2011-12-14 20:12:11

बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा का संदेश
14 दिसंबर, 2011


वाटिकन सिटी, 14 दिसंबर, 2011 (सेदोक, वी.आर) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने वाटिकन स्थिति संत पौल षष्टम् सभागार में देश-विदेश से एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।
उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा - मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षामाला में हम ख्रीस्तीय प्रार्थना पर चिन्तन करते हम येसु के पास आयें जो अपने ही उदाहरण द्वारा हमें ख्रीस्तीय प्रार्थना के रहस्य को बतलाते हैं।

आज हम येसु की उन प्रार्थनाओं पर चिन्तन करें जिन्हें येसु लोगों को चंगा करते समय करते हैं, विशेष करके जब वे एक बहरे की चंगाई करते(मारकुस7, 32-37) और लाजरुस के जीवन दान (योहन,11, 1-44) देते हैं।

येसु ने दोनों प्रार्थनायें उस समय कीं जब उन्होंने मनुष्य को दुःखों में पड़े देखा। इन दोनों प्रार्थनाओं में येसु ने, एक ओर अपने को दुःखी व्यक्तियों के साथ एक कर लिया तो दूसरी ओर, उन्होंने इस बात का भी स्पष्ट कर दिया कि उनका अपने स्वर्गिक पिता के साथ उनका संबंध घनिष्ठ है।

बहरे व्यक्ति के लिये येसु की प्रार्थना पर चिन्तन करने से हम पाते हैं कि येसु का दिल दया से भर आया था और इसी लिये उन्होंने अति दुःखी होकर प्रार्थना किया। जबकि लाजरुस के लिये प्रार्थना के पूर्व येसु मार्था और मेरी के दुःख से द्रवित हो गये थे।

यह वही जगह थी जहाँ येसु अपने मित्र लाजरुस के लिये रो पड़े थे। इतना ही नहीं लाजरुस की मृत्यु की दुःखद घटना को येसु ईश्वर की इच्छा पूर्ति, अपनी पहचान और मिशन के आलोक में भी प्रस्तुत करते हैं।

येसु का उदाहरण हमें इस बात की शिक्षा देता है कि प्रार्थनाओं करते समय हम पिता ईश्वर की पवित्र इच्छा को पहचानें और दुनिया की सब बातों या घटनाओं को ईश्वर के रहस्यात्मक प्रेम योजना की नज़र से देखें।

हमें चाहिये कि हम याचना करें, प्रशंसा करें, धन्यवाद दें और ईश्वर के उस सबसे बड़े उपहार को समझने का प्रयास करें जो ईश्वर के साथ हमारी घनिष्ठता में है। हमारी प्रार्थनाओं हमारे दिल को खोले ताकि हम दूसरे भाई-बहनों की मदद करें और अपने जीवन के द्वारा दूसरों को, ईश्वर की मुक्तिदायी उपस्थिति का अनुभव करा सकें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने वियेतनाम, नाईजीरिया, अमेरिका तथा देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों और विश्व भर में आगमन काल में येसु के जन्म की तैयारी करते हुए लोगों पर प्रभु की कृपा, प्रेम और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।













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