पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, भक्तों को इस प्रकार सम्बोधित कियाः
"अति प्रिय भाइयो
एवं बहनो, आज के धर्मविधिक पाठ हमारे समक्ष येसु के दो दृष्टान्तों का प्रस्ताव करते
हैः बीज वाला दृष्टान्त जिसमें बीज अकेले ही विकसित होता है तथा राई के दानेवाला दृष्टान्त
(दे. मत्ती 4, 26-34)। कृषि जगत के दृश्यों द्वारा, प्रभु शब्द एवं ईश राज्य के रहस्य
की प्रस्तावना करते तथा हमारी आशा एवं उसके प्रति हमारे समर्पण के कारण को इंगित करते
हैं।
पहले दृष्टटान्त में बीज बोने की गतिकता पर ध्यान केन्द्रित किया गया हैः
जो बीज ज़मीन पर फेंका जाता है वह अकेले ही अंकुरित होकर विकसित होता है, भले ही उसे
बोनेवाला सोता रहे या जागता रहे। मनुष्य इस विश्वास के साथ बोता है कि उसका कार्य विफल
न हो। वस्तुतः, किसान और उसके दैनिक श्रम को जो समर्थन देता है वह है बीज की शक्ति तथा
मिट्टी की अच्छाई में उसका विश्वास। यह दृष्टान्त हमें सृष्टि एवं मुक्ति के रहस्य का
स्मरण दिलाता है, जो इतिहास में ईश्वर की फलदायी कृति है। वे ही ईश राज्य के स्वामी हैं,
मानव उसका विनम्र सहयोगी है, जो ईश्वर की दैवीय सृजनात्मक कृति पर चिन्तन करता तथा आनन्द
मनाता है और साथ ही फल प्राप्ति के लिये धैर्यपूर्वक इंतज़ार करता है।
अन्तिम
फसल, हमें, समय के अन्त में ईश्वर के निष्कर्षीय हस्तक्षेप पर विचार करने हेतु आमंत्रित
करती है जब प्रभु पूरी तरह अपने राज्य को कार्यरूप प्रदान करेंगे। वर्तमान समय बीज बोने
का समय है जिसका विकास ईश्वर द्वारा सुनिश्चित्त किया गया है। अस्तु, हर ख्रीस्तीय धर्मानुयायी
भली प्रकार जानता है कि उसे वह सब करना चाहिये जो वह कर सकता है किन्तु अन्तिम परिणाम
ईश्वर पर निर्भर करता हैः यह चेतना और यह ज्ञान ही मनुष्य को उसके दैनिक श्रम में मदद
देता तथा, विशेष रूप से, कठिन परिस्थितियों में समर्थन प्रदान करता है। इस सम्बन्ध में
लोयोला के सन्त इग्नेशियुस लिखते हैं: ऐसा मानकर कार्य करते चलो मानों सब कुछ आप पर निर्भर
करता है, यह जानते हुए भी कि वास्तव में सब कुछ ईस्वर पर निर्भर करता है"(cfr. PEDRO
DE RIBADENEIRA, Vita di S. Ignazio di Loyola, Milano 1998)।
सन्त पापा ने आगे
कहाः "दूसरा दृष्टान्त भी बीज की छवि का उपयोग करता है। तथापि, यहाँ एक विशिष्ट यानि
कि राई के बीज की बात की गई है, जिसे सब बीजों में सबसे छोटा बीज माना गया है। छोटा होने
के बावजूद राई का बीज जीवन से परिपूर्ण है उसके टूटने से एक बीज उत्पन्न होता है, जिसमें,
ज़मीन को फाड़कर, सूर्य की रोशनी में ऊपर उठने तथा "बढ़ते-बढ़ते सब पौधों से ऊँचे बढ़ने
की क्षमता है" (दे. मारकुस 4,32): कमज़ोरी बीज की ताक़त है, टूट जाना उसकी शक्ति। ईश्वर
का राज्य ऐसा ही हैः ऐसी वास्तविकता जो मानव की दृष्टि में छोटी है, जो दीनमना लोगों
से संरचित है, उन लोगों से जो अपनी शक्ति में विश्वास नहीं करते किन्तु ईश्वर के प्रेम
की शक्ति में विश्वास करते हैं, उन लोगों से संरचित है जो विश्व की दृष्टि में महवपूर्ण
नहीं हैं; तथापि, उन्हीं के जरिये ख्रीस्त की शक्ति प्रस्फुटित होती तथा, प्रतीयमान रूप
से, नगण्य को रूपान्तरित कर देती है।"
उन्होंने आगे कहाः "बीज की
छवि, प्रभु येसु को, विशेष रूप से, प्रिय है क्योंकि वह ईश राज्य के रहस्य को अच्छी तरह
