रोम 23 फरवरी 2012 सीएनएस) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रोम के अवन्तीन पहाडी पर पांचवी
सदी में निर्मित संत सबीना गिरजाघर में 22 फरवरी को राखबुध के दिन प्रवचन करते हुए पवित्र
धर्मशास्त्र तथा ख्रीस्तीय विचार के तहत राख के अर्थ पर प्रकाश डाला। राख संस्कारीय चिह्न
नहीं है लेकिन यह प्रार्थना और ईसाईयों के पवित्रीकरण से जुड़ा है। राखबुध के राख इसलिए
हमें मानव की सृष्टि का स्मरण कराते हैं। पाप के कारण इसे नकारात्मक अर्थ मिलता है लेकिन
पतन से पूर्व भूमि पूरी तरह अच्छी है लेकिन आदम और हेवा द्वारा पाप करने के बाद यह कांटे
और ऊँटकटारे उत्पन्न करती है। ईश्वर की सृजनकारी स्थिति का स्मरण कराने के स्थान पर यह
मृत्यु का संकेत बन जाती है। संत पापा ने कहा कि यह परिवर्तन दिखाता है कि धरती
स्वयं मानव की नियति में सहभागी होती है। भूमि को शाप दिया जाना मनुष्य को अपनी सीमितता
तथा मानव स्वभाव को पहचानने के लिए मदद करता है। यह शाप पाप के द्वारा आता है न कि ईश्वर
से । इस सज़ा में भी ईश्वर की ओर से अच्छा मनोरथ है। तुम मिट्टी हो और मिट्टी में मिल
जाओगे इन शब्दों में न केवल सज़ा है लेकिन मुक्ति के पथ की उदघोषणा भी है। संत पापा
ने चालीसाकाल के बारे में कहा कि यह तपस्या का पवित्र संकेत है जो पाप के कारण शाप पाने
तथा गिरे हुए विश्व में पुनरूत्थान की प्रतिज्ञा को भी प्रतिबिम्बित करता है। पवित्र
धर्मशास्त्र के शब्द " तुम मिट्टी हो और मिट्टी में मिल जाओगे " पश्चाताप करने, विनम्र
बनने तथा हमारी मरणशील अवस्था के बारे में जागरूक होने के लिए निमंत्रण है। संत पापा
ने कहा कि हमें निराश या हताश नहीं होना है लेकिन अपनी मरणशील अवस्था में स्वागत करें
ईश्वर की निकटता का जो पुनरूत्थान के लिए रास्ता खोलती है, हम मृत्यु से परे स्वर्ग पुनः
पा सकते हैं। यही भाव जो पुनर्जीवित येसु से हमें मिलती है हमारे दिलों को पाषाण हृदय
से बदलकर कोमल दिलों में बदल सकती है। चालीसाकाल पास्का के पुनरूत्थान की ओर यात्रा
है। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि चालीसाकाल के आरम्भ में राख का विलेपन पाना
या मस्तक पर भस्म रमाना पश्चाताप करने तथा विनम्र बनने का बुलावा है साथ ही यह चिह्न
है कि विश्वासी जानते हैं कि उनके जीवन में मृत्यु अंतिम शब्द नहीं है।