नई दिल्लीः साम्प्रदायिक हिंसा के विरुद्ध नये विधेयक की मांग
नई दिल्ली, 25 अप्रैल सन् 2012 (ऊका समाचार): नागर समाज के कार्यकर्त्ताओं ने भारतीय
सरकार से मांग की है कि वह साम्प्रदायिक हिंसा के विरुद्ध नये विधेयक की प्रस्तावना करे
तथा साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा की रोकथाम सम्बन्धी "त्रुटिपूर्ण" विधेयक को रद्द
करे।
विधेयक पर शनिवार को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विचार विमर्श में नागर
समाज के कार्यकर्त्ताओं ने मांग की कि नये कानून के तहत सरकारी कर्मचारियों को जवाबदेह
बनाया जाये तथा सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को न्याय प्रदान किया जाये।
उन्होंने
कहा, "न तो 2005 में विधेयक में किये गये 59 संशोधन और न ही सन् 2011 में राष्ट्रीय सलाहकार
परिषद का "सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक" कारगर सिद्ध हुआ है।" उन्होंने कहा कि
विधेयक त्रुटिपूर्ण तथा पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय
राष्ट्रीय विचार विमर्श में न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर, शबनम हाशमी अनहद, कानूनी विशेषज्ञ
उषा रामनाथन तथा मानवाधिकार कार्यकर्त्ता वृंदा ग्रोवर और जॉन दयाल सहित राष्ट्रीय एकीकरण
परिषद के कई सदस्यों ने भाग लिया।
कार्यकर्ताओं ने कहा कि नए बिल में प्राथमिक
तौर पर सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये तथा अपने
दायित्वों के निर्वाह में उनके द्वारा चूक के लिये उन्हें उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिये।
उन्होंने कहा कि पीड़ितों को "सुरक्षा और बचाव, राहत शिविरों, संपत्ति की सुरक्षा,
मुआवजा और वापसी के अधिकार का आश्वासन दिया जाना चाहिये।"
इस बात के प्रति ध्यान
आकर्षित कराते हुए कि साम्प्रदायिक हिंसा का सर्वाधिक दुष्प्रभाव बच्चों और महिलाओं पर
पड़ता है, उन्होंने कहा कि उक्त कानून के निर्माण में उनकी सुरक्षा पर अत्यधिक ध्यान
केन्द्रित किया जाना चाहिये।