लाहौर, 9 अप्रैल, 2012 (एशियान्यूज़) पाकिस्तान के नैशनल कमीशन फॉर जस्टिस एंड पीस (एनसीजेपी)
ने पाकिस्तान सरकार से कहा है कि वे स्कूली पाठ्यक्रम पर पुनर्विचार करे ताकि ईसाई, हिन्दू
सिक्ख और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक अपने धर्म के मर्म को समझ सकें। एनसीजेपी की एक
रिपोर्ट के अनुसार देश के कई क्षेत्रों जैसे पंजाब में अल्पसंख्यकों को इस्लाम धर्म की
मूल बातों को सीखना अनिवार्य कर दिया गया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि
कई अल्पसंख्यकों को भेदभाव और प्रताड़ना के भय के कारण इस्लाम धर्म को जानने के लिये
‘बाध्य’ होना पड़ा है। पंजाब प्रांत में वहाँ की प्रांतीय सरकार ने ‘सर्वसम्मति’
से यह निर्णय लिया है कि सभी लोगों को कुरान का अध्ययन करना अनिवार्य होगा। इसके साथ
ग़ैर मुसलमानों के लिये और कोई विकल्प के प्रावधान नहीं हैं। एनसीजेपी की रिपोर्ट
में यह भी बतलाया गया है कि सामाजिक विज्ञान और भाषा संबंधी विषयों में भी 20 प्रतिशत
पाठ्यक्रम इस्लाम से ही जुड़े हैं। इतना ही नहीं जो ग़ैर मुस्लिम इस्लामिक विषयों में
अपने ज्ञान को गहरा करना चाहते हैं उन्हें 20 नम्बर बोनस दिया जाता है। एनसीजेपी
के सचिव पीटर जेकब ने कहा कि शिक्षा और शिक्षा नीति और मानवाधिकार के संबंध में पाकिस्तान
भेदभाव की नीति अपनाती रही है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के संविधान परिच्छेद
20 और 22 में इस बात की स्पष्ट चर्चा है कि "शैक्षणिक संस्थानों में व्यक्ति को धर्म
की शिक्षा या धार्मिक समारोहों में हिस्सा लेने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा।"