वाटिकन सिटी, 30 जनवरी, 2012 (सीएनए) स्वास्थ्य सेवा के लिये बनी परमधरमपीठीय समिति के
अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष जिगमुंट ज़िमोस्की ने कहा है, "कुष्ठ रोग से पीड़ित ईश्वरीय प्रेम
से कभी वंचित नहीं होंगे।"
महाधर्माध्यक्ष ज़िमोस्की ने उक्त बात उस समय कही
जब उन्होंने 29 जनवरी को मनाये जानेवाले 59वें विश्व कुष्ठ रोगी दिवस के अवसर पर कुष्ठ
रोग से पीड़ित लोगों को अपना संदेश दिया।
उन्होंने कहा, "जो पीड़ित है पर ईश्वर
से प्रार्थना करते हैं, वे ईश्वर के प्रेम से कभी परित्यक्त नहीं होंगे।"
धर्माध्यक्ष
ने कहा, "जो कुष्ठ की चिकित्सा करा रहे हैं उन्हें चाहिये कि वे अपनी मर्यादा और आध्यात्मिकता
की समृद्धि को खुल कर प्रकट करें।"
उन्होंने कहा, "जो इस बीमारी से मुक्त हो
गये हैं उन्हें चाहिये कि वे अपने कार्यों से अपनी कृतज्ञता प्रकट करें और उनका साहस
बढ़ाये जो अब भी पीड़ित हैं।"
उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे बीमारी की पहचान
और इसके रोकथाम के लिये भी अपना योगदान दें। ऐसा करने से वे अपनी आंतरिक आध्यात्मिक प्रचुरता
से समाज के अन्य पीड़ितों की सहायता कर सकते हैं जिन्हें लोग कुष्ठ रोग की बीमारी के
संक्रमण के कारण अक्षम मानते हैं।"
विदित हो, ‘हैनसन्स रोग’ के नाम से भी चर्चित
कुष्ठ रोग से दुनिया को अब भी मुक्ति प्राप्त करना बाकी है हालाँकि इसकी संख्या दिनोंदिन
कम होती जा रही है। ‘वर्ल्ड हेल्थ ऑरगानाइजेशन’ के अनुसार वर्ष सन् 2010-11 में विश्व
में कुष्ठ रोगियों की संख्या 2 लाख रिपोर्ट की गयी।
महाधर्माध्यक्ष ज़िमोस्की
ने कहा कि संत पापा ने 20वें रोगी दिवस के लिये जो विषय चुना है वह कुष्ठ रोगियों के
लिये सांत्वनादायक है। 20वें रोगी दिवस के लिये जो विषयवस्तु है उस संत लूकस के 17 अध्याय
के 19वें पद को लिया गया है जिसमें कहा गया है "खड़े हो जाओ और चलो, तुम्हारे विश्वास
ने तुम्हें बचा लिया है।"
महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि जिस प्रकार 10 कोढ़ियों को
येसु ने चंगाई प्रदान की और उन्हें उनके समुदाय में फिर से शामिल कर लिया गया और उन्हें
सामाजिक जीवन में स्वीकृत किया गया वैसा ही कुष्ठ रोगियों के साथ भी हो।
महाधर्माध्यक्ष
ने कुष्ठ रोगियों के लिये कार्यरत इटली के बोलोनिया में अवस्थित ‘रावल फोलराव’ संगठन
की तारीफ़ की और लोगों से अपील की है कि वे कुष्ठ रोग से पूर्ण मुक्ति के लिये कार्य
करना जारी रखें तथा कोढ़ की बीमारी के पुनरावर्तन से लोगों को बचायें।