रोम, 31 मार्च, 2012(सीएनए) इटली की काथलिक कलीसिया ने दफ़न क्रिया की विधि के नये संस्करण
में लोगों को निर्देश दिया है कि वे मृतकों के अंतिम संस्कार के बाद उसकी अस्थि कलश या
अवशेष को न तो अपने घर में रखें, बिखेरें या बरबाद करें। इताली धर्माध्यक्षीय समिति
की ओर से जारी इस निर्देशिका में कहा गया है, "अंतिम संस्कार उस समय पूर्ण होता है जब
अस्थि कलश को कब्रस्थान में जमा कर दिया जाता है।" मृतकों के अवशेष या राख को कब्रस्थान
में न रख कर दूसरी जगह रखना ख्रीस्तीय विश्वास के पूर्ण सामंजस्य के संबंध में कई प्रश्न
खड़ा करता है, ख़ास करके जब वे इसे सर्वात्मवादी या प्राकृतिक धारणाओं से जोड़ते हैं।
विदित हो कि दफ़न क्रिया के संबंध में नयी किताब का प्रकाशन पिछले माह किया गया है
जिसे अगले 2 नवम्बर से लागू किया जायेगा। यह भी ज्ञात हो कि इटली में करीब 10 प्रतिशत
मृतकों की दहन क्रिया की जाती है। इताली सरकार ने सन् 2010 से लोगों को यह छूट दी थी
कि वे मृतकों के अवशेष या राख को भूमि या समुद्र में डाल दें या उनकी अस्थिकलश को घरों
में रखें। इस सरकारी छूट के तहत् मीडिया में इस बात की चर्चा थी कि काथलिक कलीसिया
भी सरकारी छूट को मान्यता देगी। परंपरागत रूप से काथलिक कलीसिया ने मृतकों के दहन
की अनुमति तब दी जाती जब किसी प्राकृतिक आपदा के समय मृत शरीर को जल्दी हटाये जाने की
नौबत आयी हो। मृतकों के दहन के संबंध में काथलिक कलीसिया का माननाथा कि ख्रीस्तीय
दफ़न क्रिया का नकारा जाना ख्रीस्तीय विश्वास - पुनरुत्थान के दिन मृतकों का जी उठना
और आत्मा के अमर होने को नकारना है। विदित हो कि कई काथलिक विरोधी आन्दोलनों जैसे
फ्रीमासोन्स ने दहन संस्कार की बात 18वीं सदी में ही कही थी। इस संबंध में काथलिक
कलीसिया ने सने 1963 ईस्वी में पवित्र धर्मविधि दस्तावेज़ ‘पियाम एत कोनस्तानतेम’ के
तहत कहा है "दहन क्रिया आत्मा को प्रभावित नहीं करती न ही यह परमशक्तिशाली ईश्वर की उस
शक्ति को रोकती है जिसके द्वारा वे शरीर को पुनर्जीवित कर सकते हैं, न तो ख्रीस्तीय सिद्धांत
के विरुद्ध है।" सन् 1992 की धर्मशिक्षा ने इस बात की पुष्टि की है और कहा है कि
काथलिक कलीसिया इस बात की शिक्षा देती है कि लोगों को दहन क्रिया करने की अनुमति है बशर्ते
कि ऐसा करना ‘विश्वास का त्याग’ या ‘मृतकों के पुनरुत्थान’ का खंडन न लगे।