हवाना, 29 मार्च, 2012 (सेदोक, वीआर) मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, धन्य है प्रभु ईश्वर
और धन्य है उसका पावन महिमामय नाम (दानियेल, 3: 52) यह गीत जो दानियेल की किताब से लिया
गया है पूरी पूजनविधि में प्रतिध्वनित हो रहा है और हमें आमंत्रित कर रहा है कि हम ईश्वर
का धन्यवाद दें और उसके नाम की महिमा गायें। हम आज यहाँ हैं ताकि हमें निरंतर ईश्वर की
महिमा गायें। हम आज यहाँ जमा हुए हैं ताकि हम ईश्वर को धन्यवाद दें और उँचे स्वर से अपने
हर्ष को व्यक्त करें जो ईश्वर तक पहुँचने की हमारी विश्वास यात्रा को प्रेम और सत्य से
सुदृढ़ करे। ईश्वर धन्य है जिसने हमें इस ऐतिहासिक प्राँगण जमा किया है ताकि हम गहराई
से अपने उसके जीवन में प्रवेश कर सकें। ‘आवर लेडी ऑफ चैरिटी ऑफ एल कोबरे’ की जुबिली को
समर्पित यह यूखरिस्तीय बलिदान चढ़ाते हुए मुझे अपार खुशी का अनुभव हो रहा है। सस्नेह.
मैं हवाना के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल हइमे ओरतेगा वाय अलामिनो उनके नेक शब्दों के लिये
धन्यवाद देता हूँ। इसके साथ ही मैं अन्य कार्डिनलों और क्यूबा तथा निकटवर्ती देशों से
आये धर्माध्यक्ष बन्धुओं को अभिवादन करता हूँ हमारे साथ इस समारोही ख्रीस्तयाग के लिये
उपस्थित हैं। मैं पुरोहितों, धर्मबंधुओं, धर्मसमाजी भाई-बहनों, स्थानीय नागरिक अधिकारियों
तथा तमाम लोकधर्मियों का स्वागत करते हूँ।
आज के पहले पाठ में हम तीन युवाओं
की प्रताड़ना के बारे में सुनते हैं जिन्होंने अपने विश्वास और अंतःकरण के साथ विश्वासघात
करने के बदले बबिलोनिया के राजा की आज्ञानुसार आग में झोंका जाना पसन्द किया । उन्होंने
अनुभव किया कि विश्व के प्रभु ईश्वर उन्हें मृत्यु तथा विनाश से बचायेंगे, उनका धन्यवाद
किया और उनकी महिमा गयीं। यह सत्य है, कि ईश्वर अपनी संतान को कदापि नहीं छोड़ते,
न ही उन्हें भूलते हैं। वे शक्तिशाली हैं और सदा हमारी रक्षा करते हैं। इसके साथ ही वे
अपने लोगों के साथ हैं और अपने पुत्र येसु मसीह के द्वारा उन्होंने हमारे बीच निवास किया
है।
यदि हम उनके वचनों को सुनते हैं तो हम उनके सच्चे शिष्य हैं और हम सत्य
को जानेंगे और सत्य हमें मुक्त कर देगा (योहन, 8, 31) ऐसा कहते हुए येसु हमें अपने आपको
ईश्वर के पुत्र और एक ऐसे मसीहा रूप में प्रस्तुत किया है जो एकमात्र सत्य हैं और हमें
मुक्ति प्रदान कर सकते हैं। उनकी शिक्षा का लोगों ने विरोध किया फिर भी उन्होंने उन्हें
विश्वास करने के लिये प्रेरित किया, ईशवचन के अनुसार चलने का आमंत्रण दिया ताकि वे सत्य
को जानें, जो उन्हें सम्मान और मुक्ति प्रदान करेगा। प्रिय भाइयो एवं बहनो, सत्य मानव
की स्वभाविक इच्छा है जिसकी चाह करना अर्थात सच्ची मुक्ति की तलाश करना। फिर भी कई ऐसा
नहीं करते और इस कार्य से बच जाना चाहते हैं। कई लोग पोंतुस पिलातुस के समान यह पूछ बैठते
हैं कि क्या सत्य को जानना संभव है? (योहन 18,38)। उनका सोचना है कि मानव सत्य को जानने
को सक्षम नहीं है या हम कहें कोई ऐसा सत्य नहीं है जो सबों के लिये उपयुक्त हो। यह एक
ऐसा मनोभाव है जिसे हम सापेक्षवाद या संशयवाद कहते हैं जो ह्रदय को कुंठित और कमजोर करता
और व्यक्ति को दूसरों से दूर या बन्द कर देता है। ऐसे लोग रोमी राज्यपाल के समान अपना
