2012-01-24 12:47:05

वाटिकन सिटीः विश्व सम्प्रेषण माध्यम दिवस 2012 के लिये सन्त पापा का सन्देश प्रकाशित


वाटिकन सिटी, 24 जनवरी सन् 2012 (सेदोक): वाटिकन ने विश्व सम्प्रेषण दिवस सन् 2012 के लिये सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के सन्देश की प्रकाशना कर दी। प्रतिवर्ष 24 जनवरी को सम्प्रेषण माध्यम कार्यकर्त्ताओं के संरक्षक सन्त, "फ्राँसिस द सेल्स" के पर्व के दिन, कलीसिया के परमाध्यक्ष, विश्व सम्प्रेषण दिवस के उपलक्ष्य में अपना विशिष्ट सन्देश जारी करते हैं। इस सन्देश में सन्त पापा ने सम्प्रेषण माध्यम के मानवीय आयाम पर चिन्तन प्रस्तुत कर मौन एवं शब्द को सम्प्रेषण माध्यम के दो महत्वपूर्ण तत्व निरूपित किया है।

सन्त पापा ने कहा कि वर्तमान जगत के परिप्रेक्ष्य में यदि यथार्थ सम्वाद को साकार करना है तथा लोगों के साथ आत्मीयता को हासिल करना है तो मौन एवं शब्द के बीच सन्तुलन बनाना अनिवार्य है। सन्त पापा ने कहा, "जब मौन और शब्द आपस में एक दूसरे से अलग हो जाते हैं तब सम्प्रेषण भंग हो जाता है, इसलिये कि इससे या तो अस्त व्यस्तता उत्पन्न हो जाती है अथवा ये उपेक्षा भाव को प्रश्रय देता है। किन्तु जब मौन और शब्द एक दूसरे के सम्पूरक बनते हैं तब सम्प्रेषण और संचार मूल्यवान एवं अर्थगर्भित बन जाता है।"

सन्त पापा ने कहा, "मौन सम्प्रेषण माध्यम का एक अखण्ड तत्व है; इसकी अनुपस्थिति में, विषयवस्तु में समृद्ध शब्द का कोई अस्तित्व नहीं। मौन अवस्था में हम अपने आप को बेहतर तरीके से सुन सकते तथा समझ सकते हैं। मौन अवस्था में विचार जन्म लेते तथा गहराई को पकड़ते हैं; हम यह स्पष्ट रूप से समझ पाते हैं कि हमें क्या कहना है, अन्यों से हम क्या अपेक्षा करते हैं तथा उसी के अनुसार हम अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं।"

सन्त पापा ने कहा कि मौन धारण हमें गहन चिन्तन करने का मौका देता है जिससे बाद में हम घटनाओं को, दूरदृष्टि के साथ, उचित शब्दों में ढालने के काबिल बनते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे उपयुक्त वातावरण के निर्माण के लिये ज़रूरी है ऐसा पर्यावरणीय निकाय जो मौन, शब्द, छवि एवं ध्वनि के बीच सन्तुलन बनाये रखे।

सन्त पापा ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि वर्तमान जगत में इन्टरनेट के विकास के कारण लोगों में प्रश्नोत्तर की भरमार सी हो गई है। सर्ज इन्जिन हमें कई प्रश्नों के उत्तर देने में समर्थ हैं किन्तु सम्प्रेषण जगत की जटिलताओं एवं विविधताओं में मानव अक्सर खो जाता है और मानव अस्तित्व के प्रश्न का उत्तर पाने में असमर्थ ही रहता है। उन्होंने कहा कि इस अहं प्रश्न का उत्तर पाने के लिये मौन धारण एवं चिन्तन की नितान्त आवश्यकता है ताकि व्यक्ति को अन्यों के साथ विचारों के आदान प्रदान तथा सम्वाद के लिये आलोक मिल सके।








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