पादुआ के सन्त के नाम से विख्यात, फेरनानदो मार्टिन
अन्तोनी का जन्म पुर्तगाल के लिसबन शहर के एक धन सम्पन्न परिवार में, 15 अगस्त, सन् 1195
ई. को हुआ था। लिसबन में ही अन्तोनी की शिक्षा-दीक्षा हुई थी। युवावस्था में, उन्होंने
सन्त अगस्टीन धर्मसमाज में प्रवेश कर लिया था किन्तु 26 वर्ष की आयु में सन्त फ्राँसिस
को समर्पित धर्मसमाजी मठ में भर्ती हो गये। बताया जाता है कि सन् 1220 ई. में उत्तरी
अफ्रीका के मोरॉक्को में काथलिक धर्म के ख़ातिर मारे गये पाँच फ्राँसिसकन धर्मसमाजी शहीदों
ने उनके जीवन को गहनतम ढंग से प्रभावित किया तथा उन्होंने फ्राँसिसकन धर्मसमाजी जीवन
का आलिंगन कर लिया।
बाईबिल धर्मग्रन्थ के व्याख्याकार, शिक्षक एवं प्रभावशाली
प्रवचनकर्त्ता रूप में पुरोहित अन्तोनी सर्वत्र विख्यात थे। सीधी और सरल भाषा में उन्होंने
लोगों में काथलिक धर्म की शिक्षाओं का प्रसार किया तथा अपनी वाकपटुता एवं पवित्रता के
कारण साधारण लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली। अपधर्मियों के वे विरोधी थे तथा अपने
प्रवचनों में अक्सर उन्हें फटकार बताया करते थे। कहा जाता है कि उनके प्रवचनों का जब
विरोध किया जाता था तो वे, ईश्वर की महिमा तथा स्वर्गदूतों के आनन्द के लिये, मानव प्राणियों
को छोड़, जलचरों एवं मछलियों के समक्ष सुसमाचार का प्रचार किया करते थे। पुरोहित अन्तोनी
ने सुसमाचार प्रचार एवं काथलिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये जीवन के प्रत्येक क्षण
को मूल्यवान माना तथा उसी के अनुकूल जीवन यापन करते रहे। सतत् प्रार्थना एवं मनन चिन्तन
द्वारा वे इस मिशन के लिये शक्ति अर्जित करते रहे थे। 36 वर्ष की आयु में ही, 13 जून
सन् 1231 ई. को, इटली के पादुआ नगर में, फ्राँसिसकन धर्मसमाजी पुरोहित अन्तोनी का निधन
हो गया था। उनके निधन के एक वर्ष बाद ही उन्हें सन्त घोषित कर दिया गया था। 16 जनवरी
सन् 1946 ई. को उन्हें काथलिक कलीसिया के आचार्य घोषित कर दिया गया था।
सन्त
अन्तोनी के निधन के 336 वर्ष बाद उनकी कब्र खोदी गयी तथा उनके पवित्र शव को धरती से पुनः
निकाला गया। हालांकि, शव पूर्णतः शत-विक्षत हो गया था उनकी जिव्हा ज्यों कि त्यों मिली,
जो आज भी पादुआ के सन्त अन्तोनी तीर्थ में सुरक्षित है। पादुआ के सन्त अन्तोनी को "विधर्मियों
का हथौड़ा" तथा "खोई हुई वस्तुओं का पानेवाला" नामों से पुकारा जाता है। पुर्तगाल, इटली,
स्पेन तथा भारत सहित विश्व के अन्य अनेक देशों में पादुआ के सन्त अन्तोनी की भक्ति की
जाती है।
चिन्तनः सुसमाचारी मूल्यों का वरण कर प्रभु ख्रीस्त के साक्षी बनना
ही ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों का जीवन है।