2012-02-10 15:37:22

साहेल क्षेत्र की निर्धनता को दूर करने के लिए संत पापा का आग्रह


वाटिकन सिटी 10 फरवरी 2012 (वी आर वर्ल्ड ) जोन पौल द्वितीय साहेल फाउंडेशन विश्व के निर्धनतम क्षेत्रों में सहायता पहुँचाने के लिए काम करता है। इन्में शामिल है अफ्रीका के देश- चाड, गाम्बिया, बुरकीना फासो, केप वेरदे, गिनिया बिसाऊ, माली, माउरितानिया, नाईजर और सेनेगल। इस फाउंडेशन की स्थापना संत पापा जोन पौल द्वितीय ने 1980 में अफ्रीका की अपनी पहली यात्रा के बाद किया था। इसकी प्रशासक समिति में साहेल क्षेत्र के नौ देशों के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के प्रतिनिधि धर्माध्यक्ष तथा जर्मनी और इताली धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने फाउंडेशन के सदस्यों को शुक्रवार को सम्बोधित करते हुए रेखांकित किया कि खाद्य संसाधनों में सार्थक गिरावट होने, वर्षा न होने से सुखे की स्थिति और मरूस्थलीय क्षेत्र का दायरा निरंतर बढ़ने से साहेल क्षेत्र में पुनः खतरा उत्पन्न हुआ है। उन्होंने घोर गरीबी की अवस्था में जीवन जी रहे इस क्षेत्र के लोगों की सहायता करने के लिए गंभीर उपाय करने का अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया। संत पापा ने कलीसियाई निकायों के प्रयासों और कार्य़ों का समर्थन देकर उन्हे उत्साहित किया जो जरूतमंदों की सहायता कर रहे हैं तथा कैसे जोन पौल द्वितीय साहेल फाउंडेशन विशिष्ट रूप से पोप की उपस्थिति का संकेत है जैसा कि उन्होंने कहा था " हमारे अफ्रीकी बंधु जो साहेल में निवास करते हैं।"

संत पापा ने कहा कि इस फाउंडेशन का अस्तित्व उनके पूर्वाधिकारी की मानवता को दर्शाता है। इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि परोपकार के काम प्रार्थना से संयुक्त हों ताकि अपनी पूर्ण प्रभावशीलता को प्राप्त करें। जिन देशों में इस्लाम धर्म है और जहाँ साहेल फाउंडेशन के कार्य सम्पन्न होते हैं संत पापा ने कहा कि उन्हें प्रसन्नता है कि यहाँ मुसलमान समुदाय के साथ इसका अच्छा संबंध है तथा साक्ष्य देता है कि ख्रीस्त जीवित हैं और उनका प्रेम धर्म, जाति और संस्कृति की सीमाओं से परे है।
फाउंडेशन की भावी चुनौतियों और समर्पण के बारे में संत पापा ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि यह स्वयं को नवीकृत कर मजबूत करता रहे तथा परमधर्मपीठीय समिति कोर उन्नुम की सहायता से यह महत्वपूर्ण है कि परोपकार तथा उदारता का केन्द्र ख्रीस्तीय प्रशिक्षण और शिक्षण रहे। संत पापा ने कहा कि अब अफ्रीका को शुभ समाचार का घर तथा कलीसिया के लिए आशा का महादेश के रूप में देखा जा रहा है।








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