अल्पसंख्यकों और धार्मिक स्वतंत्रता पर एक रिपोर्ट ‘ईयू’ को
नई दिल्ली, 28 जनवरी, 2012 (कैथन्यूज़) नई दिल्ली में 27 जनवरी शुक्रवार सम्पन्न एक सभा
में ईसाइयों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने यूरोपीय यूनियन(ईयू)
को अल्पसंख्यकों और धार्मिक स्वतंत्रता अधिकारों पर एक रिपोर्ट सौंपी।
रिपोर्ट
का शीर्षक है "फ्रीडम ऑफ़ रेलिज़नः ज्वोइन्ट स्टेकहोल्डर्स रिपोर्ट फॉर द यूनिवर्सल पेरियोडिक
रिभियु, 2012". अर्थात् " भारत में धर्म की स्वतंत्रता: यूनिवर्सल आवधिक समीक्षा 2012
के लिए हितधारकों संयुक्त रिपोर्ट।"
विदित हो कि प्रत्येक चार सालों में देश
की मानवाधिकार स्थिति को संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद् जाँच करती है।
‘नैशलन
दलित ह्युमन राइट्स कम्पेन’ के सदस्य एस प्रसाद ने बतलाया कि इस रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों
विशेष करके ईसाइयों और मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में चर्चा
है।
श्री प्रसाद ने कहा, "देश धर्मनिर्पेक्ष होने के बावजूद कुछ लोग सरकारी
मशीनरी की मिलीभगत से अल्पसंख्यकों के अधिकारों को छीन लेते हैं।"
उन्होंने
बतलाया कि कई राज्यों - जैसे कर्नाटक और उड़ीसा में हिन्दु चरमपंथी ईसाइयों को अपने धर्म
का पालन स्वतंत्रतापूर्वक नहीं करने देते।
मानवाधिकार कार्यकर्ता धिरेन्द्र
पांडे ने बतलाया कि यह रिपोर्ट नई दिल्ली, बंगलोर और भुवनेश्वर में संपन्न राष्ट्रीय
सभाओं का परिणाम है।
‘ऑल इंडिया क्रिश्चियन कौंसिल’ के महासचिव जोन दयाल के
अनुसार ‘टारगेटेड भयोलेंस बिल 2011’ को पालियामेंट में पास किया जाना चाहिये ताकि चरमपंथियों
के आक्रमण से अल्पसंख्यकों को बचाया जा सके।
उन्होंने कहा, "धर्मपरिवर्तन
विरोधी कानून नागरिकों के मूल अधिकारों के विरुद्ध है धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है जिसे
निरस्त किया जाना चाहिये।"
उधर यूरोपीय यूनियन के राजनीतिक मामलों के सचिव
फिलिप ऑलिवर ग्रोस ने कहा, "हमारी हार्दिक इच्छा है कि मानवाधिकारों की रक्षा हो और धार्मिक
स्वतंत्रता का सम्मान हो। उन्होंने आश्वासन दिया कि निश्चिय ही यूपीआर प्रक्रिया में
उन बातों की चर्चा की जायेगी।
सभा में जोन दयाल पंडा और प्रसाद के अलावा सीबीसीआई
के न्याय और शांति संबंधी आयोग के सचिव फादर चार्ल्स इरुदयम और उड़ीसा के फॉरम ऑफ़ सोशल
ऐक्शन के फादर अजय कुमार सिंहभी उपस्थित थे।
इस रिपोर्ट को तैयार करने में
जिन अन्तरराष्ट्रीय स्वंयसेवी संस्थाओं ने अपना योगदान दिया वे हैं ‘पैक्स रोमाना’, ‘वर्ल्ड
कौंसिल ऑफ़ चर्चेस’, ‘दोमिनिकन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ और 87 सिविल सोसायटी समुदाय।