2012-01-06 11:15:08

प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में, ख्रीस्तयाग के अवसर पर किये सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के प्रवचन के कुछ अंश


25 दिसम्बर को प्रभु ख्रीस्त की जयन्ती मना लेने के 12 दिन बाद ख्रीस्तीय धर्मानुयायी छः जनवरी को ऐपिफनी, प्रभु प्रकाश का महापर्व अथवा तीन राजाओं का महापर्व मनाते हैं। वस्तुतः ऐपिफनी का अर्थ है किसी चीज़ को दर्शनीय बनाना, किसी को प्रकाशित करना या किसी के विषय में लोगों को ज्ञान कराना। यह महापर्व सुदूर पूर्व से, तारे के इशारे पर बेथलेहेम पहुँचे तीन विद्धानों द्वारा शिशु येसु के दर्शन के स्मरणार्थ मनाया जाता है।

प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में महायाग अर्पित किया तथा बाद में महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इन अवसरों पर किये उनके प्रवचनों के कतिपय अंशों को ही आज हम श्रोताओं की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं। ख्रीस्तयाग प्रवचन में सन्त पापा ने प्रभु प्रकाश अर्थात विश्व के समक्ष प्रभु के प्रकटीकरण के रहस्य पर प्रकाश डाला, उन्होंने कहाः

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,

एपीफनी अर्थात् प्रभु की प्रकाशना ज्योति का महापर्व है। "उठकर प्रकाशमान हो जा क्योंकि तेरी ज्योति आ रही है और प्रभु ईश्वर की महिमा तुझपर उदित हो रही है" (इसायस 60:1)। इन शब्दों से नबी इसायाह और कलीसिया इस महापर्व की विषय वस्तु का वर्णन करते हैं। वे जो सच्ची ज्योति हैं, और जिनके द्वारा हम भी ज्योति बनने के लिये बुलायें गये हैं, वे वास्तव में इस विश्व में आये हैं। वे हमें ईश सन्तान बनने की शक्ति प्रदान करते हैं, जैसा कि सन्त योहन रचित सुसमाचार में हम पढ़ते हैं: "शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था। वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना। वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया। किन्तु, जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।"
सन्त पापा ने कहा, "एपीफनी महापर्व के लिये निर्धारित धर्मग्रन्थ पाठों के अनुसार सुदूर पूर्व के तीन राजाओं की यात्रा उस महान शोभायात्रा का शुभारम्भ है जो इतिहास में अनवरत जारी रहा करती है। तीन राजाओं के साथ, प्रभु येसु तक, मानव जाति की तीर्थयात्रा आरम्भ होती है। उन प्रभु तक जिन्होंने गऊशाले जन्म लिया, जो क्रूस पर मर गये तथा जो, मुर्दों में से पुनः जी उठने के बाद संसार के अन्त तक हमारे साथ विद्यमान रहते हैं (दे. मत्ती 28:20)।"

सन्त पापा ने कहा कि प्रभु येसु की भेंट साधारण और निर्धन चरवाहों से शुरु हुई थी, जिनके बाद पूर्व के तीन विद्धानों ने ईश पुत्र मुक्तिदाता की ओर सम्पूर्ण मानवजाति का पथ प्रदर्शित किया। नबी इसायाह के दिव्य दृश्य के बाद एफेसियों के प्रेषित सन्त पौल के पत्र से लिया गया पाठ भी इसी विचार को सीधे और सरल शब्दों में व्यक्त करता है। इस पत्र के तीसरे अध्याय के छठवें पद में लिखा हैः "वह रहस्य यह है कि सुसमाचार के द्वारा यहूदियों के साथ ग़ैर-यहूदी एक ही विरासत के अधिकारी हैं, एक ही शरीर के अंग हैं और ईसा मसीह-विषयक प्रतिज्ञा के सहभागी हैं।" जबकि स्तोत्र ग्रन्थ का दूसरा भजन इस विचार को इन शब्दों में अभिव्यक्ति देता है, "प्रभु ने मुझ से कहा, ''तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम को उत्पन्न किया है। मुझ से माँगो और मैं तुम्हें सभी राष्ट्रों का अधिपति तथा समस्त पृथ्वी का स्वामी बना दूँगा।"

