2011-12-26 13:28:22

वाटिकन सिटीः शहीद सन्त स्टीफन के पर्व पर देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


श्रोताओ, 26 दिसम्बर को कलीसिया शहीद सन्त स्टीफन का पर्व मनाती है। सन्त स्टीफन को प्रभु ख्रीस्त में उनके विश्वास के ख़ातिर पत्थरों से मार डाला गया था इसीलिये कलीसिया ने उन्हें कलीसिया के आचार्य एवं शहीद का शीर्षक प्रदान कर वेदी का सम्मान देती है। सन्त स्टीफन के पर्व के उपलक्ष्य में, सोमवार को, सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भक्तों को इस प्रकार सम्बोधित कियाः

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
ख्रीस्तजयन्ती के ठीक एक दिन बाद हम सन्त स्टीफन का पर्व मनाते हैं जो कलीसिया के याजक एवं प्रथम शहीद हैं। कैसरिया के यूसेबियो के इतिहासकार उन्हें "पूर्ण शहीद" नाम से परिभाषित करते हैं, क्योंकि नवीन व्यवस्थान के प्रेरित चरित ग्रन्थ में लिखा है, "स्तेफनुस अनुग्रह तथा सामर्थ्य से परिपूर्ण हो कर जनता के सामने बहुत-से चमत्मकार तथा चिन्ह दिखाता था।" निस्सा के सन्त ग्रेगोरी कहते हैं: "वे, पवित्रआत्मा से परिपूर्ण, एक ईमानदार व्यक्ति थे: उदार हृदय से वे निर्धनों को पोषित करने का कार्य किया करते थे तथा स्वतंत्रतापूर्वक कहे गये वचनों एवं पवित्रआत्मा की शक्ति से सत्य के शत्रुओं का मुँह बन्द कर देते थे।"

सन्त पापा ने कहा: ......... सन्त स्टीफन प्रार्थना और सुसमाचार उदघोषणा के सेवक थे, स्टीफन जिसका अर्थ है, "मुकुट", सन्त स्टीफन ने ईश्वर से शहादत का वरदान प्राप्त किया था। वास्तव में, वे, पवित्रआत्मा से परिपूर्ण थे और उन्होंने ईश्वर की महिमा देखी थी जैसा कि प्रेरित चरित ग्रन्थ के सातवें अध्याय के 55 वें पद में हम पढ़ते हैं: "स्तेफ़नुस ने, पवित्र आत्मा से पूर्ण हो कर, स्वर्ग की ओर दृष्टि लगाई और ईश्वर की महिमा को तथा ईश्वर के दाहिने विराजमान ईसा को देखा।" तदोपरान्त उन्होंने घुटनों के बल गिरकर प्रभु से अपने आततायियों को सज़ा न देने की याचना की थी, लिखा हैः "तब वह घुटने टेक कर ऊँचे स्वर से बोला, ''प्रभु! यह पाप इन पर मत लगा!'' और यह कह कर उसने प्राण त्याग दिये।" इसीलिये पूर्वी रीति की कलीसिया गाती हैः "पत्थर तेरे लिये सीढ़ियाँ बन गये.... और तू स्वर्गदूतों की मणडली में खुशी खुशी शामिल हो गया।"

ख्रीस्तीय समुदाय में, प्रेरितों की पीढ़ी के बाद, शहीदों को ही ध्यान में रखा गया है। अत्याचार के काल में, इनका जीवन विश्वासियों की कठिन तीर्थयात्रा की कहानी वर्णित करता तथा उन लोगों को साहस प्रदान करता है जो सत्य की खोज में लगे हैं तथा मन परिवर्तन द्वारा ईश्वर के प्रति अभिमुख होना चाहते हैं। इसीलिये, कलीसिया शहीदों के अवशेषों को पवित्र करार दे, उनकी भक्ति का प्रस्ताव करती है। ख्रीस्त में अपने विश्वास से परिपूर्ण इन शहीदों को कलीसिया सदगुणों से भरपूर व्यक्ति, जीवन्त साक्षी, अनुप्राणित कार्यकर्त्ता तथा मौन सन्देशवाहक रूप में भक्त समुदाय के समक्ष प्रस्तुत करती है।"

सन्त पापा ने आगे कहा, "प्रिय मित्रो, ख्रीस्त का यथार्थ अनुसरण प्रेम है, जिसे कुछेक ख्रीस्तीय लेखकों ने "गुप्त शहादत" का नाम दिया है। इस सन्दर्भ में आलेक्ज़नद्रिया के सन्त क्लेमेन्त लिखते हैं: "जो व्यक्ति प्रभु के नियमों का पालन करते तथा अपने व्यवहार द्वारा उनका साक्ष्य प्रदान करते हैं, वे प्रभु नाम का स्तुतिगान करते हैं, इसलिये कि वे उस काम को करते हैं जो प्रभु ईश्वर चाहते हैं।" प्राचीन काल के समान ही आज भी सुसमाचार के प्रति सच्ची निष्ठा जीवन का बलिदान मांग सकती है, विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक ख्रीस्तीयों पर अत्याचार होता है और कभी कभी उनकी हत्या भी कर दी जाती है। तथापि, प्रभु ईश्वर हमें याद दिलाते हैं, "जो अन्त तक धीर बना रहेगा, उसे मुक्ति मिलेगी (सन्त मत्ती 10:22)।

शहीदों की रानी पवित्र कुँवारी मरियम की ओर हम अपनी दृष्टि लगायें तथा उनसे याचना करें कि वे हममें विद्यमान भलाई की इच्छा को मज़बूत करें विशेष रूप उन लोगों के प्रति जो हमारे विरोधी हैं। आज, विशेष रूप से, हम कलीसिया के याजकों को ईश्वरीय करूणा के सिपुर्द करें ताकि सन्त स्टीफन के उदाहरण से प्रेरणा पाकर, वे, सुसमाचार उदघोषणा मिशन में सहयोग प्रदान करें।"

इतना कहकर सन्त पापा ने उपस्थित भक्तों को अपनी प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।









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