हाथ धो डालते हैं और अपने जीवन को अर्थहीन कर देते हैं। दूसरी ओर हम पाते हैं कि
कुछ लोग जो सत्य की खोज का सही अर्थ नहीं लगाते और इस तरह से तर्कशून्यता और कट्टरता
में वे खुद को "अपने सत्य" में बन्द कर देते हैं और इसी को दूसरों पर लादने का प्रयास
भी करते हैं। वे ठीक वैसे सदूकियों के समान हैं जो मार और खून से लथपथ येसु को देखकर
चिल्लाते हैं "उसे क्रूस दीजिये!" (योहन19,6)। जो भी तर्कशून्यता में कार्य करता है वह
येसु का शिष्य कदापि नहीं हो सकता। सत्य की खोज करने के लिये विश्वास और विवेक आवश्यक
औरये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ईश्वर ने जिस मानव की सृष्टि की है उसका जन्मजात स्वभाव
या बुलाहट रही है - सत्य की खोज करना। इसीलिये ईश्वर ने उसे विवेक प्रदान किया है। ख्रीस्तीय
विश्वास निश्चय ही इसी सत्य की खोज को बढ़ावा देता है - तर्कशून्यता की नहीं। प्रत्येक
मानव को सत्य की खोज करनी है और इसका तब भी आलिंगन करना है जब उसे अपना बलिदान तक करने
की ज़रूरत पड़े।
इसके साथ जो सत्य मानवता के ऊपर है वह स्वतंत्रता के प्राप्ति
के लिये एक अपरिहार्य शर्त बन जाता है। ऐसा इसलिये क्योंकि हम इसमें एक ऐसी नैतिकता की
नींव पाते हैं जिधर सब कुछ का केन्द्रित होता है और जो जीवन और मृत्यु, कर्त्तव्य और
अधिकार, विवाह, परिवार और समाज के बारे में स्पष्ट और यथार्थ संकेत देता है। संक्षेप
में यही कहा जा सकता है कि यह मानव के प्रति पवित्र गरिमा के प्रति इंगित करता है। यह
नैतिक विरासत विभिन्न संस्कृतियों, लोगों, धर्मों, अधिकारियों, नागरिकों, तथा विश्वासियों
और अविश्वासियों - सबों को एक साथ एकत्र करता है। वे सभी मूल्य जिन्हें नैतिकता
पोषित करती है, ख्रीस्तीयता ख्रीस्त का आमंत्रण का प्रस्ताव डालती है न कि किसी पर बस
थोप देती है। यह एक आमंत्रण है सत्य को जानने का जो हमें मुक्त करता है। एक विश्वासी
की बुलाहट है कि वह सत्य को हर दूसरे व्यक्ति कि सत्य को बाँटे जैसे कि येसु ने उस समय
किया जब उसे अपमानजनक क्रूस ढोना था। जिस व्यक्ति के पास सत्य है उसके साथ व्यक्तिगत
मुलाक़ात करने के बाद हम उस सत्य को दूसरों को बतलाने के लिये बाध्य हो जाते हैं, विशेषकरके
अपने साक्ष्य के द्वारा। प्रिय मित्रो, आप येसु का अनुसरण करने से न हिचकियाइये। उन्हीं
में हम ईश्वर का मानवजीवन की सच्चाई की पूर्णता को पाते हैं। वे हमें इस बात के लिये
मदद देते हैं कि हम स्वार्थ पर विजय प्राप्त करें, अपनी आकांक्षाओं से ऊपर उठें और उन्हें
जीतें जो हमें दबाते हैं। जो बुराई करता है वह पाप करता है और पाप का गुलाम बनता और
कभी भी मुक्ति प्राप्त नहीं करता है (योहन 8,34) घृणा का त्याग कर ही हमारे कठोर ह्रदय
और बंद आखें मुक्ति प्राप्त कर सकती हैं और हमें नया जीवन प्राप्त हो सकता है। येसु
ही मानव की सही माप है और उसको जानकर ही हम वह शक्ति प्राप्त कर सकते हैं जो हमें चुनौतियों
के समय शक्ति प्रदान करेंगी, ताकि हम खुलकर यह घोषित कर पायेंगे कि येसु मसीह ही मार्ग
सत्य और जीवन हैं। उन्हीं प्रभु येसु में हमें पूर्ण मुक्ति मिलेगी वह प्रकाश मिलेगा
जिससे हम सत्य को पहचानें कर अपने को नया कर सकेंगे। कलीसिया चाहती है कि हम
दूसरों के साथ उस सत्य को बाँटे जो और कोई दूसरा नहीं - प्रभु येसु ख्रीस्त ही हैं।(कोल1,27)
