2012-02-11 14:56:23

कलीसिया बीमारों की उचित सेवा करे


रोम, 11 फरवरी, 2012 (ज़ेनित) स्वास्थ्य सेवा के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल ज़िगमुंट ज़िमोवस्की ने कहा है, “विश्व रोगी दिवस मनाने के द्वारा कलीसिया चाहती है कि कलीसिया के सदस्य, स्वास्थ्य सेवा संस्थान और आम लोग यह निश्चित करें कि वे बीमारों की उचित देख-भाल करेंगे”।
उन्होंने कहा, “कलीसिया चाहती है कि इस रोगी दिवस के दिन स्वास्थ्य सेवाकर्मियों के आध्यात्मिक और नैतिक प्रशिक्षण पर ध्यान दिया जाये और प्रत्येक धर्मप्रांत इस बात को देखे कि रोगियों के साथ-साथ, रोगियों की सेवा करने वालों का भी ख्रीस्तीय जीवन सुदृढ़ हो”।
महाधर्माध्यक्ष ज़िमोवस्की ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने 11 फरवरी को लूर्द की माता मरिया के पर्व दिन मनाये जाने वाले रोगी दिवस के अवसर पर एक साक्षात्कार दिया।
उन्होंने बतलाया कि रोगी दिवस की शुरूआत धन्य जोन पौल द्वितीय ने सन् 1992 ईस्वी में की। धन्य जोन पौल द्वितीय ने अपने एक दस्तावेज़ ‘साल्भची दोलोरिस’में कहा था, “येसु ख्रीस्त में प्रत्येक व्यक्ति कलीसिया का मार्ग बनता है और जब उसके जीवन में दुःख आते हैं तो वह कलीसिया का विशिष्ट मार्ग बन जाता है”।
उन्होंने बताया कि शनिवार 11 फरवरी को पड़ने वाला रोगी दिवस हम सबों को इस बात की याद दिलाता है कि कलीसिया का विश्व में विस्तार हुआ क्योंकि यह दुनिया के लोगों की सेवा करता और बीमारों की विशेष सेवा करता है।
उन्होंने संत पापा बेनेदिक्त की बातों को उनके दस्तावेज़ स्पे साल्वी’ के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा, “मानव जीवन तब अर्थपूर्ण होता है जब उनके साथ अपना रिश्ता मजबूत करते हैं जो बीमार हैं तथा बीमार हैं पर अपने दुःखों के बारे में दूसरों को बताने में असमर्थ हैं। यह व्यक्ति और समाज दोनों पर लागू होता है। एक समाज जो रोगियों को नहीं स्वीकार कर सकता और जो दूसरे के दुःख में सहभागी नहीं हो सकता या उनके दुःखों की सह-अनुभूति नहीं कर सकता वह अमानुषिक या क्रूर समाज है”।












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