2012-04-02 12:07:25

वाटिकन सिटीः सन्त पापा ने खजूर इतवार की धर्म विधि का अर्थ समझाया


वाटिकन सिटी, 02 अप्रैल सन् 2012 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार पहली अप्रैल को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने खजूर इतवार की धर्म विधि सम्पन्न कर पुण्य सप्ताह का शुभारम्भ किया। विश्व के काथलिक धर्मानुयायी प्रभु येसु मसीह के दुखभोग और क्रूस मरण की याद में पुण्य सप्ताह मनाते हैं जो पुनःरुत्थान महापर्व में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचता है।

रविवार 02 अप्रैल को, खजूर इतवार के दिन खजूरों एवं जैतून की डालियों सहित निकाले गये जुलूस के बाद सन्त पापा ने ख्रीस्तयाग अर्पित किया। इस अवसर पर उन्होंने खजूर इतवार की धर्मविधि का अर्थ समझाया। खजूर इतवार, येसु के दुखभोग, क्रूसमरण एवं पुनःरुत्थान से पूर्व, जैरूसालेम में प्रभु येसु मसीह की विजयी प्रविष्टि की स्मृति में मनाया जानेवाला भव्य उत्सव है।

सन्त पापा ने कहा, "खजूर इतवार पुण्य सप्ताह में ले जानेवाला महाद्वार है। उस सप्ताह में ले जानेवाला द्वार जिसमें प्रभु येसु मसीह इस धरती पर अपने अस्तित्व को चरम छोर तक ले जाते हैं। धर्मग्रन्थों को पूरा करने तथा क्रूस पर चढ़ाये जाने के लिये वे जैरूसालेम जाते हैं। सम्पूर्ण मानवजाति के लिये मुक्ति का वरदान अर्पित करते हुए उस सिंहासन की ओर आगे बढ़ते हैं जहाँ से वे सदा सर्वदा के लिये शासन करनेवाले थे।"

सन्त मारकुस रचित सुसमाचार के 11 अध्याय के नवें और दसवें पदों में लिखा है, "बहुत-से लोगों ने अपने कपड़े रास्ते में बिछा दिये। कुछ लोगों ने खेतों में हरी-भरी डालियाँ काट कर फैला दीं थीं। येसु के आगे-आगे जाते हुए और पीछे-पीछे आते हुए लोग यह नारा लगा रहे थे, ''होसन्ना! धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! धन्य हैं हमारे पिता दाऊद का आने वाला राज्य! सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना!''

सुसमाचार के इन शब्दों का अर्थ समझाते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें कहा, "चारों सुसमाचार लेखकों द्वारा वर्णित यह विजयगान, आशीर्वाद के लिये लगाई गई एक पुकार है, यह प्रशंसा का वह गीत है जो एकप्राण होकर इस विश्वास की अभिव्यक्ति करता है कि येसु में ईश्वर ने अपने लोगों की सुधि ली तथा लम्बे समय से प्रतीक्षारत लोगों ने प्रतिज्ञात मसीहा के आने पर हर्ष मनाया।" किन्तु, सन्त पापा ने प्रश्न किया कि इस हर्ष की आन्तरिक प्रतिध्वनि क्या है? इस विषय वस्तु का मर्म क्या है?" उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है, "वे प्रभु जिन्हें भक्त समुदाय धन्य कहकर पुकार रहा था वे वही हैं जिनके द्वारा सम्पूर्ण मानवजाति ईश्वरीय अनुग्रह का पात्र बनेगी। इस प्रकार, ख्रीस्त के प्रकाश में मानवजाति स्वतः को गहनतम ढंग से एकता में सूत्रबद्ध पाती है, मानों ईश्वरीय अनुग्रह से ओत् प्रोत् हो गई हो। उस अनुग्रह से जो सदैव आच्छादित रहता, समर्थन देता, मुक्ति प्रदान करता तथा सब कुछ को पवित्र करता है। यहाँ, आज के पर्व का महान सन्देश स्पष्ट होता है और वह है सम्पूर्ण मानवजाति, विश्व के सभी लोगों तथा सभी संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के लोगों के प्रति उचित व्यवहार और उचित दृष्टि। विश्वासी को प्रभु ख्रीस्त से मिलनेवाली दृष्टि आशीर्वाद और अनुग्रह की दृष्टि हैः वह प्रज्ञावान एवं प्रेम से परिपूर्ण दृष्टि है जो विश्व के सौन्दर्य को हृदयंगम करने तथा उसकी कमज़ोरियों पर दया करने में सक्षम है।"








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