वाटिकन सिटी, 23 अप्रैल, 2012 (वीईएस) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा, " पवित्र
धर्मग्रंथ की जो व्याख्या प्रेरणा का नज़रअंदाज़ करती या इसे भूल जाती है वह इसके प्रथम
और विशेष अर्थ को ही भूल जाती है क्योंकि यह ईश्वर से आती है।"
संत पापा
ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने पोन्तिफिकल बिबलीकल कमीशन की वार्षिक अधिवेशन
की समाप्ति पर अपने संदेश भेजे। सभा की विषयवस्तु थी, "बाइबल में प्रेरणा और सत्य।"
परमधर्मपीठीय बाइबल आयोग की वार्षिक सभा के लिये संत पापा ने विश्वास और
सिद्धांतों के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति के प्रीफेक्ट कार्डिनल विलयम जोसेफ लेवादा
को अपने संदेश भेजे थे।
संत पापा ने कहा, "धर्मग्रंथ की सही व्याख्या के
लिये इस वर्ष की विषयवस्तु महत्वपूर्ण है। यह प्रेरणा ही है, जो ईश्वर की ओर से आती और
इस बात को सुनिश्चित करती है कि मानव द्वारा उच्चरित शब्द ईश्वर के शब्द बनें।"
संत
पापा ने कहा, "आज हम प्रेरणा की विशेषताओं के लिये ईश्वर को धन्यवाद दें। वैसे पवित्र
धर्मग्रंथ बाइबल हमें सीधे रूप से प्रभावित करते हैं फिर भी ईशवचन लिखी हुई बातों तक
ही सीमित नहीं हैं क्योंकि जैसा हम जानते हैं कि यद्यपि प्रकाशना अंतिम प्रेरित की मृत्यु
के साथ ही समाप्त हो गयी पर ईश्वर के जीवित वचन की घोषणा जारी है और इसे कलीसिया की जीवित
परंपरा द्वारा व्याख्या किये जाने की आवश्यकता है।"
उन्होंने कहा, "इसलिये
ऐसा नहीं है कि ईशवचन पवित्र धर्मग्रंथ के शब्दों में बँध गयी है और कलीसिया के दिल में
एक निष्क्रय बात बन कर रह गयी है पर यह तो कलीसिया के विश्वास और उसकी जीवित शक्ति का
सर्वोच्च नियम है। काथलिक कलीसिया की परंपरा ने इस बात को स्पष्ट कर दिखाया है कि ईशवचन
प्रेरितों द्वारा पवित्र आत्मा की मदद से लोगों तक पहुँचती है, चिन्तन एवं अध्ययन और
व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुभवों तथा आचार्यों के प्रवचन द्वारा इसका विकास होता है।"
संत
पापा ने कहा, "इसीलिये यह ज़रूरी है कि प्रेरणा और सत्य विषय पर और गहन चिन्तन तथा अध्ययन
किया जाये क्योंकि कलीसिया के मिशन के लिये यह अति महत्वपूर्ण है।"
इस अवसर
पर संत पापा ने परमधर्मपीठीय बाइबल आयोग की सराहना की और आशा व्यक्त की कि आयोग ईशवचन
के ज्ञान और अध्ययन को बढ़ावा देगी ताकि लोग ईशवचन को स्वीकार कर सकें।