2012-05-24 16:55:06

इताली धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के धर्माध्यक्षों के लिए संत पापा का सम्बोधन


वाटिकन सिटी 24 मई 2012 (सेदोक, वी आर वर्ल्ड) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने " विश्वास में प्रौढ़ और मानवता के साक्षी " शीर्षक से सम्पन्न हो रहे इताली धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की पूर्णकालिक सभा के प्रतिभागी धर्माध्यक्षों को वाटिकन के सिनड सभागार में 24 मई को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि यदि यूरोप में कलीसिया धार्मिक अभ्यासों में आ रही गिरावट जो विशेष रूप से ख्रीस्तयाग में कम उपस्थिति तथा संस्कारों को कम ग्रहण करने में दिखाई दे रही है इसे बदलना चाहती है तो यह जरूरी है कि घायल यूरोप के सामने यह पुनः ईश्वर से आरम्भ करे। आज ईश्वर का समारोह मनाना, ईश्वर की घोषणा करना तथा ईश्वर का साक्ष्य देने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि ईश्वर से पुनः आरम्भ करने के लिए कलीसिया को वैसे लोगों की जरूरत है जो अपने विश्वास को जानते हैं क्योंकि बपतिस्मा पाये अनेक लोग अपनी अस्मिता और कलीसिया के साथ लगाव को खो चुके हैं तो इसका कारण है कि वे अपने विश्वास के अपिरहार्य मूल तत्वों को नहीं जानते हैं या वे सोचते हैं कि कलीसिया से स्वतंत्र रहकर वे इसका पोषण कर सकते हैं। ऐसे युग में जहाँ अनेक लोगों के लिए ईश्वर महान अज्ञात बन गये हैं या येसु को मात्र महान ऐतिहासिक छवि तक सीमित कर दिया गया है तो लोग येसु के साथ साक्षात्कार के लिए उन पुरूषों या महिलाओं के द्वारा आकर्षित होंगे जिन्होंने ईश्वर का गहरा अनुभव पाया है क्योंकि ईश्वर के बारे में कहने की पहली शर्त्त है कि ईश्वर के साथ बात करना, गहन प्रार्थनामय जीवन और दिव्य कृपा से पोषण पाकर अधिक से अधिक ईश्वर का व्यक्ति बनना। संक्षेप में कहा जा सकता है कि हमारे विश्वास और हमारी प्रार्थना की गुणवत्ता के नवीनीकरण के बिना मिशनरी कृत्यों का नवजागरण नहीं हो सकता है।
संत पापा ने कहा कि उन्होंने 11 अक्तूबर से विश्वास का वर्ष आरम्भ करने का निर्णय किया है ताकि विश्वास रूपी अनमोल उपहार की हम पुर्नखोज कर सकें, जीवन-रक्त समान सच्चाईयों के ज्ञान को गहन बना सकें एवं मानवजाति को मार्गदर्शन दें जिससे येसु ख्रीस्त के साथ नवीकृत रूप से साक्षात्कार कर सकें जो मार्ग, सत्य और जीवन हैं। ईश्वर हमारी खुशी के गारंटर हैं और जहाँ सुसमचार और येसु की मित्रता का स्वागत किया जाता है वहाँ मनुष्य उस प्रेम को अनुभव करता है जो स्वच्छ, नवीकृत तथा उत्साहित कर हमें दिव्य प्रेम से भरकर मानवजाति की सेवा और प्रेम करने में सक्षम बनाता है।








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