वाटिकन सिटीः विश्व रोगी दिवस के सन्देश में सन्त पापा ने पीड़ा के महत्व पर बल दिया
वाटिकन सिटी, 04 जनवरी सन् 2012 (सेदोक): सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने विश्व रोगी दिवस
सन् 2012 के उपलक्ष्य में जारी अपने सन्देश में पीड़ा के महत्व पर बल देकर कहा है कि
यह समय कृपा का काल सिद्ध हो सकता है।
मंगलवार तीन जनवरी को वाटिकन ने सन्त पापा
बेनेडिक्ट 16 वें के उक्त सन्देश की प्रकाशना की। काथलिक कलीसिया द्वारा घोषित विश्व
रोगी दिवस, प्रति वर्ष, 11 फरवरी को लूर्द की रानी मरियम के पर्व दिवस पर मनाया जाता
है।
सन्त पापा ने सन्देश में कहा कि रोगावस्था, "पीड़ा का काल होता है जिसमें
व्यक्ति हताश और निराश होने के प्रलोभन में पड़ सकता है तथापि, अपनी पीड़ा को अर्थ प्रदान
कर तथा कष्टों के समय में अपनी सफलता और विफलता का ध्यान करते हुए जीवन पर मनन चिन्तन
कर, व्यक्ति, इसे कृपा का काल बना सकता है।"
इस वर्ष के सन्देश में सन्त पापा
ने चंगाई या विलेपन संस्कार पर विशेष चिन्तन किया। उन्होंने कहा कि रोगी का विलेपन कोई
लघु या गौण संस्कार नहीं है किन्तु ऐसा संस्कार है जो इसे प्रदान करनेवाले तथा इसे ग्रहण
करनेवाले दोनों को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है।
सन्त पापा ने इस बात की ओर
ध्यान आकर्षित कराया कि विलेपन संस्कार, जिसे पहले आख़िरी मालिश या अन्तिम संस्कार भी
कहा जाता था, "केवल व्यक्ति के अन्त समय में ही नहीं अपितु रोगावस्था से सम्बन्धित विभिन्न
मानवीय स्थितियों में प्रदान किया जा सकता है।"
सन्त पापा ने कहा कि जैतून के
तेल से विलेपन, "जैतून पर्वत पर सम्पादित दोहरे रहस्य का स्मरण दिलाता है।" इसी पर्वत
पर गेथसेमनी की बारी है जहाँ येसु मसीह ने दुख भोगा तथा जहाँ से उनका स्वर्गारोहण हुआ।
इस प्रकार तेल "ईश्वर की दवा" के तौर पर काम करता तथा रोगी को शक्ति एवं सान्तवना देता
है। इसके साथ ही, वह रोग के परे निश्चयात्मक चंगाई अर्थात् पुनःरुत्थान की ओर इंगित करता
है।
सन्त पापा ने कहा कि पुनर्मिलन संस्कार एवं विलेपन संस्कार कलीसिया के दो
चंगाई देनेवाले संस्कार हैं। जब व्यक्ति पुरोहित के समक्ष अपने पाप स्वीकार करता है तब
वह अपने हृदय को शुद्ध कर कृपा प्राप्त करने की स्थिति में आ जाता है। उन्होंने कहा कि
पुनर्मिलन संस्कार और विलेपन संस्कार दोनों पवित्र यूखारिस्त के संस्कार में परिपूर्णता
प्राप्त करते हैं। रोगावस्था के समय जब व्यक्ति अपने पाप स्वीकार कर पवित्र यूखारिस्त
ग्रहण करता है तब वह प्रभु ख्रीस्त के रक्त एवं शरीर में सहभागी होता तथा उस मुक्ति का
भागीदार बनता है जिसे ख्रीस्त ने अपने क्रूस बलिदान से सम्पूर्ण मानवजाति के लिये प्राप्त
किया है। इस चिन्तन के अनुकूल सन्त पापा ने सन्देश में कहा कि पल्लियों को यह सुनिश्चित
करना चाहिये कि रोगियों को पुनर्मिलन, विलेपन तथा यूखारिस्त संस्कारों को ग्रहण करने
के अवसर मिलें।