समझाती है। आज के दो दृष्टान्तों में यह "विकास" एवं "विषमता" का प्रतिनिधित्व करता हैः
विकास, जो बीज में निहित गतिकता का परिणाम है तथा विषमता, जो बीज के छोटेपन तथा उसके
द्वारा उत्पन्न पौधे की ऊँचाई के बीच विद्यमान है। सन्देश स्पष्ट हैः ईश राज्य, यद्यपि,
हमारे सहयोग की मांग करता है तथापि, हमें दिया गया ईश्वर का वरदान है, ऐसा अनुग्रह जो
मनुष्य एवं उसके कार्यों से श्रेष्ठ है।"
अन्त में सन्त पापा ने कहाः "विश्व
की समस्याओं के समक्ष असहाय, हमारी छोटी सी शक्ति को यदि ईश्वर की शक्ति के साथ मिला
दिया जाये तो उसे किसी बाधा का डर न रहे, क्योंकि प्रभु की विजय निश्चित्त है। यह ईश्वर
के प्रेम का चमत्कार है जो धरती पर बोये गये अच्छाई के हर बीज को अंकुरित होकर विकसित
होने देता है। प्रेम के इस चमत्कार का अनुभव ही, कठिनाइयों, उत्पीड़न तथा हम पर हावी
होनेवाली बुराइयों के बावजूद, हमें आशावादी बनाता है। बीज अंकुरित होता तथा विकसित होता
है क्योंकि ईश्वर का प्रेम उसे बढ़ने देता है। कुँवारी मरियम, जिन्होंने अच्छी ज़मीन
पर बोए हुए बीज के सदृश, दिव्य शब्द के बीज का स्वागत किया, हममें इस विश्वास और इस आशा
को सुदृढ़ करें।"
इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सभी भक्तों पर
शान्ति का आह्वान किया तथा सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।
तदोपरान्त,
सन्त पापा ने विभिन्न भाषाओं में तीर्थयात्रियों को सम्बोधित कर शुभकामनाएँ अर्पित कीं।
इताली भाषा में उन्होंने 20 जून को मनाये जा रहे शरणार्थी दिवस का स्मरण करते हुए कहा,
"आगामी बुधवार को विश्व शरणार्थी दिवस है। यह दिवस उन सब लोगों एवं परिवरों के प्रति
हमारा ध्यान आकर्षित कराता है जो युद्ध एवं हिंसा के कारण अपने घरों एवं अपने देशों का
परित्याग करने के लिये बाध्य हैं। इन सब भाइयों के लिये मैं प्रार्थना करता तथा इनके
प्रति परमधर्मपीठ की एकात्मता का आश्वासन देता हूँ।"
इस अवसर पर सन्त पापा
ने आयरलैण्ड में सम्पन्न अन्तरराष्ट्रीय यूखारिस्तीय काँग्रेस का भी स्मरण किया, उन्होंने
कहाः............ "आज, आयरलैण्ड में अंतर्राष्ट्रीय यूखारिस्तीय कांग्रेस समाप्त हो रहा
है जिसने इस सप्ताह डबलीन शहर को यूखारिस्त का शहर बना दिया था जहाँ बहुत से लोग पवित्र
संस्कार में येसु की उपस्थिति में प्रार्थना हेतु एकत्र हुए। यूखारिस्त के रहस्य में
येसु ने हमारे बीच सदैव रहना चाहा ताकि हम उनके साथ तथा एक दूसरे के साथ सहभागिता में
एक हो जायें। इन दिनों की प्रार्थना और मनन चिन्तन से उत्पन्न फलों को हम पवित्रतम कुँवारी
मरियम के सिपुर्द करें।"
अँग्रेज़ी भाषा-भाषियों को सम्बोधित कर सन्त पापा
ने कहा, " आज के सुसमाचार में, प्रभु हमें सिखाते हैं कि ईश राज्य छोटे से राई के
दाने के बराबर है जो बढ़कर सब पौधों में बड़ा बन जाता है। हम सतत् प्रार्थना करें ताकि
ईश्वर हमारी दुर्बल किन्तु निष्कपट मंशाओं को स्वीकार करें तथा उनके एवं हमारे पड़ोसी
के लिये उन्हें प्रेम के महान कार्यों में रूपान्तरित कर दें। आप पर तथा आपके हर प्रिय
जन पर मैं प्रभु की विपुल आशीष की मंगलयाचना करता हूँ।"
अन्त में, सन्त पापा
ने सभी उपस्थित तीर्थयात्रियों के प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित कीं.... "आप सबको शुभ रविवार
की मंगलकामनाएँ, शुभ रविवार और शुभ सप्ताह।"