सन्त विलिबाल्ड इंग्लैण्ड के वेसेक्स में सन्
700 ई. के लगभग हुआ था। उनके बड़े भाई सन्त वाईनुबाल्ड तथा बहन सन्त वालबुर्गा थीं। साथ
ही अपनी माता की तरफ से वे महान सन्त बोनीफास के भी रिश्तेदार थे। सन् 722 ई. में विलिबाल्ड
अपने पिता के साथ रोम की तीर्थयात्रा पर निकले थे किन्तु रोम पहुँचने से पूर्व लूका में
उनके पिता का देहान्त हो गया।
पिता की मृत्यु के बाद विलिबाल्द ने रोम की यात्रा
जारी रखी और इसके बाद जैरूसालेम की तीर्थयात्रा पर निकल गये। यहाँ साराचेनों ने इन्हें
जासूस समझ कर गिरफ्तार कर लिया था किन्तु बाद में रिहा कर दिया। इसके बाद विलिबाल्द ने
पवित्रभूमि के कई पवित्र तीर्थों की यात्रा की।
जैरूसालेम से वे तुर्की के लिये
निकल पड़े तथा कुस्तुनतुनिया गये जहाँ उन्होंने कई ख्रीस्तीय मठों एवं आश्रमों की भेंट
कीं। तुर्की से लौटकर विलिबाल्द इटली के मोन्ते कासिनो आये तथा यहाँ दस वर्षों तक एक
गिरजाघर की देखभाल करते रहे।
रोम में उन्होंने सन्त पापा ग्रेगोरी तृतीय से मुलाकात
की जिन्होंने उन्होंने सन्त बोनीफास के पास जर्मनी भेज दिया। सन्त बोनीफास के मार्गदर्शन
में विलिबाल्द सन् 741 ई. में पुरोहित अभिषिक्त हुए जिन्होंने बाद में उन्हें, बावेरिया
प्रान्त के आईखस्टाड का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया। अपने भाई और पुरोहित वाईनबाल्द
के साथ मिलकर विलिबाल्द ने हाईडमहाईम में दो ख्रीस्तीय मठों की स्थापना की। चार दशकों
तक विलिबाल्द आईखस्टाड के धर्माध्यक्ष पद पर बने रहे थे। उनके द्वारा आरम्भ मिशनरी पहलों
ने कई युवा पुरोहितों को सुसमाचार प्रचार हेतु प्रेरणा प्रदान की। सन् 787 ई. में धर्माध्यक्ष
विलिबाल्द का निधन हो गया। उनके पवित्र अवशेष अभी भी जर्मनी के आईखस्टाड स्थित काथलिक
महागिरजाघर में सुरक्षित हैं। उनका पर्व 07 जून को मनाया जाता है।
चिन्तनः
सुसमाचारी मूल्यों का वरण कर प्रभु ख्रीस्त के साक्षी बनना ही ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों
का जीवन है।