प्रभु प्रकाश महापर्व के अवसर पर सन्त पापा ने दो पुरोहितों का धर्माध्यक्षीय अभिषेक सम्पन्न किया। इस विषय में उन्होंने कहाः "पूर्व के तीन विद्धानों ने पथ प्रदर्शित किया। उन्होंने सब लोगों के लिये ख्रीस्त तक जानेवाला मार्ग प्रशस्त किया। आज, ख्रीस्तयाग के दौरान मैं दो पुरोहितों का अभिषेक कर उन्हें धर्माध्यक्षीय पद प्रदान करूँगा। ईश्वर के चरवाहे रूप में मैं उनका अभिषेक करूँगा। सन्त योहन रचित सुसमाचार के अनुसार येसु के शब्दों में, चरागाह के आगे आगे चलना भी चरवाहे का दायित्व है (दे.योहन 10:4)। अस्तु, धर्माध्यक्ष हमारा आदर्श हो सकते हैं, मार्गदर्शन के लिये हम इनकी ओर अभिमुख हो सकते हैं। बाईबिल विशेषज्ञों के अनुसार, येसु के दर्शन करने पहुँचे, तीन विद्धान खगोल शास्त्री थे। वे मेसोपोटामिया में उस युग में विकसित खगोल शास्त्रीय परम्परा वाले विद्धान थे। वैसे तो प्राचीन बेबीलोनिया में कई खगोल शास्त्री थे किन्तु ये तीन विद्धान ही तारे का इशारा पाकर येसु के दर्शन करने लम्बी यात्रा पर निकल चले क्योंकि वह तारा उनके लिये प्रतिज्ञा का तारा था जो उन्हें यथार्थ राजा तथा मुक्तिदाता के पास ले जानेवाला था। वे केवल वैज्ञानिक तड़प को बुझाने ही नहीं निकले थे बल्कि वे समझना चाहते थे कि मानव प्राणी वास्तव में है क्या? वे साधारण ज्ञान से तृप्त होनेवाले व्यक्ति नहीं थे वे ईश्वर की खोज करना चाहते थे। इसीलिये उन्होंने साहसपूर्वक, त्याग एवं तपस्या से भरपूर होकर, येसु के जन्म स्थल तक, इतनी लम्बी एवं कठिन यात्रा तय की थी।

सन्त पापा ने आगे कहाः "प्रिय मित्रो, इन सब में हम कैसे धर्माध्यक्षीय मिशन के अनिवार्य तत्वों को न देखें? धर्माध्यक्ष को भी ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो इस संसार की साधारण चीज़ों से सन्तुष्ट न हो बल्कि आन्तरिक रूप से उसमें ईश्वर के अधिकाधिक निकट जाने की, ईश्वर के मुखमण्डल के दर्शन करने की, ईश्वर को पहचानने की तथा ईश्वर के प्रेम से ओत् प्रोत् होने की प्यास होनी चाहिये। धर्माध्यक्ष में सत्य असत्य में अन्तर करने का विवेक होना चाहिये। उसे विनम्रता और साहस से भरा व्यक्ति होना चाहिये। लोग उसके बारे में क्या कहते हैं उसकी उसे परवाह नहीं करनी चाहिये अपितु ईश सत्य के मापदण्डों के अनुकूल जीवन यापन करना चाहिये। धर्माध्यक्ष को अन्यों का पथ प्रदर्शन करना चाहिये। उसे उन प्रभु के पथ पर आगे आगे चलना चाहिये जो सच्चे मेषपाल हैं, जो प्रतिज्ञा के यथार्थ तारे हैं अर्थात् येसु ख्रीस्त के पद चिन्हों पर चलना चाहिये।

सन्त पापा ने आगे कहाः "विद्धानों ने तारे का अनुसरण किया था। सृष्टि की भाषा द्वारा उन्होंने इतिहास के ईश्वर की खोज की। तथापि, इसके लिये सृष्टि की भाषा पर्याप्त नहीं थी। केवल ईश वचन, जिसका साक्षात्कार हम पवित्र धर्मग्रन्थ में करते हैं, निश्चयात्मक रूप से उनका पथ प्रदर्शित कर सकी। सृष्टि एवं धर्मग्रन्थ तथा तर्कणा एवं विश्वास को साथ साथ चलना चाहिये ताकि जीवन्त ईश्वर तक हमारा पथ प्रदर्शित हो सके।"

उन्होंने कहा वह महान और यथार्थ तारा जो हमें रास्ता दिखाता है वह स्वयं येसु ख्रीस्त हैं। वे, मानों ईश प्रेम का विकिरण हैं जो अपने हृदय की श्वेत एवं उज्जवल ज्योति को विश्व में प्रज्वलित करते हैं। तीन विद्धानों के साथ, हमारे सब सन्त भी वे तारे बन गये हैं जो हमें ईश्वर के प्रकाश से आलोकित करते हैं।











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