2012-03-05 15:39:44

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा दिया गया संदेश


वाटिकन सिटी 5 मार्च 2012 (सेदोक, एशिया न्यूज) संत पापा बेनेडिरक्ट 16 वें ने रविवार 4 मार्च को संत पेत्रुस बासिलिका के प्रांगण में देश विदेश से आये लगभग 20 हजार तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व सम्बोधित किया। उन्होंने इताली भाषा में सम्बोधित करते हुए कहा-

अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
चालीसाकाल का यह दूसरा रविवार, येसु के रूपान्तरण का रविवार है। वस्तुतः चालीसाकाल की यात्रा में पूजनधर्मविधि मरूभूमि में येसु का अनुसरण करने तथा प्रलोभनों पर विजय पाने के लिए हमें आमंत्रित करते हुए सुझाव देती है कि हम पर्वत के ऊपर जायें अर्थात् प्रार्थना के पर्वत पर उनके साथ जायें तथा उनके मानवीय चेहरे में ईश्वर के महिमामय प्रकाश पर मनन चिंतन करें।
येसु के रूपान्तरण के प्रसंग का वर्णन संत मत्ती, संत मारकुस और संत लुकस के सुसमाचार में किया गया है। पहला, येसु ऊँचे पहाड़ के शिखर पर अपने शिष्यों पेत्रुस, याकूब और योहन के साथ जाते हैं जहाँ उनके सामने ही येसु का रूपान्तरण हो जाता है। उनका चेहरा और उनके वस्त्र चमकीले और उजले हो गये, जबकि एलियस और मूसा उनकी बगल में दिखाई दिये। दूसरा, एक बादल आकर उनपर छा गया और उसमें से एक वाणी यह कहते हुए सुनाई दी, " यह मेरा प्रिय पुत्र है इसकी सुनो।" इस प्रकार प्रकाश और आवाज आयी, दिव्य प्रकाश जो येसु के चेहरे पर चमका और स्वर्गीय पिता की वाणी जो उसके बारे में साक्ष्य देती है तथा उनकी बात सुनने के लिए आदेश देती है।
रूपान्तरण के रहस्य को उस पथ के प्रसंग से अलग नहीं किया जा सकता है जिसपर येसु चल रहे हैं। वे स्पष्ट रूप से अपना मिशन पूरा कर रहे हैं यह जानते हुए कि पुनरूत्थान प्राप्त करने के लिए उन्हें दुःखभोग और क्रूस पर मृत्यु के रास्ते से होकर जाना पड़ेगा। वे स्पष्ट और खुले रूप से इसके बारे में शिष्यों से कहते हैं जो उनकी बात को नहीं समझते हैं। वस्तुतः उन्होंने उनके प्रस्ताव को खारिज किया क्योंकि वे वैसा नहीं सोच रहे थे जैसा ईश्वर करते हैं बल्कि वैसे जैसा मनुष्य करता है। इसी कारण से येसु तीन शिष्यों को पहाड़ के शिखर पर ले गये और उनके सामने दिव्य महिमा को प्रकट किये। ईश्वर ज्योति हैं और येसु इस प्रकाश के अंतरंग अनुभव को अपने मित्रों को देना चाहते हैं, इस घटना के बाद उनमें निवास करते हुए वे उनके आंतरिक प्रकाश बन जायेंगे तथा अंधकार की ताकतों के हमलों से उनकी रक्षा कर सकते हैं। यहाँ तक कि अंधकारमय रात्रि में भी येसु वह प्रकाश हैं जो बुझते नहीं। संत अगुस्टीन इस रहस्य को सुंदर अभिव्यक्ति में व्यक्त करते हैं, कहते हैं- हम देखते हैं कि शरीर की आँख के लिए सूर्य जैसा है उसी प्रकार हृदय की आँख के लिए, ख्रीस्त हैं।
हम सबको जीवन की परीक्षाओं पर विजय पाने के लिए आंतरिक प्रकाश की जरूरत है। यह प्रकाश ईश्वर से आता है और यह ख्रीस्त हैं जो इसे हमें देते हैं। वे ही हैं जिन्में दिव्यता की पूर्णता वास करती है। येसु के साथ हम प्रार्थना के पर्वत के ऊपर जायें, उनके चेहरे पर मनन चिंतन करें जो प्रेम और सत्य से पूर्ण हैं, उनके प्रकाश से हम स्वयं भर जायें। कुँवारी माता मरिया, विश्वास के पथ पर हमारी मार्गदर्शिका से हम याचना करें कि चालीसाकाल के दौरान इस अनुभव को जीने के लिए वे हमारी सहायता करें। हम प्रतिदिन मौन प्रार्थना करने के लिए तथा ईशवचन सुनने के लिए कुछ समय निकालें।
इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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