वाटिकन सिटीः "अवज्ञा, कलीसिया के नवीनीकरण का मार्ग नहीं हो सकता, सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें
वाटिकन सिटी, 05 अप्रैल सन् 2012 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में
गुरुवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने करिश्माई ख्रीस्तयाग अर्पित कर पुण्य सप्ताह
की त्रैदिवसीय धर्मविधियों का शुभारम्भ किया।
पुण्य बृहस्पतिवार से ही पुण्य
सप्ताह की धर्मविधियाँ सघन हो जाती हैं जो पास्का महापर्व में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचती
हैं। गुरुवार प्रातः धर्माध्यक्षों द्वारा अर्पित ख्रीस्तयाग "क्रिज़म मास" या करिश्माई
ख्रीस्तयाग कहा जाता है। अवसर पर पवित्र तेलों की आशीष विधि सम्पादित की जाती है।
करिश्माई
ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा, "प्रभु येसु
ख्रीस्त ही सत्य हैं तथा अभिषेक द्वारा समस्त धर्माध्यक्ष, ख्रीस्त के पौरोहित्य में
भागीदार हैं।" उन्होंने कहा, "धर्माध्यक्ष को चाहिये कि वह अपने अभिषेक को दैनिक जीवन
तक विस्तृत होने दे तथा स्वतः से बारम्बार यह प्रश्न करे कि क्या वह ईश्वर के सेवक के
सदृश आचरण कर रहा है? क्या ख्रीस्त का अनुसरण कर सांसारिक सुख वैभव और अपने अहं का परित्याग
कर केवल ईश्वर में अपना ध्यान लगा रहा है?"
सन्त पापा ने कहा कि धर्माध्यक्षों
से दो बातों की मांग की जाती है जो हैं, "प्रभु ख्रीस्त के साथ समनुरूपता एवं आन्तरिक
सम्बन्ध तथा अपने अहं का परित्याग, आत्म-परितोष का त्याग। मैं अपने जीवन का स्वामी नहीं
हूँ बल्कि मेरा जीवन अन्यों की सेवा के प्रति समर्पित है।"
सन्त पापा ने उदाहरण
दिया कि हाल ही में, यूरोपीय देशों से, पुरोहितों के एक दल ने काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा
की अवहेलना करते हुए अवज्ञा का एक समन जारी कर दिया था तथा यह भी बताया था कि उनकी अवज्ञा
के क्या दुष्परिणाम हो सकते थे, उदाहरणार्थ महिलाओं का अभिषेक। जिसके उत्तर में धन्य
सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने दृढ़तापूर्वक इस बात की पुष्टि की थी कि इस मुद्दे पर कलीसिया
को प्रभु ख्रीस्त से कोई अधिकार नहीं मिला है। सन्त पापा ने कहा कि पुरोहितों का उक्त
दल कलीसिया में नवीनीकरण लाने की दलील देकर अपनी बात अवज्ञा द्वारा मनवाना चाहता था किन्तु
अवज्ञा, कलीसिया के नवीनीकरण का, रास्ता नहीं हो सकती।
सन्त पापा ने कहा कि
धर्मशिक्षा प्रदान करना धर्माध्यक्ष का प्रेरिताई का अभिन्न अंग है और इस प्रेरिताई को
ऐसा होना चाहिये जिससे लोग धर्माध्यक्ष में प्रभु येसु मसीह के सेवक का साक्षात्कार कर
सकें। कुरिन्थियों को प्रेषित प्रथम पत्र के चौथे अध्याय के पहले और दूसरे पदों में सन्त
पौल लिखते हैं: "लोग हमें मसीह के सेवक और ईश्वर के रहस्यों के कारिन्दा समझे और कारिन्दा
से यह आशा की जाती है कि वह ईमानदार निकले।"
सन्त पापा ने कहा कि शिक्षण कार्य
में भी इस बात का ध्यान रखा जाना अनिवार्य है कि हम अपने निजी विचारों एवं मतों का प्रचार
न करें बल्कि ख्रीस्त के सेवक होने के नाते केवल कलीसिया के विश्वास का प्रचार प्रसार
करें।