इस कार्य को पूरा करने के लिये वह चाहती है कि लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिले जो इस
बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति अपने विश्वास को सार्वजनिक रूप से घोषित करे और येसु
द्वारा लाये गये प्रेम, मेल-मिलाप और शांति के संदेश को दुनिया को बतलाये। आज
यह कहा जा सकता है कि क्यूबा में कई ऐसे कदम उठाये जा चुके हैं जिसके द्वारा कलीसिया
को अपने मिशन को स्वतंत्रतापूर्वक सार्वजनिक रूप से दूसरों को बतलाया जा सके। फिर भी
आज ज़रूरत है कि इसे जारी रखा जाये। आज मैं देश के नेताओं और अधिकारियों को प्रोत्साहन
देता हूँ कि वे इस दिशा में आगे बढ़ें और क्यूबा और समाज की सच्ची सेवा के लिये आगे आयें।
धार्मिक स्वतंत्रता दोनों निजी और सार्वजनिक दोनों अर्थों में मानव की एकता को प्रकट
करता है जो एक नागरिक और विश्वासी दोनों है। यह न्यायसंगत है कि एक विश्वासी समाज निर्माण
के क्षेत्र में अपना योगदान देता है। धार्मिक स्वतंत्रता सामाजिक संबंधों को मजबूत करता
बेहत्तर दुनिया की आशा को पोषित करता, शांति और सामंजस्यपूर्ण विकास की स्थितियों को
अनुकूल तो बनाता ही है भविष्य में आने वाली पीढ़ी के अधिकारों की नींव को मजबूत करता
है। जब कलीसिया मानव अधिकारों को बढ़ावा देती है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह कोई
विशेष सुविधाओं का दावा कर रही है। यह बस यही चाहती है कि वह अपने दिव्य संस्थापक के
प्रति वफ़ादार रहे और इस बात के प्रति जागरुक रहे कि जहाँ येसु उपस्थित है वहाँ मावनजाति
मानवीय होता और इसको स्थिरता मिलती है। इसीलिये कलीसिया चाहती है कि वह अपनी शिक्षा और
प्रवचन में इसी बात का साक्ष्य दे। इसीलिये इस बात की आशा की जानी चाहिये कि ऐसा समय
आयेगा जब कलीसिया उस बात को दुनिया को बता पायेगी जिसे येसु ने कलीसिया को सौंपा है।
इस कार्य की उपेक्षा कलीसिया कदापि नहीं कर सकती है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण हैं
इसी शहर हवाना के शिक्षाविद और पुरोहित फादर फेलिक्स वारेला जिन्होंने इस देश में लोगों
को चिन्तन करना सिखाया। फादर वारेला ने जो रास्ता दिखलाया वह रास्ता था सच्चे सामाजिक
परिवर्तन का – गुणसंपन्न मानवता के निर्माण का जो योग्य और मुक्त राष्ट्र का निर्माण
करें। यह परिवर्तन मानव के आध्यात्मिक जीवन पर निर्भर करता है। जैसा कि एलपीदियो के
पत्र में लिखा है, "गुणों के बिना सच्चे राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती।" क्यूबा
और दुनिया बदलाव चाहती है लेकिन यह तब ही संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति इस स्थिति में
हो कि वह सत्य को खोजे, प्रेम के मार्ग को चुने और दुनिया में भ्रातृत्व और मेल-मिलाप
का बीज बोया जा सके। माता मरिया की ममतामयी सुरक्षा की याचना करते हुए आइये हम प्रार्थना
करें कि जब भी हम यूखरिस्तीय समारोह में हिस्सा लें हम उस प्रेम का साक्ष्य दें जो बुराई
का उत्तर भलाई से दे। (रोमि. 12, 51) और अपने आप को जीवित बलिदान के रूप उन्हें चढ़ा
दें जिन्होंने हमारे लिये अपना बलिदान किया। आइये हम प्रभु के प्रकाश में चलना सीखें
जो अंधकार की बुराई का विनाश कर सकता है और उनसे निवेदन करें कि हम संतों के साहस और
सहायता से निर्भयता और उदारतापूर्वक अनवरत ईश्वर की ओर आगे बढ़ सकें।