गोआ, सात दिसम्बर सन् 2011 (कैथन्यूज़): गोआ में, सोमवार को एक नई पुस्तक का विमोचन किया
गया जिसमें इस बात पर खेद व्यक्त किया गया है कि भारत में और, विशेष रूप से, गोआ में
लोग येसु मसीह को समझ नहीं पाये हैं क्योंकि वे येसु को उपनिवेशवादियों का ईश्वर समझते
हैं।
राजधानी पाणाजी में, सोमवार को, गोआ एवं दामान के महाधर्माध्यक्ष फिलिप
नेरी फेर्राओ ने, पुर्तगाली उपनिवेशियों के 450 वर्षीय शासन की समाप्ति की 50 वीं वर्षगाँठ
के उपलक्ष्य में लिखी गई, फादर विक्टर फेर्राओ की नई पुस्तक का विमोचन किया। पुस्तक में
लेखक का कहना है कि भारत के लोग ईसाईयों को बुरी नज़र से इसलिये देखते हैं क्योंकि वे
उन्हें उपनिवेशियों के सहयोगी मानते हैं।
काथलिक गुरुकुल में दर्शनशास्त्र के
प्राध्यापक फादर विक्टर के अनुसार येसु ख्रीस्त की कहानी को नये सिरे से सुनाना ख्रीस्तीयों
के समक्ष प्रस्तुत सबसे बड़ी चुनौती है।
स्मरण रहे कि 19 दिसम्बर सन् 1961 ई.
को भारत ने सैन्य कार्यवाही द्वारा गोआ को अपने अधीन कर लिया था।
फादर विक्टर
का कहना है कि उपनिवेशवादी छाप के कारण ख्रीस्तीयों को हिन्दुओं की प्रतिक्रियाओं की
चिन्ता लगी रहती है। उन्होंने स्मरण दिलाया कि हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस न पहुँचाने
के भय से सन् 1998 में ख्रीस्तीयों ने गोआ में अर्पित प्रथम ख्रीस्तयाग की पाँचवी शताब्दी
का समारोह नहीं मनाया था। यह पुर्तगाली खोजकर्ता वास्को दे गामा के गोआ आगमन की भी पाँचवी
शताब्दी थी जिन्होंने सन् 1498 ई. में यूरोप से भारत तक समूद्री रास्ते की खोज की थी।
महाधर्माध्यक्ष
फिलिप नेरी फेर्राओ ने नई पुस्तक का स्वागत करते हुए कहा है कि यह गोआ के ख्रीस्तीयों
के प्रति लोगों में समझदारी उत्पन्न करेगी। गोआ के सभी धर्मानुयायियों से उन्होंने आग्रह
किया कि वे एक दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखना बन्द करें तथा एक समृद्ध गोआ के लिये
एकजुट होकर काम करें।